रीता फरहत मुकंद
लेफ्टिनेंट जनरल ज़मीर उद्दीन शाह (सेवानिवृत्त) का मानना है कि अगर किसी उंगली में थोड़ी सी भी चोट लग जाए तो हाथ नहीं बंद किया जा सकता.उन्हें एकता और टीम वर्क का महत्व पताहै.उन्होंने पूर्वोत्तर भारत में उग्रवाद से लड़ने में कई साल बिताए हैं.
सेना में 40 से अधिक वर्षों की सेवा के अलावा, उन्होंने पाँच अन्य भूमिकाएँ भी निभाई हैं: राजनयिक (सऊदी अरब 1994-970), शांति प्रवर्तक (गुजरात दंगे 2002), न्यायधीश (सशस्त्र बल न्यायाधिकरण (2009-2012), शिक्षाविद् (कुलपति, एएमयू 2012-2016) और लेखक (सरकारी मुसलमान -2018).
वह सैन्य परिवारों की एक पंक्ति से हैं, जिनके दादा और अन्य रिश्तेदारों ने प्रथम विश्व युद्ध में फ्रांस में चार साल सेवा की थी.कई चाचाओं ने द्वितीय विश्व युद्ध में बर्मा (अब म्यांमार) में पंजाब रेजिमेंट के साथ लड़ाई लड़ी थी.
उनके पिता ब्रिटिश-जापानी ‘एडमिन बॉक्स की लड़ाई’ के दौरान इंफाल में जनरल स्लिम्स 14 आर्मी के साथ ‘शरणार्थी अधिकारी’ थे.वह मशहूर अभिनेता नसीरुद्दीन शाह के बड़े भाई हैं.जब उनसे पूछा गया कि उन्होंने अपनी किताब का शीर्षक 'सरकारी मुसलमान' क्यों रखा, एक सैन्य अधिकारी की आत्मकथा के लिए एक बहुत ही असामान्य नाम है.
उन्होंने जवाब दिया कि सरकारी कर्मचारी 'जो नियमों के अनुसार चलते हैं' उन्हें उनके समुदाय द्वारा इस उपनाम से बोझिल किया जाता है, जब वे अनुचित अनुरोधों को पूरा नहीं करते हैं.इसका अर्थ है एक सरकारी पिट्ठू.
जब उनसे 1947 में भारत के विभाजन के बारे में पूछा गया तो उन्होंने आवाज़-द-वॉयस को बताया कि उनके बड़े भाई ज़हीर का जन्म विभाजन से पहले 1946में हुआ था.वह विभाजन के बाद 1948 में पैदा हुए हैं!
उन्होंने जवाब दिया, 'मैं पूर्वी उत्तर प्रदेश के बहराइच में पैदा हुआ,जहाँ मेरे पिता डिप्टी कलेक्टर के रूप में तैनात थे.मैंने विभाजन के बारे में लिखा है जो मेरे पूरे परिवार के लिए दर्दनाक था.हम अलग हो गए थे.मुस्लिम लीग के प्रति निष्ठा रखने वाले सदस्य पाकिस्तान चले गए.
मेरे दादा कांग्रेस के सक्रिय सदस्य थे.भारत में आए तूफ़ान का सामना करने का फ़ैसला किया. उन्हें पूरा भरोसा था कि उन्हें उचित सौदा मिलेगा.हम ग़लत नहीं थे.अपने फ़ैसले पर कभी पछतावा नहीं हुआ.
हाल में जब हमें 'घुसपेटिया' कहकर अपमानित किया गया.हमारे जन्म की भूमि पर इतने अपमानजनक तरीके से संबोधित किया जाना दर्दनाक और घोर अन्यायपूर्ण हैं.हम अपने देश की सेवा करते हैं. भारत के संविधान में पूर्ण आस्था रखते हैं .हमारे देश के अधिकांश लोगों की समावेशी प्रकृति में पूरा भरोसा रखते हैं.
1071 के भारत-पाक युद्ध की आपकी क्या यादें हैं? क्या कोई विशेष घटना है जो आपको याद है ?
मैंने लोंगेवाला की लड़ाई लड़ी थी.मेरी रेजिमेंट में पूरी तरह से राजस्थान, यूपी और एमपी के राजपूत शामिल थे.रेजिमेंट में 16 अधिकारियों की एक बहुत ही दिलचस्प रचना थी, जिसमें 2 सिख, 2 मुस्लिम, 1 ईसाई, 1 यहूदी और पूरे देश से 10 हिंदू शामिल थे.
सशस्त्र बल भारत के सर्वसमावेशी चेहरे का प्रतिनिधित्व करते हैं. हमने एक-दूसरे पर भरोसा किया और कंधे से कंधा मिलाकर लड़ाई लड़ी.एक घटना जो मुझे अच्छी तरह याद है, वह यह थी कि 'इस्लाम गढ़' नामक एक पाकिस्तानी चौकी पर हमले के बाद, जिसमें मेरी रेजिमेंट की बंदूकें टूट गईं, एक जूनियर कमीशन अधिकारी ने मुझे कपड़े से बंधा एक बंडल दिया.
कहा, 'सर, यह आपकी सुरक्षा के लिए है.मैंने इसे इस्लामगढ़ मस्जिद से बरामद किया था जो टूट गई थी.यह एक कुरान था.यह अभी भी मेरे पास है.जब परिस्थितियाँ अनुकूल होंगी तो इसे इसके मूल और सही स्थान पर लौटा दिया जाएगा.यह भारतीय सेना की सच्ची भावना है.
जनरल (बाद में फील्ड मार्शल) सैम मानेकशॉ ने युद्ध से ठीक पहले एक संक्षिप्त उत्साहवर्धक भाषण में हमें संबोधित किया.वह एक मेज पर चढ़ गए. माइक को दूर धकेल दिया.कमर पर हाथ रखकर बैटल एक्स डिवीजन के लगभग 300 अधिकारियों से संक्षिप्त रूप से बात की.
मैं उनके शब्दों को हमेशा याद रखूंगा.'लड़कों मैं तुम्हें जीत सुनिश्चित करने के लिए भेज रहा हूं.मैं चाहता हूं कि तुम निम्नलिखित बातें याद रखो: सबसे पहले, युद्धबंदियों के साथ बुरा व्यवहार नहीं किया जाएगा. दूसरा, लूटपाट नहीं होगी. तीसरा, पाकिस्तानी महिलाओं से दूर रहो.' हमें सेना में ऐसे ही जनरलों की जरूरत है.बहुत ज्यादा बोलने वाले नहीं, बल्कि समझदारी से बोलने वाले.
लेफ्टिनेंट जनरल ने अपने विषय पर विस्तार से कहा, 'मैं आपको यह भी बता दूं कि चूंकि मानेकशॉ की सलाह तत्कालीन सरकार ने मान ली थी, इसलिए भारत एक गलत समय पर किए गए हमले से बच गया.
तत्कालीन सरकार, प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व में, 1971में जल्द से जल्द पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश) को आजाद कराने के लिए दबाव बना रही थी.मानेकशॉ ने गर्मियों में आक्रमण शुरू न करने की सलाह दी.तब भारत-चीन दर्रे खुले होंगे और नदियाँ उफान पर होंगी.मानसून आ रहा होगा.
उन्होंने नवंबर/दिसंबर 1971के अंत में आक्रमण करने की सिफारिश की.प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उनकी सलाह मान ली.भारत की जीत में एक महत्वपूर्ण कारक.यह सभी सरकारों के लिए एक सबक है.अनुभवी सैनिकों की सलाह पर ध्यान दें.
हालांकि, एक बार निर्णय लेने के बाद उसका पालन करना सैनिकों का बाध्य कर्तव्य है.हम अनुभवी हैं.हमारा दिल और वफादारी उस पेशे के लिए है जिसे हमने 40साल तक सेवा दी.
भारत के विभाजन ने मुसलमानों को कैसे प्रभावित किया है?
मैंने कभी विभाजन की भयावहता का अनुभव नहीं किया, लेकिन मेरे माता-पिता ने किया.मैंने इसके बारे में अपनी किताब में लिखा है.‘भारत का विभाजन मेरे परिवार के लिए एक और आघात था.
मुस्लिम लीग के प्रति वफ़ादारी रखने वाले सदस्य पाकिस्तान चले गए.मेरे तात्कालिक परिवार के सदस्यों को भारतीय समाज की समावेशी प्रकृति और उदारता पर पूरा भरोसा था. उन्होंने भारत में इसका सामना करने का फैसला किया.
हाल तक हमारा भरोसा गलत नहीं था.हमारे गृहनगर सरधना में कोई दंगा नहीं हुआ, जिसका मुख्य कारण मेरे नाना (नाना) की मजबूत पकड़ और अधिकार था.उन्होंने हिंसा में लिप्त किसी भी समुदाय को तुरंत बदला लेने की धमकी दी थी.हालाँकि, एक बच्चे के रूप में, मैंने विभाजन के दौरान तबाही, आगजनी और हत्या की भयानक कहानियाँ सुनी थीं.
इसने मुझे प्रभावित किया, लेकिन अंदर ही अंदर दबा रहा.मैं अपने सिस्टम से उस भूत को तभी निकाल पाया जब मैंने पुणे के पास खड़कवासला में राष्ट्रीय रक्षा अकादमी में दाखिला लिया.इस महान संस्थान में मेरा गर्मजोशी से स्वागत किया गया. उचित व्यवहार किया गया.सकारात्मक कार्रवाई का अनुभव किया गया.मेरे लगभग 200कैडेटों के पाठ्यक्रम में मैं अकेला मुस्लिम था.
मेरी पत्नी और मैंने इस बात का ध्यान रखा कि हम अपने बच्चों को विभाजन की भयावहता के बारे में कभी न बताएं.यह एक बंद और भुला दिया गया अध्याय है.मेरे माता-पिता ने इसे प्रत्यक्ष रूप से अनुभव किया.मैंने इसके बारे में सुना.सौभाग्य से मेरे बच्चों ने नहीं,लेकिन इसे भूलने में तीन पीढ़ियाँ लग गईं.
जब भी कोई दंगा होता है, तो हम उम्मीद करते हैं कि राजनीतिक नेता ‘यह बकवास बंद करो’ का आदेश देंगे.उनकी चुप्पी का मतलब मौन स्वीकृति है.हमारे राजनीतिक नेताओं में किसी भी अत्याचार की निंदा करने और बोलने का साहस और हिम्मत होनी चाहिए.
सोशल और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया भी सांप्रदायिक भावनाओं को भड़का रहे हैं.सरकार को इन विभाजनकारी गतिविधियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करनी चाहिए.
स्वतंत्रता दिवस निकट आ रहा है. सेना के अनुभवी के रूप में भारत के बारे में आपका क्या दृष्टिकोण है?
अगर हम एकजुट रहें तो हम विश्व शक्ति बन सकते हैं.किसी खास समुदाय को अलग-थलग करना बंद करें.हम यहीं पैदा हुए हैं.यहीं मरेंगे.यह हमारी मातृभूमि है.नफरत की इस धारा को रोकें जो हमारे देश में घुस रही है.हमारे सामाजिक सामंजस्य को नष्ट कर रही है.हाथ की पाँचों उँगलियों को एक शक्तिशाली मुट्ठी में बंद रखने की ज़रूरत है.
(रीता फरहत मुकंद एक स्वतंत्र लेखिका और लेखिका हैं।)