जामिया में 'जिहाद' की सच्ची परिभाषा पर संगोष्ठी, कुरान और हदीस से स्पष्ट किया गया अर्थ

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 06-09-2024
Seminar on the true definition of 'Jihad' in Jamia, meaning clarified from Quran and Hadith
Seminar on the true definition of 'Jihad' in Jamia, meaning clarified from Quran and Hadith

 

मलिक असगर हाशमी/  नई दिल्ली

जामिया मिल्लिया इस्लामिया के कुलपति प्रो मोहम्मद शकील ने कहा कि ‘जिहाद’ एक ऐसा विषय है जिसे समाज में हिंसा और तनाव फैलाने वाले, एजेंसियां और आतंकवादी संगठन अलकायदा अपने-अपने तरीके से इस्तेमाल करते हैं. यहां तक कि जिहाद को समझना मीडिया के लिए भी बहुत जरूरी है.

कुलपति मोहम्मद शकील जामिया के इस्लामिक स्टडीज डिपार्टमेंट के एफटीकेसीआईटी हाल में खुसरो फाउंडेशन द्वारा प्रकाशित पुस्तक ‘तफहमी-ए- जिहाद’ के विमोचन के अवसर पर मुख्य अतिथि के तौर पर बोल रहे थे.

इस मौके पर ‘अंडर स्टैंडिंग जिहाद‘ विषय पर संगोष्ठी भी आयोजित की गई. इस पुस्तक के लेखक हैं कौशाम्बी ;यूपी में प्रसिद्ध खानकाह.ए.आरिफिया से जुड़े इस्लामिक स्काॅलर डाॅक्टर जीशान अहमद मिस्बाही.

Launching ceremony of 'Tafheem-e-Jihad'

लेखक ने पुस्तक में कुरान, हदीस और विभिन्न तरीकों के हवाले से यह समझाने की कोशिश की गई है कि ‘जिहाद’ को लेकर किस तरह गलतफहमियां फैलाई गई हैं और इसे हिंसा के लिए हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है.

भारी बारिश के बावजूद साभागार में बड़ी संख्या में मौजूद लोगों को संबोधित करते हुए जामिया मिल्लिाया इस्लामिया के कुलपति प्रो मोहम्मद शकील ने खुशरो फाउंडेशन और जामिया के इस्लामिक स्टडीज सेंटर की इस पहल की सराहना करते हुए सुझाव दिए कि ऐसे विषयों पर हर महीने डिपार्टमेंट में कार्यक्रम आयोजित किए जाने चाहिए और इसपर बोलने के लिए विद्वानों को आमंत्रित किया जाना चाहिए.
आवाज़
कार्यक्रम में जामिया के डीन और इस्लामिक स्टडीज के एचओडी प्रो डॉ. इक्तार मोहम्मद खान ने कहा, ‘‘ महजब कोई भी हो, पर वह मार-काट को सपोर्ट नहीं करता.’’उन्हांेने खुसरो फाउंडेशन की पहल की प्रशंसा करते हुए कहा कि मुल्क में शांति-अमन को बढ़ाने और धार्मों के बीच फैली गलफहमियां को दूर करने के लिए फाउंडेशन ने जो बीड़ा उठाया, उसे आगे बढ़ाने में हम सब को इसका साथ देना चाहिए.

प्रो डॉ. इक्तार मोहम्मद खान ने सभागार में बड़ी संख्या में मौजूद छात्रों को संबोधित करते हुए कहा,‘‘कभी-कभी कुछ बातों को लेकर ऐसा लगता है कि समाज में अंधेरे सा छा गया है.

मगर इससे निराश नहीं होने की जरूरत नहीं. रातें कभी पूरी चांदनी वाली होती हैं, कभी आंधी चांदनी वाली या बिल्कुल अंधेरे वाली, पर फजर रोशनी से भरी होती है. इसलिए निराश न हों और मजबूती से अपने इरादे पर कायम रहें.

उन्होंने छात्रों से मुखातिब होते हुए कहा, मुल्क और संविधान के प्रति पूरी शिद्दत से वफादारी दिखाएं. हम तो वह कौम हैं जिसके मरने के बाद मिट्टी भी कहीं और नहीं जाती. यहीं दफन कर दी जाती है.

कार्यक्रम का आगाज तिलावत-ए-कुरान से हुआ. इसके बाद मंच संचालन कर रहे खुसरो फाउंडेशन के संयोजक डॉ हफीजुर्रहमान ने अपनी संस्था और पुस्तक ‘तफहीम-ए-जिहाद’ के प्रकाशन का उद्देश्य हाॅल में मौजूद लोगों के बीच साझा किया.

कार्यक्रम में मौजूद पुस्तक के लेखक डॉक्टर जीशान अहमद मिस्बाही ने इसके लिखने के मकसद पर  प्रकाश डाला. उन्होंने बताया कि ‘जिहाद’ शब्द उनके छात्र जीवन से कौतूहल का विषय बना हुआ है.

उन्हें  छात्र जीवन में दोस्तों के बीच हंसी मजाक में इस्तेमाल किए गए ‘जिहाद’ शब्द ने इस किताब को लिखने को मजबूर किया. तब दोस्तों की बातों से ऐसा लगा था,’’ गैर-मजहब के माल को हड़पना ही जिहाद है.’’

डॉक्टर जीशान अहमद मिस्बाही ने बताया कि तभी से मैं जिहाद विषय पर शोध में लग गया. इसपर अध्ययन करने में जामिया के डीन प्रो. इक्तिदार मोहम्मद खान ने उनका मार्गदर्शन किया.

डॉक्टर जीशान अहमद मिस्बाही ने कहा कहा कि इस विषय पर लिखते समय में उन्हें एहसास हुआ कि किस तरह इसके बारे में भ्रम फैलाया गया है और इसे ‘मिस कोट’ कर हिंसा के लिए ‘हथियार’ बना दिया गया.

डॉक्टर मिस्बाही ने कुरान, हदीस के हवाले से बताया कि जिहाद तीन तरह के होते हैं. बड़ा जिहाद, छोटा जिहाद और बीच का जिहाद. जिहाद-ए-अकबर यानी बड़ा जिहाद अपने नफस और इच्छा पर काबू पाना है.

बीच का जिहाद एकेडमिक जिहाद है. यानी लिटरेचर के माध्यम से अपनी राय रखना और जिहाद-ए-असगर अर्थात छोटा जिहाद, जुल्म करने वालों से लड़ना है. वह भी इस तरह की लड़ाई की इजाजत इस्लाम में किसी व्यक्ति या संगठन को नहीं दी गई है, बल्कि यह विषय स्टेट का है. यानी ऐसे मौके आने पर सरकार जंग का निर्णय लेगी.
आवाज़
डॉक्टर जीशान अहमद मिस्बाही ने कहा कि ‘जिहाद’ को लेकर गलत सोच काम कर रही है. इस्लाम ने जिहाद का वर्गीकरण कर दिया है. इसको लेकर कोई राजदारी नहीं है. उन्होंने कुरान के हवाले से कहा, ‘‘ इस्लाम में दुश्मन की तलाश की मनाही है.’’ इस्लामें जिहाद इबादत है. जिहाद अरबी शब्द है, जिसका अर्थ ही अच्छी कोशिश है. इस्लाम में हुक्त है जो तुम्हारी बात नहीं माने उसे सुरक्षित स्थान पर छोड़कर आओ.

‘जिहाद’ विषय पर बोलते हुए मौलाना हसन सईद और इंडो इस्लामिक स्कॉलर गुलाम रसूल देहलवी ने भी अपने संक्षिप्त संबोधन में यह समझाने की कोशिश की यह हिंसा और मार-काट नहीं सिखाता.

कार्यक्रम में धन्यवाद ज्ञापन सीनियर आईपीएस और खुसरो फाउंडेशन के डायरेक्टर शांतनु मुखर्जी ने किया. उन्होंने अपने खास अंदाज में वक्ताओं का शुक्रिया अदा करते हुए कहा कि वक्ताओं की बातों से उन्हें भी ‘जिहाद’ को समझने में मदद मिली.

ऐसी बातें निश्चित ही गलतफहमियां दूर करेंगी. मंच का संचालन डॉक्टर हफीजुर्रहमान ने शोर-ओ-शायरी से भरे अपने खास अंदाज में किया. इस मौके पर खुसरो फाउडेशन के एक अन्य निदेशक रामबीर सिंह,, मौलाना अब्दुल मोईद अज़हरी, कलमकार तालिफ़ हैदर  आवाज द वाॅयस के चीफ एडिटर आतिर खान सहित बड़ी संख्या में इस्लामी विद्वान, प्रोफेसर्स, पत्रकार, छात्र आदि मौजूद थे.