"हम बच्चों के साथ पिकनिक मना रहे थे... अचानक गोलियां चलने लगीं"

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 23-04-2025
"We were having a picnic with the kids... suddenly bullets started flying"

 

आवाज़ द वॉयस/ नई दिल्ली 

‘मिनी स्विट्जरलैंड’ के नाम से मशहूर बैसरन, पहलगाम मंगलवार की दोपहर तक पर्यटकों से गुलजार था. कोई टट्टू की सवारी कर रहा था, कोई हरे घास के मैदानों में परिवार के साथ पिकनिक मना रहा था. लेकिन ठीक दोपहर 3 बजे, एक ऐसी चीख-पुकार मची जिसने सब कुछ बदल दिया.

पहाड़ों और देवदार के जंगलों के बीच से उतरे पांच पाकिस्तान परस्त आतंकियों ने निहत्थे पर्यटकों पर अंधाधुंध गोलियां चला दीं. इस भयावह हमले में 26 लोगों की जान गई, दर्जनों घायल हुए और कश्मीर की जन्नत एक बार फिर मातम में बदल गई..

मौत का मैदान बना बैसरन: चश्मदीदों की जुबानी

गुजरात से आए एक परिवार की महिला ने बताया:"हम अपने बच्चों के साथ पिकनिक मना रहे थे। अचानक गोलियों की आवाज आई. मेरी आंखों के सामने एक बुजुर्ग दंपति गिर पड़े। लोग इधर-उधर भाग रहे थे, कोई समझ नहीं पाया कि क्या हो रहा है.."

पास में मौजूद टूर गाइड अहमद ने कई घायलों की जान बचाई। उन्होंने कहा:"मैंने पहली बार अपने घोड़े पर हंसते-खेलते बच्चों की बजाय खून से लथपथ महिलाओं और बच्चों को नीचे लाया. ऐसा मंजर पहले कभी नहीं देखा."

राजस्थान से हनीमून मनाने आए एक नवविवाहित जोड़े पर भी गोलियां चलीं। महिला एक टट्टू के पीछे छिपकर किसी तरह बच पाईं.
deid
खुले मैदान में नहीं था छिपने का रास्ता, सेना ने हेलिकॉप्टर से किया रेस्क्यू

अधिकारियों ने बताया कि बैसरन का इलाका एक खुला मैदान है, जहां कोई सुरक्षित स्थान नहीं है। आतंकियों ने जैसे ही हमला किया, लोगों को भागने का मौका नहीं मिला। कई लोग वहीं गिर पड़े.सेना ने तत्काल हेलिकॉप्टर भेजकर घायलों को निकाला। पहलगाम अस्पताल में भर्ती 12 घायलों की हालत स्थिर बताई जा रही है.

 कुछ ही पलों में वीरान हो गया 'मिनी स्विट्जरलैंड'

हमले की खबर फैलते ही पहलगाम की सड़कों पर सन्नाटा पसर गया. जो पर्यटक मंगलवार की दोपहर तक होटल, रिसॉर्ट और कैम्पसाइट्स में थे, वे डर के मारे सुरक्षित स्थानों की ओर निकल गए। होटल मालिकों ने बताया कि सभी बुकिंग्स तुरंत रद्द हो गईं.

हमले के तुरंत बाद स्थानीय निवासी गुलाम नबी और उनके साथियों ने घायल पर्यटकों को टट्टुओं पर लादकर पहलगाम अस्पताल तक पहुंचाया। एक घायल लड़की ने बताया:"पहले लगा कि कोई फिल्म की शूटिंग हो रही है, फिर खून देखा तो समझ आया ये हकीकत है."

इसके बाद सोफेर, गदेरबल, हयवाड़ा, बांदीपोरा सहित घाटी के कई क्षेत्रों में स्थानीय मुस्लिमों ने कैंडल मार्च निकाला, और इस वहशी हमले की निंदा की.

 सेना, पुलिस और एजेंसियों का संयुक्त तलाशी अभियान जारी

भारतीय सेना की चिनार कोर ने ट्वीट कर बताया कि ये हमला स्थानीय भावनाओं को आहत करने की सोची-समझी कोशिश थी. जवाब में पहलगाम और आस-पास के इलाकों में सेना, CRPF और जम्मू-कश्मीर पुलिस का संयुक्त तलाशी अभियान जारी है। आतंकियों को जल्द ढूंढकर खत्म करने का वादा किया गया है.

पहलगाम और घाटी के अन्य इलाकों में पहले भी हो चुके हैं आतंकी हमले

23 मार्च 2003: पुलवामा के नंदीमार्ग गांव में 24 कश्मीरी पंडितों की हत्या.

13 जून 2005: विस्फोटक से भरी कार से हमला, 13 की मौत.

12 जून 2006: कुलगाम में 9 नेपाली मजदूरों की आतंकियों ने हत्या की.

यह इतिहास बताता है कि कश्मीर में शांति के दुश्मन बार-बार वही इलाका चुनते हैं जो सबसे ज्यादा सुकून देने वाला होता है.बैसरन की वादियों में गूंजती चीखें बता रही हैं कि आतंकवाद का चेहरा कितना क्रूर, कायर और बेइमान हो सकता है. लेकिन जिस तरह से स्थानीय मुस्लिमों, गाइडों और आम लोगों ने मानवता का परिचय दिया, वह यह दिखाता है कि कश्मीर आतंकियों का नहीं, इंसानियत का है.