डॉ. एसए अली: दोस्तों की किताबें उधार लेकर पढ़ीं, और बन गए डॉक्टर

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 09-05-2024
Dr. SA Ali
Dr. SA Ali

 

अजय शर्मा / मथुरा

‘‘भंवर से लड़ो तुंद लहरों से उलझो, कहां तक चलोगे किनारे-किनारे.’’ रजा हमदानी का यह शेर नौजवानों को ‘कुछ कर गुजरने’ की दावत देता है. कई युवा परिस्थितियों का हवाला देते हुए अपनी विफलताओं को ढंकने की कोशिश करते हैं. किंतु जैसे सोना आग में तपकर कुंदन बनता है, उसी तरह प्रतिकूल स्थितियों से जूझकर ही मंजिल मिलती है. कुछ ऐसा ही डॉ. एसए अली जीवन वृत है. अली का बचपन कमजोर परिवार से होने कारण मुफलिसी के दौर से गुजरा, मगर उन्होंने हार नहीं मानी. हर मुश्किल से जूझते हुए उन्होंने अपना मुकाम हासिल कर ही लिया, जो उन्होंने अपनी जिंदगी के लिए तय किया था.

डॉ. एसए अली अब मथुरा में रहते-बसते हैं और टीवी सैनिटोरियम वृंदावन के पूर्व चिकित्सक हैं. उनका मथुरा के बायपास रोड पर गोवर्धन चौराहा के पास एसकेएम क्लीनिक है. वे प्रोफेसर डॉक्टर हैं. उनके पास एमबीबीएस, एमडी, डीएनबी, एमएनएएमएस की डिग्रियां हैं. उन्होंने अल्ट्रासाउंड और कार्डियोलॉजी में भी अलग-अलग डिप्लोमा किया है.

डॉक्टर अली अब तक डेढ़ लाख से ज्यादा पेशेंट को देख चुके हैं, जिनका रिकवरी रेट 99 फीसद है. डॉ. अली के अनुभव को देखते हुए, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने उन्हें प्रोफेसर का दर्जा दिया है, जो 5 साल के लिए केवल 10 डॉक्टरों को दिया जाता है. उनकी अवधि 2021 से 2026 तक के लिए है.

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मगर, अली के लिए इतनी पढ़ाई, इतनी डिग्रियां और ये मुकाम बिल्कुल आसान नहीं था. डॉक्टर अली का जन्म आंध्र प्रदेश के कटप्पा  के एक साधारण परिवार में हुआ और उनके पिता पेशे सेएक दर्जी थे. उन्होंने अपने बचपन के बारे में बताया कि वे सामान्य बच्चों के खेल-खिलौने के साथ बड़े हुए. पिता की कम आमदनी के कारण परिवार की माली हालत बहुत अच्छी नहीं थी. इसलिए उनके लिए उच्च शिक्षा प्राप्त करना किसी सपने से कम नहीं था.

उनके पिता का सपना था कि अली बड़े होकर वकील बनें. इसके लिए उन्होंने अली को बचपन से ही तालीम की अहमियत के बारे में समझाया. अपने वालिद की ख्वाहिश को अंजाम तक पहुंचाने के लिए जब अली ने अपनी पढ़ाई की शुरुआत की, तो मुश्किलें इतनी कि बेशुमार.

अली अपने तंगी-तुर्सी को याद करते हुए बताते हैं कि संशाधनों के अभाव का आलम यह था कि पढ़ने के लिए किताबों का इंतजाम कर पाना भी कठिन था. तो उन्होंने अपने दोस्तों से किताबें, नोट्स और पढ़ाई का दीगर मैटीरियल लेकर अध्ययन किया. कहीं जाना होता था, तो पैदल चल पड़ते या फिर दोस्तों की साईकिल मांग लेते. किराए के पैसे भी नहीं थे.

फिर भी, उन्होंने अपने सपनों को पंख देने के लिए हर रोज 18 घंटे से ज्यादा पढ़ाई की. इस बीच उन्होंने फैसला किया कि वे वकील नहीं, वरन हकीम बनेंगे. फिर उन्होंने एमबीबीएस में दाखिला लिया. वे कहते हैं कि ‘‘बचपन में मेरे सामने जो चुनौतियां आईं, उससे मुझे लगता है कि मुझे भी लोगों की मदद करनी चाहिए. और अब इसी जज्बे से काम करता हूं.’’

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उन्होंने बताया कि ‘‘वृंदावन आने का मतलब भी केवल सेवा था.’ सच में, कहां आंध्र प्रदेश और कहां वृंदावन. वे कहते हैं, ‘‘यहां आने में जाति या धर्म का कोई स्थान नहीं था.’’ इसीलिए उन्हें केवल मथुरा या उत्तर प्रदेश में ही नहीं, देश भर के लोग जानते हैं.

अपने गुजरे वक्त को याद करते हुए वे कहते हैं, ‘‘कॉलेज के दिनों में जिन प्रोफेसर्स और टीचर्स ने मुझे पढ़ाया. वे बहुत अच्छे थे. उन्होंने मेरे बचपन की हालत देखकर मेरे साथ हरसंभव सहयोग किया. मैंने भी अपना पूरा समय पढ़ाई को समर्पित किया.

इस तरह, मैं टीबी रोग का डॉक्टर बन पाया. इसके अलावा, मैं हृदय रोगियों को भी देखता हूं, जिसकी मैंने पढ़ाई की है.’’ वे अध्ययन में सभी साथियों और शिक्षकों का आभार प्रकट करते हुए कहते हैं, ‘‘मैं उनका तहे-दिल से शुक्रगुजार हूं.’’

जात-पांत के बारे में डॉ. अली का मानना है कि जो लोग जाति या धर्म के बारे में सोचते हैं, उन्हें मेंटल हेल्थ की प्रॉब्लम बहुत रहती है. वे कहते हैं कि भगवान ने हर किसी को इंसान को बनाया है. आस्था आपकी अपनी हो सकती है. और आस्था वह है कि जहां साइंस खत्म होती है,आस्था वहां से शुरू होती है.

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युवाओं के बारे में उनका ख्याल है कि उनका एक बेटा है, जिसे उन्होंने जीवन में कभी भी, किसी भी चीज को पढ़ने, देखने या सोचने के लिए नहीं रोका और वह अब एमबीए कर रहा है. इसी तरह वे सभी युवा भारतीयों में अपना बेटा देखते हैं.

युवाओं से उन्होंने कहा कि वे समाज से जुड़ें और समाज को बेहतर स्थिति में ले जाने का प्रयास करें. वे युवाओं के लिए कहते हैं, ‘‘जब भी संभव हो, साईकिल का इस्तेमाल करें, पैदल चलें और कार का इस्तेमाल जरूरत पड़ने पर ही करें.

इससे उनका स्वास्थ्य सुदृढ़ होगा और ईंधन की खपत घटने से पर्यावरण का भी संरक्षण होगा.’’ उन्होंने कहा कि पैदल चलने से आपको जीव-जंतु और हरे-भरे पेड़-पौधों की वृक्षावली दिखाई देगी, जो आपके चित्त और मनोदशा पर सकारात्मक प्रभाव डालते हैं.

उन्होंने पर्यावरण को बचाने की अपील करते हुए कहा कि नदी-नाले, कुएं-तालाब से जल का स्तर बढ़ता है. इस पर सिर्फ विचार ही नहीं, हम सभी को आज से ही उनके संवर्द्धन के सही प्रयास करने चाहिए. उन्होंने कहा कि लोगों के समूह को स्वच्छ राजनीति के साथ सामाजिक मूल्यों का ध्यान रखना चाहिए. मानवता को जिंदा रखने के लिए राजनीतिक बहस, राजनीतिक रैलियां और सोशल मीडिया के माध्यम से पर्यावरण पर सार्थक चर्चा जारी रहनी चाहिए.

उनका हमपेशा डॉक्टरों के लिए संदेश है कि वे समाज के गरीब वर्ग और सरकारी स्कूलों में जाएं और वहां लोगों व बच्चों को बीमारियों के बारे में जागरूक करें. महिला समूहों को अपने से जोड़ें, क्योंकि जागरूकता के बाद महिलाएं अपने पूरे परिवार को स्वस्थ जीवन दे सकती हैं.