जब चौधरी खलीकुज्जमां ने काकोरी के क्रांतिकारियों की मदद की

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 19-04-2024
  Chaudhary Khalikuzzaman
Chaudhary Khalikuzzaman

 

साकिब सलीम

अनुशीलन समिति को आम तौर पर ‘बंगाल रिवॉल्यूशनरी’ कहा जाता है. यह 1905 के बंगाल विभाजन के मद्देनजर उभरी. ब्रिटिश राज के खिलाफ बम और पिस्तौल का उपयोग करके राजनीतिक हत्याओं का नेतृत्व करने के लिए समिति को अक्सर श्रेय दिया जाता है और यह सही भी है. संगठन ने स्वामी विवेकानन्द, बाल गंगाधर तिलक, अरबिंदो घोष और अन्य राष्ट्रवादी विद्वानों से प्रेरणा ली थी.

प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति तक यह संगठन बंगाल तक ही सीमित था. पंजाब में गदर या वाराणसी में स्थित क्रांतिकारी जैसे अन्य संगठन भी थे, लेकिन ये अलग-अलग पार्टियां थीं.

क्रांतिकारियों को लगा कि पार्टी का विस्तार उत्तर भारत, विशेषकर उत्तर प्रदेश में भी किया जाना चाहिए. इसके लिए जोगेश चंद्र चटर्जी को जिम्मेदारी देकर वाराणसी भेजा गया. उन्होंने यहां पहले से ही सक्रिय क्रांतिकारी समूहों की मदद से एक क्रांतिकारी पार्टी संरचना का आयोजन किया.

तब निर्णय लिया गया कि अनुशीलन समिति का एक चैप्टर लखनऊ में भी शुरू किया जाये. यह वर्ष 1923 था. महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन को वापस लेने और विकल्पों की तलाश से युवा असंतुष्ट थे. यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि कुछ महीनों बाद इस क्रांतिकारी संगठन और इसके सदस्यों ने एक बड़े हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (एचआरए) का गठन किया.

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जोगेश ने ढाका स्थित पार्टी नेताओं से लखनऊ में पार्टी समर्थकों के बारे में पूछा. सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति जिसका उन्होंने उल्लेख किया था, वह चौधरी खलीकुज्जमां थे. वह उस समय लखनऊ म्युनिसिपल बोर्ड के चेयरमैन और कद्दावर कांग्रेसी नेता थे.

दरअसल, कुछ महीने पहले गया में कांग्रेस अधिवेशन के दौरान जोगेश की मुलाकात खलीकुज्जमां से हुई थी. उस समय अनुशीलन समिति के वरिष्ठ नेताओं ने उन्हें क्रांतिकारी दल में पूर्णकालिक सदस्य के रूप में शामिल होने के लिए कहा था. उनका मानना था कि यह उनके लिए उपयुक्त नहीं था कि वे स्वयं हथियार उठा सकें, लेकिन पार्टी को भौतिक समर्थन देने का वादा किया गया था.

जोगेश ने बाद में याद करते हुए कहा, ‘‘मैं लखनऊ पहुंचा और नगर निगम बोर्ड लखनऊ के तत्कालीन अध्यक्ष चौधरी खलीकुजमान से मिला, जिनके लिए मेरे पास प्रतुल गांगुली का एक परिचयात्मक पत्र था. मैंने उन्हें अपने लक्ष्यों से अवगत कराया. वह मुझसे सहमत थे कि मुझे लखनऊ में एक इकाई स्थापित करनी चाहिए और उन्होंने वादा किया कि वह लखनऊ में रंगरूटों की कुछ वित्तीय जरूरतों को पूरा करने में मदद करेंगे.’’

जोगेश वाराणसी वापस गए और सचिन्द्र नाथ बख्शी को अपने साथ लखनऊ ले आए. बख्शी को खलीकुज्जमां से मिलवाया गया और पार्टी की औपचारिक शुरुआत की गई. जोगेश को स्वयं और पार्टी की आर्थिक मदद करने के लिए नगर निगम बोर्ड में रोजगार दिया गया था.

कुछ महीने बाद जोगेश और बख्सी को काकोरी ट्रेन डकैती के सिलसिले में गिरफ्तार कर लिया गया. जोगेश ने खलीकुज्जमां को संदेश भेजकर काकोरी मामले में क्रांतिकारियों के लिए वकील की व्यवस्था करने को कहा. उनके प्रयासों से ही वकील हरकरन नाथ मिश्र, सी.बी. गुप्ता और गोविंद बल्लभ पंत क्रांतिकारियों की पैरवी के लिए अदालत में उपस्थित हुए.

खलीकुज्जमां खुद अदालत की कार्यवाही देखने गए, जहां एक सीआईडी अधिकारी ने क्रांतिकारी की मदद करने के लिए उनसे पूछताछ की. बाद में उन्होंने याद करते हुए कहा, ‘‘मुकदमे के पहले दिन मैं अदालत गया और सी.आई.डी. प्रमुख तसद्दुक के पास बैठा था. जब मैंने उनसे आरोपियों के नाम बताने को कहा, तो उन्होंने जोगेश की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘निश्चित रूप से आप उन्हें जानते हैं चौधरी साहब, आपने इन्हें म्यूनिसिपल बोर्ड में पद दिया.’ मैं अप्रसन्न हो गया और जवाब दिया, ‘मैं कई अन्य लोगों को भी पद देता हूं.’’

यह प्रकरण उस लोकप्रिय आख्यान का संशोधनवादी इतिहास हो सकता है कि अनुशीलन समिति एक हिंदू पार्टी थी और मुसलमानों का उससे कोई लेना-देना नहीं था. खलीकुज्जमां जैसे लोग इस गुप्त संगठन के लिए काम कर रहे थे और यह बात हमें क्रांतिकारी पार्टी की धर्मनिरपेक्ष प्रकृति के बारे में बताती है.