राकेश चौरासिया / नई दिल्ली
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के महासचिव और पूर्व सांसद सीताराम येचुरी का गुरुवार को लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया। वह 72 साल के थे और यहां एम्स में उनका इलाज चल रहा था, जहां उन्होंने अंतिम सांस ली। उनके निधन के बाद वामपंथी राजनीतिक का निर्वात भरना आसान नहीं होगा। पांच दशकों की भारतीय राजनीति में सीताराम येचुरी ने अमिट छाप छोड़ी है।
निमोनिया और फेफड़े में संक्रमण
येचुरी को निमोनिया और फेफड़े में संक्रमण के बाद 19 अगस्त को एम्स में भर्ती कराया गया था। बाद में उन्हें आईसीयू में स्थानांतरित कर दिया गया था। वामपंथी नेता की हाल ही में मोतियाबिंद की सर्जरी हुई थी।
सीताराम येचुरी, भारत के प्रमुख वामपंथी नेता और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के वरिष्ठ नेता, का भारतीय राजनीति में अहम योगदान रहा है। वे अपने विचारों, आंदोलनों और सामाजिक न्याय के मुद्दों पर किए गए संघर्षों के लिए जाने जाते हैं। येचुरी का राजनीतिक सफर कई दशकों में फैला हुआ है, जिसमें उन्होंने भारतीय राजनीति को नई दिशा देने के प्रयास किए।
चेन्नई में 12 अगस्त 1952 को जन्मे येचुरी अगस्त 2005 से 2017 तक लगातार दो बार राज्यसभा के सदस्य रहे थे। वह अप्रैल 2015 से माकपा के महासचिव पद पर थे। इससे पहले 1992 से वह माकपा पोलित ब्यूरो के सदस्य और 1984 से माकपा की केंद्रीय समिति से सदस्य रहे थे।
येचुरी ने दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक की पढ़ाई की और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूरी की। उनके परिवार में पत्नी सीमा चिश्ती येचुरी और दो बेटे हैं। उन्होंने दिवंगत पार्टी नेता हरकिशन सिंह सुरजीत के मार्गदर्शन में सियासत में कदम रखा था। वह 2015 में प्रकाश करात के बाद माकपा महासचिव बने थे।
सीताराम येचुरी का भारतीय राजनीति में योगदान न सिर्फ वामपंथी आंदोलन के संदर्भ में देखा जाता है, बल्कि उन्होंने सामाजिक न्याय, समानता और लोकतांत्रिक मूल्यों को मजबूत करने के लिए भी लगातार संघर्ष किया है। उनका राजनैतिक जीवन प्रेरणादायक है और उनके विचार आज भी प्रासंगिक बने हुए हैं।
(एजेंसी इनपुट सहित)