सेराज अनवर/पटना
बिहार के नामवर साहित्यकार अब्दुस्समद को आंध्र प्रदेश सरकार ने राष्ट्रीय इक़बाल सम्मान से नवाज़ा है.देश विभाजन पर लिखा गया उनका उपन्यास’दो गज़ ज़मीन’80 के दशक में काफी चर्चित रहा था और इसके लिए उन्हें साहित्य अकादमी अवार्ड से भी नवाज़ा गया था.
अब्दुस्समद इसके अलावा कई प्रसिद्ध अवार्ड से पहले भी नवाजे जा चुके हैं.राष्ट्रीय इक़बाल सम्मान अवार्ड मिलने पर बिहार के उर्दू साहित्यकारों में ख़ुशी है.उर्दू काउंसिल ने कहा है कि अब्दुस्समद ने बिहार की अदबी दुनिया का नाम मज़ीद रौशन कर दिया.यह उनकी अदबी अज़मत की दलील है.अ
ब्दुस्समद को एजाज़ के रूप में पांच लाख की राशि,प्रशस्ति पत्र और मेमोंटो मिलेगा.अब्दुस समद उर्दू अदब के एक बड़े फ़िक्शन निगार हैं.उर्दू के साथ हिन्दी और अंग्रेज़ी भाषा के भी ज्ञाता हैं.इनका एक उपन्यास ‘ख्वाबों का सवेरा’अंग्रेज़ी में अनुवाद हुआ जिसकी समीक्षा दिवंगत राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम ने की थी.
पहले अब्दुस्समद को जानिए
अब्दुस्समद का जन्म 18 जुलाई 1952 को बिहार के नालंदा में एक जमींदार परिवार में हुआ. वह विज्ञान के छात्र थे,लेकिन बाद में कला में चले गए और राजनीति विज्ञान में बीए (ऑनर्स) किया.मगध यूनिवर्सिटी में स्नातकोत्तर 1973 के टॉपर रहे हैं.राजनीति शास्त्र को अध्ययन विषय बनाकर पीएचडी की उपाधि प्राप्त की.
वे आरएन कॉलेज,हाजीपुर में राजनीति शास्त्र विभाग में रीडर के पद पर कार्यरत रहे हैं और ओरिएंटल कॉलेज पटना के प्राचार्य भी रहे.वह मगध विश्वविद्यालय, बोधगया (1995-2002) और बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर बिहार विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर (1997-1998) के सिंडिकेट सदस्य रहे हैं.
बिहार सरकार और बिहार उर्दू अकादमी की कई राज्य स्तरीय समितियों के सदस्य भी रहे.1993 से 1997 तक साहित्य अकादमी,नई दिल्ली के उर्दू सलाहकार बोर्ड के संयोजक और कार्यकारी बोर्ड के सदस्य के रूप में कार्य किया.
प्रतिष्ठित ज्ञानपीठ पुरस्कार समिति, नई दिल्ली (1994-1996) के बोर्ड में थे.वह साहित्य अकादमी द्वारा प्रकाशित अंग्रेजी जर्नल "उत्तरा" नई दिल्ली (1997-1998) के संपादक मंडल के अध्यक्ष भी थे.
अगस्त 1995 में अल्माटी, कज़ाकस्तान में एक अंतरराष्ट्रीय मीट में भारत का प्रतिनिधित्व भी इन्होंने किया इन्होंने बड़ी संख्या में वार्ताएं,चर्चाएं और साक्षात्कार दिए हैं.जो भारत के विभिन्न आकाशवाणी और टीवी स्टेशनों पर प्रसारित किए गए.
उनमें उल्लेखनीय है पटना टेलीविजन का "मंज़िल" नामक धारावाहिक.साहित्य की दुनिया में उनकी यात्रा तब शुरू हुई, जब वह 15 वर्ष के थे, उन्होंने एक लघु कहानी लिखी जो प्रकाशित हुई और पहला अवार्ड 1981 में इनके संग्रह ‘बारा रंगो वाला कमरा’ के लिए उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी पुरस्कार के रूप में मिला.उपन्यास दो गज़ ज़मीन ने उनकी दुनिया बदल दी.
इस बहुप्रशंसित उपन्यास का 21 भाषाओं में अनुवाद किया गया .इसे दूरदर्शन द्वारा एक धारावाहिक के लिए भी मंजूरी दी गई थी.
उपन्यास दो गज़ ज़मीन क्या है?
दो ग़ज़ ज़मीन उपन्यास 1970 में देश विभाजन के मुद्दे को लेकर लिखा गया है.इसकी पृष्ठभूमि बांगला देश और पाकिस्तान की है जो भारतीय उपमहाद्वीप के विशाल जन-समुदाय के एक वर्ग के जीवन और उनकी निष्ठा के जटिल मुद्दे का विश्लेषण करती है.
अपने चरित्र-चित्रण, प्रांजल शैली और समस्याओं के प्रभावी अंकन के लिए यह उपन्यास विशेष रूप से उल्लेखनीय है.संवेदनशील चित्रण के लिए यह उपन्यास उर्दू में लिखे गए भारतीय साहित्य को एक विशिष्ट योगदान माना गया है.
आस-पास की घटनाएं -सांप्रदायिक दंगे, भ्रष्टाचार, गरीबी और मानवीय मूल्यों की चिंताजनक गिरावट.निस्संदेह, इस अवधि को बहुत पहले के दशक तक बढ़ाया गया था, जिसमें 1971-72 का भारत-पाकिस्तान युद्ध, बांग्लादेश का निर्माण और परिणामस्वरूप उस देश के प्रवासियों, जिन्हें शिष्टतापूर्वक बिहारी कहा जाता है, का विनाश देखा गया.
मानवीय पीड़ा के इस उच्चारण ने लेखक को छू लिया.उनका उपन्यास दो गज़ ज़मीन इस पीड़ा की कहानी कहता है, जो संयोगवश एक 'प्रयोगशील' अमूर्त कलाकार के एक जिम्मेदार और प्रतिबद्ध लेखक के रूप में परिपक्व होने का प्रतीक है.
इसी उपन्यास में एक जगह लिखा है’वोटों की कीमत और इज्जत उसी समय तक है, जब तक अपने मुल्क में जम्हूरियत है. इसके लिए हमें गांधी, नेहरू और आज़ाद का मशकूर होना चाहिए वर्ना हालात दूसरे भी हो सकते थे.
अब देखो ना पाकिस्तान, हिंदुस्तान से उम्र में चौबीस घंटा बड़ा है, सीनियर है, वहां मुश्किलें भी नहीं जो यहां हैं, फिर भी वहां आदमियों की कोई इज़्ज़त और वक़त नहीं, उनकी वहां कोई पूछ नहीं-ये जो वोट है ना मियां, तो यह तराजू के पलड़े में जमा होकर इंसान का वजन बढ़ता है, वर्ना आज की दुनिया में कौन किसे पूछता है’1990 में दो गज़ ज़मीन को उर्दू में कई पुरस्कार दिए गए,प्रतिष्ठित साहित्य अकादमी अवार्ड से भी नवाज़ा गया.
यह उपन्यास अपने चरित्र-चित्रण,शैली की स्पष्टता और समस्याओं के चित्रण के लिए महत्वपूर्ण है.भावनात्मक बौद्धिक और ऐतिहासिक मजबूरियों द्वारा आकार की सांस्कृतिक पहचान की अपनी धारणा के लिए,इस उपन्यास को उर्दू में भारतीय साहित्य में एक उत्कृष्ट योगदान माना जाता है.
अब्दुस्समद की रचनायें और अवार्ड
बिहार के उर्दू जगत में ख़ुशी
आंध्र प्रदेश का सर्वोच्च पुरस्कार राष्ट्रीय इकबाल सम्मान अवार्ड से अब्दुस्समद को नवाज़े जाने से बिहार की उर्दू जगत में ख़ुशी की लहर है. इसे बिहार की श्रेष्ठ कथा साहित्य की स्वीकृति का ऐतराफ दबिस्तान ए बिहार के लिए गौरव की बात माना जा रहा है.
उर्दू काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष और बिहार सरकार के पूर्व मंत्री शमूएल नबी ने अब्दुस्समद को इकबाल सम्मान पुरस्कार मिलने पर खुशी व्यक्त की और कहा कि अब्दुस्समद निश्चित रूप से उर्दू साहित्य के एक महान लेखक हैं .
आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा दिये गये इकबाल सम्मान से उन्होंने निश्चित रूप से बिहार के साहित्य जगत का नाम और अधिक रोशन किया है. शमूएल नबी ने कहा कि चूंकि प्रोफेसर अब्दुस्समद से मेरी व्यक्तिगत सम्बन्ध हैं इसलिए मैं बेहद खुश हूं.
मैं उन्हें बधाई देता हूं. और उनके उज्जवल भविष्य के लिए शुभकामनाएं देता हूं. उर्दू काउंसिल ऑफ इंडिया के नाज़िम असलम जावेदां ने आवाज़ द वायस से कहा कि प्रोफेसर अब्दुस्स साहब ने हमेशा अपने श्रेष्ठ कृति से बिहार को वक़ार और साहित्यिक सम्मान दिलाया है.
इसमें कोई संदेह नहीं कि वह बिहार के प्रतिष्ठित फ़िक्शन निगार हैं.जिस पर उर्दू काउंसिल को गर्व है.उर्दू शोधकर्ता डॉ.नसीम अख़्तर बताते हैं कि यह अवार्ड सबसे पहले अली सरदार जाफ़री जैसी क़द्दावर अदबी शख़्सियत को दिया गया था और अब 2024 में अब्दुस्समद को दिया जाना पूरे बिहार के लिए फख्र की बात है.
पत्रकार डॉ. अनवारुल होदा कहते हैं कि प्रो.अब्दुस्समद को इकबाल सम्मान जैसा सर्वोच्च अवार्ड मिलना पूरे बिहार के लिए खुशी और गर्व की बात है. प्रो अब्दुस्समद बिहार के एक ऐसे चमकते सितारे हैं जिनकी चमक देश की सीमाओं से पार भी पहुंच रही है.
बिहार लोक सेवा आयोग के पूर्व अध्यक्ष और उर्दू निदेशालय के पूर्व निदेशक इम्तियाज अहमद करीमी ने कहा है कि प्रोफेसर अब्दुस्समद को आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा सर्वोच्च अवार्ड से सम्मानित किये जाने पर मुझे दिली मुसर्रत का अहसास हो रहा है.
वह एक महान कथा लेखक होने के साथ-साथ एक बहुत ही अख़लाक़ मंद व्यक्ति भी हैं. वे बिहार के साहित्य जगत के चमकते सितारे की तरह हैं. हमें उनके उच्च व्यक्तित्व पर गर्व है. उनके अलावा दैनिक समाचार पत्र फारूकी तंजीम के वरिष्ठ पत्रकार हारून रशीद ने भी प्रोफेसर अब्दुस्समद को इकबाल सम्मान जैसा प्रतिष्ठित पुरस्कार मिलने पर हार्दिक प्रसन्नता व्यक्त करते हुए बधाई दी है.