कोच्चि
भारतीय निशानेबाजी को ओलंपिक सहित प्रमुख प्रतियोगिताओं में कई महत्वपूर्ण पदक दिलाने में अहम भूमिका निभाने वाले पूर्व राष्ट्रीय कोच सनी थॉमस का बुधवार को दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया. वह 84 वर्ष के थे और कोट्टायम में उन्होंने अंतिम सांस ली.
उनके परिवार में उनकी पत्नी केजे जोसम्मा, बेटे मनोज सनी, सानिल सनी, और बेटी सोनिया सनी शामिल हैं.सनी थॉमस ने 1993 से 2012 तक भारतीय निशानेबाजों को कोचिंग दी और खेल के इतिहास में कई महत्वपूर्ण क्षणों के गवाह बने.
सनी थॉमस को 2001 में द्रोणाचार्य पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.
वह 2004 एथेंस ओलंपिक में कोचिंग स्टाफ का हिस्सा थे, जहां राज्यवर्धन सिंह राठौड़ ने पुरुषों की डबल ट्रैप में रजत पदक जीतकर निशानेबाजी में भारत का पहला ओलंपिक पदक जीता था.
बीजिंग ओलंपिक 2008 में, अभिनव बिंद्रा ने 10 मीटर एयर राइफल स्पर्धा में व्यक्तिगत स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रचा. बिंद्रा ने इस जीत का श्रेय थॉमस को दिया और उन्हें पिता तुल्य माना.
बिंद्रा ने अपने एक्स हैंडल पर लिखा, "प्रोफेसर सनी थॉमस के निधन के बारे में सुनकर मुझे गहरा दुख हुआ. वह सिर्फ एक कोच नहीं थे, बल्कि कई पीढ़ियों के भारतीय निशानेबाजों के लिए गुरु, मार्गदर्शक और पिता तुल्य थे.
उनके समर्पण ने भारत को अंतरराष्ट्रीय निशानेबाजी में एक नई पहचान दिलाई. मैं हमेशा उनके मार्गदर्शन और समर्थन के लिए आभारी रहूंगा."
सनी थॉमस के मार्गदर्शन में कई प्रमुख भारतीय निशानेबाजों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सफलता प्राप्त की, जिनमें राज्यवर्धन सिंह राठौड़, अभिनव बिंद्रा, विजय कुमार, जसपाल राणा, समरेश जंग, और गगन नारंग शामिल हैं.
2012 लंदन ओलंपिक में विजय कुमार ने रजत पदक और गगन नारंग ने कांस्य पदक जीते.
सनी थॉमस ने केरल के कोट्टायम स्थित उझावूर सेंट स्टीफंस कॉलेज में अंग्रेजी के लेक्चरर के रूप में अपने करियर की शुरुआत की थी. हालांकि, उनका वास्तविक जुनून निशानेबाजी में था और वह 1970 के दशक में राष्ट्रीय और राज्य चैंपियन रहे थे.
भारतीय राष्ट्रीय राइफल संघ (एनआरएआई) के अध्यक्ष कलिकेश नारायण सिंह देव ने सनी थॉमस के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए कहा, "उनके निधन से भारतीय निशानेबाजी में एक बड़ा शून्य पैदा हो गया है, जिसे भरना बहुत मुश्किल होगा। प्रोफेसर थॉमस निशानेबाजी के एक संस्थान थे और उनके योगदान के बिना भारत आज निशानेबाजी में शक्ति नहीं बन पाता."
सनी थॉमस का योगदान भारतीय निशानेबाजी में अमूल्य रहेगा, और उनका प्रभाव हमेशा निशानेबाजी की दुनिया में जीवित रहेगा.