आवाज द वॉयस/नई दिल्ली
भारतीय स्कूलों में ‘होमवर्क’ का मतलब कभी गणित के दोहराए गए सवालों और निबंध लिखने के पन्नों से होता था लेकिन अब यह धीरे-धीरे एक अधिक विविध और छात्र-अनुकूल अभ्यास के रूप में विकसित हुआ है, जो शिक्षा की विचारधारा में हुए व्यापक बदलावों को दर्शाता है.
पूरे भारत की कक्षाएं जब बदलते शिक्षण तौर-तरीकों के अनुसार खुद को ढाल रही हैं, तो ‘होमवर्क’ जैसे साधारण कार्य में भी धीरे-धीरे बदलाव आ रहा है. यह अब बोझिल काम न रहकर, बल्कि खोज, सहयोग और रचनात्मकता के लिए उपयोगी उपकरण बन गया है.
शिक्षाविदों का कहना है कि ‘होमवर्क’, जो पहले रटने पर आधारित था, अब नीतिगत बदलावों, डिजिटल उपकरणों और नए शिक्षण तौर तरीकों से बदल रहा है। ये रचनात्मकता, आलोचनात्मक सोच और छात्रों के कल्याण पर ज़ोर देते हैं।
राष्ट्रीय राजधानी के एक स्कूल के चेयरमैन और ‘दिल्ली स्टेट पब्लिक स्कूल मैनेजमेंट एसोसिएशन’ के अध्यक्ष आर सी जैन ने कहा, ‘‘पहले ‘होमवर्क’ का मतलब था पहाड़े याद करना, पैराग्राफ कॉपी करना या एक ही अभ्यास को बार-बार हल करना। आज कई स्कूल योजना आधारित कार्य, प्रस्तुति और सामुदायिक गतिविधियों पर जोर देते हैं।’’
इस सप्ताह की शुरुआत में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शिक्षकों को एक अनोखा ‘होमवर्क’ दिया था, जिसमें उन्हें अपने छात्रों के साथ मिलकर स्वदेशी उत्पादों का प्रचार करने और ‘मेक इन इंडिया’ और ‘वोकल फॉर लोकल’ को बढ़ावा देने के लिए अभियान चलाने को कहा गया था।
राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित शिक्षकों से बातचीत करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि शिक्षक आमतौर पर अपने छात्रों को ‘होमवर्क’ देते हैं, लेकिन वह इस बार शिक्षकों को भी एक ‘होमवर्क’ देना चाहते हैं।
ऐतिहासिक रूप से, स्कूल के छात्रों को दिया जाने वाला ‘होमवर्क’ की मात्रा चिंता का विषय रही है।
वर्ष 2018 में जारी वार्षिक शिक्षा स्थिति रिपोर्ट (असर) में पाया गया था कि शहरी भारत के 74 प्रतिशत छात्रों को रोज़ाना ‘होमवर्क’ दिया जाता है।इसमें सामने आया कि सीखने के स्तर में अब भी काफी अंतर है और केवल ‘होमवर्क’ की मात्रा बढ़ाने से कोई फायदा नहीं होता।
अमेरिका में नेशनल पीटीए (राष्ट्रीय अभिभावक शिक्षक संघ) और नेशनल एजुकेशन एसोसिएशन द्वारा बनाया गया “10-मिनट नियम” यह बताता है कि बच्चों को हर रात अपनी कक्षा के हिसाब से लगभग 10 मिनट ‘होमवर्क’ करना चाहिए। इसका मतलब है कि पहली कक्षा के बच्चों को 10 मिनट ‘होमवर्क’ करना चाहिए, जबकि बारहवीं क्लास के बच्चों को 120 मिनट तक ‘होमवर्क’ करना चाहिए।
भारत में ‘होमवर्क’ की अवधारणा भले ही बदल गई हो, लेकिन असल में कई भारतीय छात्र अक्सर रोजाना 3-4 घंटे ‘होमवर्क’ करने में बिताते हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि ‘होमवर्क’ की अवधारणा में बदलाव का एक कारण राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 भी है, जो छात्रों पर पढ़ाई का बोझ कम करने और गतिविधियां आधारित सीखने को बढ़ावा देने पर जोर देती है। कई राज्य बोर्ड और केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) ने इसके बाद परिपत्र जारी कर शिक्षकों से ऐसे काम देने को कहा है जो ‘मनोरंजक, प्रायोगिक और व्यावहारिक हों’।
सीबीएसई के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “सिर्फ याद की हुई बातें पूछने के बजाय अब ‘होमवर्क’ में छात्रों से अवधारणाओं के ‘क्यों’ और ‘कैसे’ को समझने की अपेक्षा की जाती है। छात्रों को पाठ्यपुस्तकें पढ़ने के बजाय, प्रयोग, प्रोजेक्ट और नवाचार चुनौतियों के माध्यम से सीखने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। नए तरीके आलोचनात्मक सोच, विश्लेषण और जानकारी की व्याख्या जैसी क्षमताओं को बढ़ावा देते हैं, जो अक्सर रटने की पढ़ाई से दब जाती हैं।’’
दिल्ली की एक अभिभावक दिव्यांशी श्रेया ने कहा, “हमें खुशी है कि बच्चे ‘होमवर्क’ के नाम पर घंटों तक कॉपी नहीं कर रहे हैं, लेकिन फिर भी कम से कम जूनियर कक्षाओं में माता-पिता को ‘होमवर्क’ का ज़्यादातर हिस्सा खुद करना पड़ता है या उसमें मदद करनी पड़ती है। काम ऐसा होना चाहिए जिसमें माता-पिता की निगरानी या थोड़ी मदद की जरूरत हो न कि ऐसा काम जिसमें माता-पिता को रचनात्मकता के नाम पर खुद ही सब कुछ करना पड़े।”