बॉलीवुड के असली ‘भाई जान’ महमूद: जिन्होंने अमिताभ बच्चन और जीतेंद्र को बनाया सुपरस्टार

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 04-10-2025
Mehmood, the real 'Bhai Jaan' of Bollywood: The man who made Amitabh Bachchan and Jeetendra superstars
Mehmood, the real 'Bhai Jaan' of Bollywood: The man who made Amitabh Bachchan and Jeetendra superstars

 

यूसुफ तहामी

भारतीय सिनेमा के सुनहरे दौर में, जब दिलीप कुमार, राज कपूर और देव आनंद जैसे सितारे रोमांस और भावुकता का जादू बिखेर रहे थे, उसी दौर में जॉनी वॉकर के बाद अगर किसी एक अभिनेता ने सबसे ज़्यादा लोगों की मुस्कान को ठहाकों में बदला, तो वह सिर्फ़ और सिर्फ़ महमूद थे.बॉलीवुड के मशहूर सदाबहार अभिनेता जीतेंद्र उन्हें 'भाई जान' कहते थेऔर सलमान खान से पहले वह बॉलीवुड के असली भाई जान थे.

एक इंटरव्यू में जीतेंद्र ने महमूद के करिश्माई हास्य-बोध का एक यादगार किस्सा सुनाया.एक फ़िल्म की शूटिंग के दौरान उन्हें ज़ोर से हँसना था, लेकिन वह बेसाख्ता हँसी नहीं ला पा रहे थे.जब उन्होंने अपनी परेशानी महमूद को बताई, तो उन्होंने कहा, "तुम शॉट के लिए तैयार हो जाओ.जब तुम्हें हँसना हो, तो सामने वाले दरवाज़े की तरफ़ देखना."

जीतेंद्र बताते हैं कि उन्हें कुछ समझ नहीं आया, लेकिन उन्हें महमूद पर पूरा भरोसा था.जब शॉट के लिए 'रेडी' कहा गया और जीतेंद्र ने दरवाज़े की तरफ़ देखा, तो वह हँसते-हँसते लोट-पोट होने लगे.उनकी हँसी रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी.

बाद में उन्होंने खुलासा किया कि उन्होंने दरवाज़े की तरफ़ देखा, तो 'भाई जान' बिना पजामा पहने कमर के बल झुके हुए थे.जीतेंद्र के मुताबिक, वह सचमुच जीनियस थे.आज हम उन्हीं को याद कर रहे हैं.93साल पहले, 29सितंबर 1932को उनका जन्म बंबई में एक स्टेज आर्टिस्ट मुमताज़ अली के घर हुआ था.

करियर की शुरुआत और संघर्ष

यूं तो महमूद ने चाइल्ड आर्टिस्ट के तौर पर 1943में रिलीज़ हुई ‘किस्मत’ फ़िल्म में काम किया था, जो अशोक कुमार के अभिनय करियर के उदय का कारण बनी और अपने ज़माने की सबसे सफल फ़िल्म साबित हुई.इस तरह, उन्होंने भले ही दुर्घटनावश, दिलीप कुमार से भी पहले फ़िल्म इंडस्ट्री में कदम रख दिया था, लेकिन उनके स्टारडम का सफ़र बहुत ही नाहमवार (उबड़-खाबड़) रहा.

उन्होंने अपने करियर की शुरुआत विभिन्न और अजीबोगरीब नौकरियों से की. कभी मुर्गियाँ बेचीं, तो कभी टैक्सी चलाईऔर यहाँ तक कि मीना कुमारी के छोटे भाई को टेबल टेनिस सिखाने के लिए ट्यूशन भी दी.

उनका अभिनय में प्रवेश भी एक दुर्घटना जैसा ही था.एक बार वह फ़िल्म निर्माता और अभिनेता गुरु दत्त के साथ एक फ़िल्म की शूटिंग पर ड्राइवर के तौर पर गए थे.गुरु दत्त ने महमूद के हास्य बोध और चेहरे के भावों को देखकर उन्हें 1956 में आई फ़िल्म ‘सीआईडी’ में एक छोटा-सा हास्य किरदार पेश किया.

उनका वह संक्षिप्त दृश्य ही दर्शकों को हँसाने के लिए काफी था.इस तरह भारतीय सिनेमा के सबसे चहेते कॉमेडियनों में से एक का उदय शुरू हुआ.यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि जॉनी वॉकर को भी उनके हास्य बोध की वजह से गुरु दत्त ने ही तलाशा था.

जीतेंद्र और अमिताभ को दिया पहला बड़ा ब्रेक

सन 1960के दशक की शुरुआत में, रवि कपूर नाम का एक संघर्षरत अभिनेता एक बड़े ब्रेक की तलाश में था.महमूद, जो उस समय तक एक उभरते हुए कॉमेडियन थे, उन्हें इस युवा की प्रतिभा पर यक़ीन था.

उन्होंने इस अभिनेता को अपनी होम प्रोडक्शन फ़िल्म ‘बूँद जो बन गई मोती’ (1967) में एक किरदार दिया और उन्हें अपना नाम बदलकर कुछ हीरो जैसा नाम रखने का सुझाव दिया.यहीं से रवि कपूर जीतेंद्र बनकर उभरे, जो भारतीय सिनेमा के सदाबहार हीरोज़ में गिने जाते हैं.

महमूद की लोकप्रियता एक ज़माने में इतनी बढ़ गई थी कि प्रोड्यूसर्स उनके लिए पूरे उप-प्लॉट लिखवाने लगे.मशहूर फ़िल्म ‘पड़ोसन’ (1968) की शूटिंग के दौरान, ऋषिकेश मुखर्जी ने मज़ाक में टीम से कहा था कि, "होशियार रहें! अगर महमूद को एक और सीन दे दिया गया, तो वह पूरी फ़िल्म को ले उड़ेगा !" और सच कहें तो, इस फ़िल्म में सुनील दत्त से ज़्यादा धमाल दक्षिण भारतीय संगीत शिक्षक ‘मास्टर पिल्लई’ के किरदार में महमूद ने मचाया था.

उनकी गोल-गोल घूमती आँखें, अतिशयोक्तिपूर्ण लहजा और जोशीले डांस स्टेप्स एक मील का पत्थर साबित हुए, जो दशकों बाद भी कलाकारों के लिए एक मिसाल बना हुआ है.जीतेंद्र को ब्रेक देने वाले महमूद ने ही अमिताभ बच्चन को भी उनका पहला बड़ा ब्रेक दिया था, जब कोई भी नए अभिनेता को कास्ट नहीं कर रहा था.

महमूद ने उन्हें 1972में आई अपनी फ़िल्म ‘बॉम्बे टू गोवा’ में एक अहम किरदार दिया.यह एक कॉमेडी एडवेंचर फ़िल्म थी और बहुत हिट हुई.यह फ़िल्म ‘ज़ंजीर’ से पहले अमिताभ की सबसे हिट फ़िल्म थी.अमिताभ बच्चन ने कई इंटरव्यू में महमूद द्वारा मिले सहारे को स्वीकार किया है.उन्होंने कहा कि, "उन्होंने मुझ पर विश्वास किया, जब बहुत कम लोगों को मुझ पर विश्वास था."

एक इंसान दोस्त अभिनेता और विरासत

वह सिर्फ़ एक हास्य कलाकार ही नहीं थे, बल्कि एक मानवतावादी अभिनेता थे.उनकी भावनात्मक गहराई को 1974में रिलीज़ हुई उनकी फ़िल्म ‘कुँवारा बाप’ ने दर्शाया था, जो उन्होंने पोलियो से प्रभावित अपने बेटे के लिए बनाई थी.

उन्होंने पोलियो टीकाकरण के महत्व के बारे में जागरूकता पैदा करने वाली इस फ़िल्म का निर्देशन और अभिनय किया.इस फ़िल्म की शूटिंग के दौरान एक भावुक दृश्य के बाद, महमूद एक कोने में ख़ामोशी से रो रहे थे और उन्होंने कहा था, "मैं अभिनय नहीं कर रहा हूँ, मैं अपने बेटे को याद कर रहा हूँ."

सफलता के साथ उनके जीवन में अकेलेपन का भी दौर आया.बाद के जीवन में, वह शांति की तलाश में कुछ दिनों के लिए अमेरिका चले गए.1990 के दशक में जब वह वापस आए, तो वह जादू नहीं जगा सके.

महमूद ने 23 जुलाई 2004 को अमेरिका के शहर पेंसिल्वेनिया में अंतिम साँसें लीं, लेकिन उनकी हँसी की विरासत आज भी क़ायम है.उनकी लोकप्रियता का प्रमाण है कि आज हम जॉनी वॉकर के नाम पर जॉनी लीवर को और महमूद के नाम पर जूनियर महमूद को भी देखते हैं.

उन्हें बेस्ट कॉमेडियन के फ़िल्मफेयर अवॉर्ड के लिए 19 बार और सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता के लिए छह बार नामित किया गया.उन्होंने एक बार सहायक अभिनेता और चार बार सर्वश्रेष्ठ कॉमेडियन का अवॉर्ड जीता.



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