शाही इमाम ने विवाद पर बोलते हुए कहा कि आजकल पैगंबर के नाम पर जिस तरह से बिना सोचे-समझे सड़कों पर उतरा जा रहा है, प्रदर्शन हो रहे हैं, वह इस्लाम की असली तालीम से दूर हैं.उन्होंने साफ़ कहा कि “पैगंबर से मोहब्बत धरना-प्रदर्शन और जुलूसों से नहीं होती, यह मोहब्बत मुसलमानों के खून और चरित्र में होनी चाहिए.” उनका यह बयान सोशल मीडिया पर वायरल हो गया है और लोग इसे शांति और समझदारी का संदेश मान रहे हैं.
उन्होंने यह भी कहा कि आज जिस तरह बिना नमाज़ अदा किए, बिना किसी योजना के लोग सड़कों पर उतरते हैं और तोड़फोड़ करते हैं, वह इस्लाम की फितरत नहीं है.उन्होंने युवाओं से अपील करते हुए कहा कि अगर आपको किसी मुद्दे पर आवाज उठानी है, तो उसके लिए एक तरीका होता है.
आप अपने नेताओं से कहिए कि वे ज़मीन तैयार करें, सरकार से बातचीत करें, ज्ञापन तैयार करें और उसे प्रशासन तक पहुँचाएँ.मगर अफसोस की बात यह है कि ऐसा नहीं हो रहा और आज नौजवान इस लापरवाही की कीमत चुका रहे हैं.उन्हें जेल जाना पड़ रहा है.उनके लिए कोई आवाज उठाने वाला नहीं है.
शाही इमाम ने पैगंबर मोहम्मद की सच्ची मोहब्बत की मिसालें देते हुए कहा कि अगर आप चाहते हैं कि आपको रसूल से मोहब्बत करने वाला कहा जाए, तो अपने व्यवहार को बदलें.किसी की बहू-बेटी को नीची नज़र से मत देखो, थोड़ा माल तोलते समय ज़्यादा दो, सत्ता में हो तो अपने से कमज़ोरों को माफ़ कर दोऔर अगर किसी गरीब की मदद कर सकते हो, तो आगे बढ़कर करो। यही पैगंबर से मोहब्बत का असली तरीका है.
अपने भाषण में शाही इमाम ने मुस्लिम नेतृत्व की चुप्पी पर भी सवाल उठाए.उन्होंने कहा कि इस मुद्दे को लेकर पिछले कई दिनों से देश में तनाव है, लेकिन किसी बड़े मौलवी, मुस्लिम सांसद या मंत्री का कोई बयान सामने नहीं आया.
उन्होंने कटाक्ष करते हुए कहा, "जब चंदा माँगना होता है, तब हर मस्जिद में ऐलान होता है, लेकिन जब नौजवान मुश्किल में होते हैं, जेल में होते हैं, तब कोई नज़र नहीं आता." उन्होंने कहा कि ऐसे समय में जब समाज को दिशा देने की ज़रूरत होती है, तो जिम्मेदार लोग गायब हो जाते हैं और फिर सारा दोष सरकार पर डाल दिया जाता है.
उन्होंने उत्तर प्रदेश की घटनाओं का ज़िक्र करते हुए कहा कि अगर वहाँ कुछ गलत हुआ, तो क्या कोई बड़ा मौलवी, सांसद या विधायक मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से जाकर मिला? क्या किसी ने औपचारिक रूप से सरकार से शिकायत की ?
उन्होंने कहा कि अगर आपको किसी से मिलना है या अपनी बात रखनी है, तो उसके लिए एक तय प्रक्रिया है.सिर्फ दफ्तर के बाहर खड़े रहने से समाधान नहीं मिलेगा.ज्ञापन बनाइए, बातचीत कीजिए, और नेतृत्व की भूमिका निभाइए.
शाही इमाम ने अपने संबोधन में यह भी याद दिलाया कि इस्लाम का मतलब संयम, करुणा और न्याय है.विरोध का भी एक तरीका होता हैऔर अगर वह तरीका पैगंबर की तालीम के खिलाफ है, तो वह मोहब्बत नहीं, महज़ गुस्सा है.उन्होंने कहा कि आज जरूरत है सोच-समझकर चलने की, ना कि भावनाओं में बहकर नुकसान उठाने की.
गौरतलब है कि शाही इमाम मौलाना उस्मान रहमानी लुधियानवी हाल ही में पंजाब में आई भयंकर बाढ़ के दौरान भी सक्रिय रूप से राहत कार्यों में लगे रहे.उन्होंने न सिर्फ संगठनात्मक रूप से बल्कि व्यक्तिगत रूप से भी राहत वितरण में भाग लिया और लोगों की सेवा की.इससे पहले भी वे सामाजिक कार्यों में अपनी अग्रणी भूमिका के लिए जाने जाते रहे हैं.
सोशल मीडिया पर इस पूरे बयान को सकारात्मक रूप में लिया जा रहा है.एक यूज़र ने लिखा, “तनाव भरे माहौल में इस तरह के बयान राहत और सुकून देने वाले होते हैं.यही इस्लाम की असल तस्वीर है.” शाही इमाम का यह दृष्टिकोण आज के समय में बेहद जरूरी है,जहां संवाद, संयम और समझदारी ही समाज को सही दिशा में ले जा सकती है.