देवबन्द में पिता और पुत्र के दो काव्य-संग्रह एक ही मंच से जारी

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 06-12-2025
Celebrating the legacy of words—two collections of poetry by father and son released from the same platform in Deoband
Celebrating the legacy of words—two collections of poetry by father and son released from the same platform in Deoband

 

आवाज द वाॅयस/देवबंद ( उत्तर प्रदेश)

शेख़ुल हिन्द हॉल का माहौल उस शाम कुछ यूँ था मानो अदबी फ़िज़ाओं में एक नई रोशनी उतर आई हो। मंच पर दो पीढ़ियाँ, दो सोचें और दो जज़्बे—एक पिता का तजुर्बा और एक बेटे का जौश—एक ही वक़्त में शब्दों की शक्ल में सामने थे। मौके पर वह ऐतिहासिक दृश्य मौजूद था जब पिता मास्टर शमीम करतपुरी के काव्य-संग्रह “तअ्बीरें” और पुत्र डॉ. काशिफ अख़्तर के संग्रह “ग़ज़ल के लहजे” का एक साथ विमोचन किया गया। ऐसा अवसर किसी भी शहर, किसी भी अदबी महफ़िल को हमेशा के लिए यादगार बना देने के लिए काफ़ी है।

f

समारोह की अध्यक्षता मशहूर शायर, शिक्षाविद और उर्दू अदब की महत्वपूर्ण आवाज़ डॉ. नवाज़ देवबन्दी ने की। उन्होंने अपने प्रभावशाली ख़िताब में कहा कि आज का दिन सिर्फ़ देवबन्द ही नहीं, बल्कि उर्दू साहित्य के लिए भी एक यादगार तारीख़ बनकर दर्ज होगा।

डॉ. नवाज़ देवबन्दी ने कहा, “यह बड़ा कम होता है कि एक ही मंच पर पिता और पुत्र, दोनों के काव्य-संग्रहों का एक साथ अनावरण हो। यह इस बात की दलील है कि अदब न उम्र का मोहताज होता है, न वक़्त का। एक ही ख़ानदान और एक ही माहौल में दो नस्लें, अपने-अपने अंदाज़ और फ़िक्र के साथ, अदब की ख़िदमत कर रही हैं,यही उर्दू की असल रूह है।” उन्होंने आगे कहा कि दोनों संग्रहों में जज़्बा, मोहब्बत, तजुर्बा और पेशकश का वह ख़ूबसूरत मेल मौजूद है जो उन्हें देवबन्द के अदबी सफ़र में एक मील का पत्थर बना देगा।

दिल्ली से तशरीफ़ लाईं प्रसिद्ध अफ़साना निगार डॉ. रक्षंदा रूही मेहदी ने अपने बामायने ख़िताब में इन दोनों संग्रहों को फ़िक्र और ज़बान के स्तर पर बेहतरीन कृति क़रार दिया। उन्होंने कहा, “डॉ. काशिफ अख़्तर कम उम्री में वह आज़ाद नज़्में लिख रहे हैं जो उन्हें अपनी पीढ़ी के शायरों में एक अलग और मज़बूत पहचान देती हैं।

हर नौजवान शायर की तरह इश्क़-मोहब्बत से शुरुआत करना स्वाभाविक है, लेकिन काशिफ के अंदाज़ में जो परिपक्वता झलकती है वह काबिले-तारीफ़ है। मुझे पूरा यक़ीन है कि वह अपने वालिद मास्टर शमीम करतपुरी के नक़्श-ए-क़दम पर चलते हुए ज़िंदगी के नए और गहरे पहलुओं को भी अपनी शायरी में शामिल करेंगे।”

समारोह में अदबी दुनिया से जुड़ी कई प्रतिष्ठित हस्तियाँ मौजूद थीं जिन्होंने अपने विचार रखते हुए इन दोनों पुस्तकों को उर्दू साहित्य की अनमोल और प्रभावपूर्ण धरोहर बताया। इनमें मुफ़्ती फ़ज़ील अहमद नासिरी (जामिया इमाम मुहम्मद अनवर शाह), सुहेल द्दीक़ी (मुस्लिम फ़ंड), शायर अज़ीर अनवर, अब्दुल हक़ सहर, ज़हीर अहमद, नाहिद समर और अन्य शोअरा-ए-कराम शामिल थे। सभी ने एकमत होकर कहा कि पिता-पुत्र की यह साहित्यिक प्रस्तुति उर्दू अदब की विरासत को मज़बूती देती है और नए रचनाकारों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनेगी।

d

हॉल में उपस्थित अन्य प्रमुख शख़्सियतों में मास्टर जावेद, अब्दुल्लाह राही, ज़ाहिद नईम, राहत ख़लील सिद्दीकी, शारिक़ जमाल, राहत इक़बाल, हकीम नज़ीफ़, वली वक़ास, अब्दुल्लाह राज़, अब्दुर रहमान सैफ़, दिलशाद खुश्तर, नबील मसऊदी, तनवीर अजमल, महताब आज़ाद, क़ारी वामिक़, मुफ़्ती रिफ़ाक़त, उमर इलाही, आलिमा सरवर, क़द्रुज़्ज़मा और कई अन्य नाम शामिल थे जिनकी मौजूदगी ने इस कार्यक्रम की गरिमा को और बढ़ा दिया।

कार्यक्रम का संचालन अपने ख़ूबसूरत अंदाज़ और बेहतरीन लफ़्ज़ों के साथ सय्यद वजाहत शाह ने किया, जिन्होंने पूरे समारोह को न सिर्फ़ मज़बूती से संभाला बल्कि माहौल को अदबी रंग में डुबोए रखा।शेख़ुल हिन्द हॉल में आयोजित यह कार्यक्रम न सिर्फ़ पिता-पुत्र की साहित्यिक पेशकश का उत्सव था, बल्कि यह इस बात की गवाही भी देता है कि देवबन्द की मिट्टी आज भी अदब और इल्म की खुशबू से महक रही है और आगे भी महकती रहेगी।