सीरिया-तुर्की में तबाहीः कभी ऑटोमन साम्राज्य का था जलवा, जलजले में तमाम प्राचीन धरोहरों पर छाया खतरा

Story by  रावी द्विवेदी | Published by  [email protected] | Date 12-02-2023
जलजले में तमाम प्राचीन धरोहरों पर छाया खतरा
जलजले में तमाम प्राचीन धरोहरों पर छाया खतरा

 

रावी द्विवेदी

तुर्की और सीरिया का एक बड़ा हिस्सा आज जलजले की चपेट में है. 6 फरवरी को एक के बाद एक करके आए भूकंप के तीन बड़े झटकों ने उसे दशकों पीछे धकेल दिया है. हालात इतने बुरे हैं कि अभी कल्पना भी नहीं की जा सकती कि कितने लोग मरे हैं, कितनी संपत्ति तबाह हुई है और विभीषिका से उबरने में कितना समय लगेगा. आज हर तरफ लाशों के ढेर, ध्वस्त इमारतों और मलबे से पटे पड़े इस इलाके ने कभी ऑटोमन साम्राज्य का जलवा देखा था. तुर्की-सीरिया समेत कई देश उसके नियंत्रण में आते थे. यह जमीन एक प्राचीन सभ्यता को समेटे हुए है, जो पुरा-पाषाणकाल तक से जुड़ी है, तो विभिन्न साम्राज्यों और संस्कृतियों का इतिहास भी सहेजे है.

अलेप्पो हो या गाजियांटेप सीरिया और तुर्की के ये इलाके ऐतिहासिक और सांस्कृतिक लिहाज से पूरी दुनिया के लिए एक अनमोल धरोहर रहे हैं. इनके अलावा भी तुर्की और सीरिया के ऐसे कई इलाके भूकंप प्रभावित क्षेत्र में हैं, जो ऐतिहासिक या पुरातात्विक महत्व रखते हैं. यही वजह है कि यूनेस्को को भी यह चिंता सताने लगी है कि यहां स्थित प्राचीन धरोहर स्थलों का क्या होगा.

भूकंप से मची तबाही में अलेप्पो की तमाम इमारतें, गाजियांटेप का दो हजार साल पुराना गाजियांटेप कैसल, ऐतिहासिक महत्व के कई स्मारक और मस्जिदें ध्वस्त हो चुकी हैं. बहरहाल, यह जानने के लिए कि यह पूरा क्षेत्र ऐतिहासिक रूप से क्यों अहम है, यहां की कला-संस्कृति, वास्तुकाल, जीवनशैली दुनिया के अन्य हिस्सों के लिए क्या मायने रखती है, हमें थोड़ा-सा इसके इतिहास में झांकना होगा.

प्राचीन सभ्यताओं में से एक

भूमध्य सागर के तट से मध्य पूर्व में बसा यह पूरा इलाका दुनिया की प्राचीन सभ्यताओं में से एक है. पृथ्वी पर शुरुआती दौर में ही यहां मानव बसावट होने के संकेत मिलते हैं. माना जाता है कि पत्थरों से आग जलाने से लेकर औजार, हथियार और फिर खूबसूरत कलाकृतियां ढाले जाने तक इस इलाके ने मानव विकास के इतिहास में अहम भूमिका निभाई है.

मानव इतिहास पर अध्ययन से पता चलता है कि आज हम जिस जगह को तुर्की के नाम से जानते हैं, वहां 60,000 साल ईसा पूर्व भी लोग या तो बसे हुए थे या फिर वहां से गुजरते थे. 2014 में वैज्ञानिकों ने गेडिज नदी में पत्थर का एक औजार पाया, जिसे 1.2 मिलियन वर्ष पुराना माना जाता है.

 

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अनुमान के मुताबिक यहां समुद्र के किनारे इंस्ताबुल, अंतालिया जैसी जगहों पर इंसान गुफाओं में रहते थे. यहां की गुफाओं में पाषाणकालीन पेंटिंग और भित्तीचित्र भी पाए गए हैं. नवपाषाण काल यानी पांच हजार से साढ़े आठ हजार साल ईसा पूर्व यहां विभिन्न समुदायों के बसने और पलायन करने के निशान मिलते हैं.

शोधकर्ताओं को यहां मानव बस्तियां होने के साक्ष्य मिले हैं, और उस दौरान ही यहां बसे लोग खेती के लिए औजारों का इस्तेमाल करने लगे थे और कुत्तों के अलावा पशुपालन भी करते थे. ऐसे संकेत भी मिलते हैं कि करीब 10000 साल गेहूं की खेती इसी क्षेत्र में शुरू हुई थी. ईसा पूर्व 2000 से 5000 साल पहले यहां तांबे और कांसे के औजारों का इस्तेमाल किया जाता.

इसी काल में अंतालिया और अन्य विकसित सभ्यताओं के बीच कारोबार शुरू हुआ. इसने इस क्षेत्र को अन्य सभ्याओं से न केवल प्रभावित किया बल्कि खासा असर भी डाला. 2000-2500 साल ईसा पूर्व दुनिया के विभिन्न हिस्सों से लोगों ने अंतालिया में बसना शुरू कर दिया.

इसी क्रम में यहां हत्ती और हुरियन सभ्याएं पनपीं. इसी दौरान अंतालिया के उत्तर पश्चिम में ट्राय शहर बसा. अगले सौ सालों तक हत्ती सभ्यता यहां पर काफी हावी रही. 1200 से 2000 साल ईसा पूर्व के दौरान असीरियन सभ्यता के भी यहां तक विस्तार करने के संकेत मिलते हैं. यह क्षेत्र उरातु सभ्यता के लिए भी जाना जाता है जिसकी जड़ें आज के आर्मेनिया वासियों से जुड़ी हैं. इसके अलावा फरगिया, लीडिया, कैरिया, लीसिया, आयोनिया, यमन, रोमन सभ्यताएं भी यहां फली-फूलीं.

जमीन और पहचान की जंग से जूझता रहा

इस क्षेत्र को यूरोप, एशिया और अफ्रीका को एक-दूसरे से जोड़ने वाली एक कड़ी भी माना जाता है. इस खास भौगोलिक स्थिति के कारण ही इसे कई बार जमीन के लिए लड़ाई और पहचान की जंग से जूझना पड़ा. तुर्की जहां मुख्यतः तुर्कों की पहचान बना है, वही सीरिया में अरब संस्कृति का प्रभाव है.

तमाम सभ्याओं और साम्राज्यों के बीच उजड़ते बसते इस क्षेत्र के लिए संघर्ष ही नियति रही है. 1250 ईसा पूर्व ट्राय की लड़ाई में यवनों (ग्रीक) की जीत हुई और उन्होंने आसपास के पूरे इलाकों पर नियंत्रण स्थापित कर लिया.

 

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छठी सदी ईसापूर्व फारस के शाह साइरस ने अंतालिया या अनातोलिया (इसे कई नामों से जाना जाता है) पर कब्जा कर लिया. करीब 200 सालों बाद 334 ईसा पूर्व में सिकन्दर ने फारसियों को हराकर इस पर अपना अधिकार किया. यहीं से होते हुए सिकंदर भारत तक पहुंचा था. अंतालिया रोमन साम्राज्य का हिस्सा रहा और फिर सेंट पॉल ने ईसाई धर्म का प्रचार किया और यहां ईसाई धर्म का बोलबाला रहा. यही वजह है कि यहां तमाम पुराने चर्च भी पाए जाते हैं.

आज हम जिन्हें तुर्क समुदाय के तौर पर जानते हैं, उनका तुर्की में आगमन 1071 से 1300 ईसवी के बीच हुआ, जो कि मूलता पूर्वी एशियाई थे. इसके साथ ही यहां पर इस्लाम धर्म पहुंचा. इसे उस समय सेल्जुक साम्राज्य के तौर पर जाना जाता था.

हालांकि, सेल्जुक साम्राज्य बहुत समय तक नहीं चल पाया और 1299 में यह क्षेत्र ऑटोमन साम्राज्य के नियंत्रण में आ गया. ऑटोमन या उम्मासी साम्राज्य को दुनिया में सबसे लंबे तक राज करने वाले साम्राज्यों में एक माना जाता है. 1366, 1396 और 1444 में यूरोप की तरफ से ऑटोमन साम्राज्य को परास्त करने की कोशिशें की गई, लेकिन कोई सफलता नहीं मिली.

 

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गजियांटेप कैसल संरचना इस भूकंप से नष्ट हो गई है


 

 

ऑटोमन शासन के दौरान ही 1453 में कुस्तुनतुनिया पर कब्जा किया गया, जिसे आज हम इंस्ताबुल के नाम से जानते हैं. उस्मानिया शासन ने अपने स्वर्णिम काल के दौरान यानी 1520-66 के बीच मध्य पूर्व (अरब, सीरिया, लेबनान, फिलिस्तीन, जॉर्डन और मिस्र का हिस्सा), पूर्वी यूरोप (तुर्की, ग्रीस, बुल्गारिया, हंगरी, मैसेडोनिया और रोमानिया) और उत्तरी अफ्रीका के बड़े क्षेत्रों पर नियंत्रण कर लिया था. इतने बड़े हिस्से पर शासन करने वाला साम्राज्य अपना नियंत्रण मुख्यतः उसी क्षेत्र से चलाता था, जो आज भूकंप की विभीषिका झेल रहा है.

 

प्रथम विश्व युद्ध ने बदलकर रख दी सूरत

 

1600 की शुरुआत में ईसाई यूरोप में पुनर्जागरण और औद्योगिक क्रांति की शुरुआत के साथ ऑटोमन शासन का पतन शुरू हुआ. 1699 में कार्लोविट्ज संधि पर हस्ताक्षर के बाद ऑटोमन साम्राज्य ने यूरोप से पीछे हटना शुरू कर दिया. जिन जमीनों पर कब्जा कर था, उन्हें यूरोप के विभिन्न देशों और राज्यों को लौटाया जाने लगा और ऑटोमन साम्राज्य 19वीं और 20वीं सदी की शुरुआत में अपनी धाक गंवाता गया. आखिरकार, 1914 से 1918 तक चले प्रथम विश्व ने पूरे क्षेत्र की सूरत ही बदलकर रख दी, जब ऑटोमन साम्राज्य ने खुद को केंद्रीय शक्तियों के साथ जोड़ा, तो यहीं से उसके पतन की शुरुआत हो गई.

 

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तुर्की के स्थानीय मीडिया के अनुसार, दक्षिणी तुर्की शहर इस्केंडरुन में घोषणा का कैथेड्रल लगभग पूरी तरह से ढह गया है


 

युद्ध खत्म होते-होते तुर्क साम्राज्य के बीच बचे खुचे हिस्से इराक, फिलिस्तीन और सीरिया आदि के रूप में विभाजित हो गए. प्रथम विश्व युद्ध खत्म होने के बाद मौजूदा तुर्की के कुछ हिस्से पर मित्र देशों का कब्जा रहा, खासकर ब्रिटेन और फ्रांस को ऐसा लगता था कि इसे ऑटोमन शासन के हाथों में नहीं छोड़ा जा सकता. इसी बीच, राष्ट्रीय आंदोलन शुरू हुआ और जंग के लंबे दौर के बाद सितंबर 1922 में तुर्की को विदेशी सेनाओं के कब्जे से मुक्त करा लिया गया है. इसके साथ ही ऑटोमन शासन का भी अंत हो गया और जुलाई 1923 में लॉजेन संधि के फलस्वरूप तुर्की को एक संप्रभु राष्ट्र के तौर पर अंतरराष्ट्रीय मान्यता मिली.

 

उसी वर्ष अक्टूबर में तुर्की एक गणराज्य बना और अंकारा को नई राजधानी बनाया गया. मुस्तफा कमाल देश के नए पहले राष्ट्रपति बने. उधर सीरिया में भी 1925 से 1927 के बीच फ्रांस के खिलाफ आजादी की लड़ाई चलती रही. इसके बाद 1936 में फ्रांस सीरिया से पीछे हट गया, लेकिन उसे पूरी तरह आजादी द्वितीय विश्व युद्ध के बाद 17 अप्रैल 1946 मिली. लेकिन पिछले एक दशक से यह देश गंभीर गृह युद्ध की चपेट हैं.

 

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माल्टा में 19वीं सदी की येनी मस्जिद (नई मस्जिद) को भारी नुकसान पहुंचा है. Türkiye के दक्षिणपूर्वी Malatya के शहर के केंद्र में येनी मस्जिद स्थित है.


 

सीरिया का प्राचीन शहर अलेप्पो गृहयुद्ध से बुरी तरह प्रभावित तो है ही, हालिया भूकंप ने यहां की तमाम ऐतिहासिक इमारतों को चोट पहुंचाई है. रोमन, सासानी, बीजान्टिन, इस्लामिक और तुर्क काल की धरोहरों के केंद्र इन दोनों देशों में ऐतिहासिक महत्व की जिन जगहों को नुकसान पहुंचा है, उनमें दियारबकीर किला और हेवसेल गार्डन कल्चरल लैंडस्केप भी शामिल है. विश्व धरोहर सूची में अन्य स्थल भी भूकंप का केंद्रबिंद रहे इलाके से ज्यादा दूर नहीं हैं.

 

यूनेस्को की तरफ से उनके बारे में जानकारी जुटाने की कोशिशें की जा रही हैं. हालांकि, कई बार क्षेत्रीय और जातीय संघर्षों के बीच यहां की प्राचीन और ऐतिहासिक धरोहरों पर खतरा मंडराता रहा है, लेकिन समय-समय पर उन्हें संरक्षित करने की कोशिशें भी की जाती रही हैं. लेकिन इस बार प्रकृति का वार क्रूरतम माना जा रहा है. अब यह तो आने वाला समय ही बताएगा कि क्या उजड़ा और क्या बचा.