शियाओं को भी नौकरियों में आरक्षण मिलना चाहिएः कल्बे जव्वाद

Story by  मुकुंद मिश्रा | Published by  [email protected] | Date 26-02-2021
समुदाय की चिंताः मौलाना कल्बे जव्वाद
समुदाय की चिंताः मौलाना कल्बे जव्वाद

 

शिया स्‍कॉलर सैयद कल्बे जव्‍वाद देश की जानी-मानी शख्सियत हैं. पाकिस्तान और अफगानिस्तान में शिया समुदाय पर हो रहे जुल्मो-सितम की कड़ी मुखालफत करने वाले कल्बे जव्वाद मुसलमानों की तरक्की के लिए तालीम को बेहद अहम मानते हैं. उनसे बात की आवाज- द वॉयस के हिंदी संपादक मलिक असगर हाशमी ने. पेश हैं चुनिंदा अंश का दूसरा हिस्साः

सवालः कल्बे सादिक साहब का गुजर जाना कौम के लिए बड़ा नुक्सान है. क्या इसकी भरपाई मुमकिन है?

सैयद कल्बे जव्वाद: मेरे चचा थे, मुझे उनसे बेहतर कौन जानेगा. पूरी जिंदगी उन्‍होंने इंसानियत की खिदमत में गुजारी. कोई पाबंदी नहीं थी कि मुसलमान हो तो उसकी मदद करें या शिया हो तो उसकी मदद करें. वह हरेक की मदद किया करते थे. वह एजुकेशन लाइन में रहे और उनकी कोशिश थी कि शिक्षा सब तक पहुंचे, चाहे वह मुसलमान हो या गैर-मुस्लिम.

अब वो शख्सियत तो आना मुश्किल है, अब यही हो सकता है कि उनका जो मिशन है, उसको हम पूरा करे. उनका मिशन था इंसानियत का पैगाम पूरी दुनिया में पहुंचे, एजुकेशन पूरी दुनिया में पहुंचे. उनका मिशन था कि गरीबी दूर हो.

इंसानियत के दो दुश्‍मन हैं, एक गरीबी और दूसरी जहालत. दोनों अगर दूर हो जाए तो यह दुनिया जन्‍नत बन जाएगी. इसी मिशन के लिए उन्होंने स्‍कूल कायम किए, तिजारत के लिए लोगों को आगे बढ़ाया. उन्होंने लोगों से कहा कि तिजारत करो, जिससे हालत सुधरे. छोटी-छोटी दुकानें खोलो, अगर तुम मेहनत ईमानदारी से काम करोगे तो छोटी दुकान ही बड़ी बन जाएगी. अब उनकी भरपाई इसी तरह मुमकिन है कि हम उनके बताए रास्ते पर चलें.

सवालः कल्बे सादिक साहब लिबरल मजहबी रहनुमा माने जाते थे. हिंदू-मुसलमान, शिया-सुन्नी के बीच पुल की तरह थे. उनके गुजर जाने के बाद खुद को क्या उनकी भूमिका में देखते हैं?

कल्बे जव्वादः हम सबका मिशन भी यही है कि अपने चचा के मिशन को आगे बढ़ाया जा सके. मेरे फादर वालिद साहब भी बहुत ज्‍यादा मकबूल थे. एक एक्सिडेंट में जब उनका इंतकाल हुआ तो उनके जनाजे में दस लाख लोग इकट्ठा हुए. जब चचा दुनिया से रुखसत हुए तो उनके जनाजे की नमाज में हर धर्म, मजहब से लोग इकट्ठा हुए और बड़ी तादाद में लोग आए थे.

हमारा मिशन भी यही है कि आपस में मोहब्बत पैदा हो, इख्तलाफ दूर हो, अमन पैदा हो. इसको हम तहजीब कहते है. इंडिया की तहजीब भी यही है, हमेशा भारत ने अपने दुश्‍मनों को गले लगाया है, दोस्‍ती का पैगाम दिया है. आज भी दोस्‍ती का पैगाम दे रहा है. चीन लगातार बदमाशियां कर रहा है, फिर भी मुल्‍क की तरफ से कुछ गलत नहीं किया गया, कोशिश यही हो रही है कि बातचीत के जरिये से मसले को हल किया जाए.

पाकिस्‍तान की वजह से आतंकवाद फैलता है पूरे हिन्‍दुस्‍तान में, लेकिन फिर भी इंडिया चाहता है कि मेलमिलाप हो, खून न बहे. और कत्‍ल न हो और लोग मारे न जाए. यही हमारा मिशन है और हर धर्म का यही मिशन है. हर मौलवी का भी यही मिशन होना चाहिए.

सवालः अब उनके गुजर जाने के बाद शिया कम्युनिटी की मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड में नुमाइंदगी की क्या हैसियत रहेगी ?

कल्बे जव्वादः शिया नुमाइंदगी में है उसका संस्थापक सदस्य मैं भी हूं, उसके अलावा कई उलेमा हजरात हैं शिया, जो उसमें मौजूद है. मेरे फादर जो थे, वह संस्थापक उपाध्यक्ष थे. मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड पांच आदमियों ने मिलकर बनाया था. जिसमें मौलाना तैयब साहब थे, इसमें मेरे फादर थे. उनके गुजर जाने के बाद मेरे चचा हुए.

वैसे तो अभी कोई वाइस प्रेसिडेंट नहीं है, लेकिन मेंबर काफी शिया हैं. मैं भी वहां का मेंबर हूं. हमलोग अपने फादर के मिशन के साथ है, हम लोगों ने हमेशा उनकी नीति का अनुसरण किया है.

सवालः आपने 2000में तंजीम-ए-पसदरान-ए-हुसैन नाम का संगठन कायम किया था, अब उसकी क्या हैसियत है?

कल्बे जव्वादः असल में, वक्‍फ की जायदादों पर बहुत नाजायज कब्‍जे थे. उस समय हमने नौजवानों के तंजीम (संगठन) बनाए थे. जिनका काम था कि वक्‍फ की हिफाजत करें. बड़ा इमामबाड़ा, छोटा इमामबड़ा यह भी वक्‍फ है. और बहुत बड़ा वक्‍फ है जो सिकंदराबाद में है, जहां पर हमारा मातम होता है, ताजिया रखा जाता है वहां पर लोगों का कब्‍जा था.

इसलिए हमने नौजवानों की तंजीम बनाई थी कि वह कौम की हिफाजत करें. उसी पसदरान-ए-हुसैन के जरिये से वहां सिकंदरबाग के इमामबाड़े को भी खाली करवाया. अल्‍लाह का शुक्र है कि वहां मजलिसें हो रही है. बहुत खूबसूरत इमामबड़ा है. छोटे इमामबाड़े के बाद जो सबसे बेहतरीन इमामबाड़ा है, वो सिंकदरबाग का, जिसको आजाद कराया हमने, पसदरान-ए-हुसैन के नौजवान हमारे साथ साथ दे.

इसी तरह से बहुत बड़ी जमीन है तकरीबन 25बीघा जमीन, आलम नगर में, इसी अंजुमन के जरिये से हम लोगों ने आजाद कराई और वहां पर इसी तरह से कई चीजों पर वहां काम किया और वक्‍फ को कब्‍जे से आजाद कराया. अब तो तंजीम उस तरह से एक्टिव नहीं है, फिर भी नौजवान हमारे साथ है.

दिल्ली में एक बहुत बड़ी दरगाह है, दरगाह ए साहेब मरकज, उस पर बहुत बड़ा कब्‍जा था, करीब दस एकड़ में, अल्‍लाह का शुक्र है कि दिल्‍ली के बीच में, दस एकड़ जमीन हमने आजाद कराई है. इतनी कीमती जमीन है जिसकी कीमत का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है. वहां जल्‍द ही नौजवानों के लिए यूनिवर्सिटी कायम होगी.

यूनिवर्सिटी का नाम है कर्बला यूनिवर्सिटी. कर्बला के नाम पर हम लोगों ने रखा है, बहुत बड़ी यूनिवर्सिटी होगी इंशाल्‍लाह जल्‍द शुरू होगी. हर मजहब के लोग जाएंगे और यूनिवर्सिटी के जरिये सबकी खिदमत होगी.

सवालः कर्बला यूनिवर्सिटी के बारे में बताइए.

कल्बे जव्वादः यूनिवर्सिटी का फाउंडेशन स्‍टोन रखा जा चुका है. इसमें किसी भी मजहब का व्‍यक्ति दाखिला ले सकता है और हम वहां पर यह भी कोशिश करेंगे कि हमारी जो शिया कौम है, उसमें भी इल्‍म फैले. इसके अलावा मु‍सलमानों में भी फैले और दूसरे मजहबों में भी ईल्‍म फैले. जल्‍द ही दो-तीन साल में खुल जाएगी.

सवालः यूनिवर्सिटी में खासकर इस्‍लाम के बारे में, शिया कम्‍युनिटी के बारे में कुछ खास बातें होगी या और क्‍या हो सकता है?

कल्बे जव्वादः उसमें धार्मिक बातें भी होगी. दीनी तालीम भी होगी. आज की मॉर्डन तालीम है, उसे भी नौजवानों को पढ़ाया जाएगा. हमारे छठें इमाम जाफर सादिक उन्‍होंने मदीने में यूनिवर्सिटी कायम की थी, वह भी 1350 साल पहले. उसमें कुरान भी पढ़ाया जाता था, हदीस भी पढ़ाई जाती थी. आपको ताज्‍जुब होगा कि वहां कैमिस्‍ट्री, ज्‍योग्राफी, एस्‍ट्रॉनोमी और ज्‍योलॉजी सब पढ़ाई जाती थी. हम चाहेंगे कि उन्‍हीं की सीरत पर अमल करते हुए हर तरह की इल्‍म वहां दी जाए.

सवालः शिया समुदाय के लिए आपकी तरफ से और क्या-क्या काम चल रहा है?

कल्बे जव्वादः हमारे संसाधन सीमित हैं. हमारा इदारा है नूर ए हिदायत, वह इमाम ए दमाना ट्रस्‍ट के नाम से है. एक और इदारा है, जिसके जरिये एजुकेशन में मदद करते हैं. अगर किसी बच्‍चे का दाखिला नहीं होता है, तो उसके दाखिले में मदद करते हैं. लोगों को मेडिकल की भी फैसिलिटी देते है. एजुकेशन और मेडिकल, दोनों बहुत अहम हैं.

गरीब लोग बड़े अस्‍पतालों में जा नहीं सकते, तो उसमें हम मदद करते हैं. हमने कार्ड सिस्‍टम रखा है और अस्‍पतालों के साथ एग्रीमेंट किया है कि इससे उन्हें 50फीसद या 40फीसद की छूट मिल जाती है. और यह मदद हर धर्म के लोगों को देते हैं.

सवाल: आप कहते हैं, कौम को भीख नहीं, हक चाहिए, किस हक की बात करते हैं आप?

कल्बे जव्वादः हमने कहा है कि अगर नौकरियों में रिजर्वेशन दे रहे हैं तो शिया कौम को भी मिलना चाहिए. मुसलमानों को रिजर्वेशन मिले तो उसमें 20परसेंट शिया कौम के लोग हैं, उनको मिलना चाहिए. दूसरी, हमने अवकाफ को लेकर आंदोलन चलाया था. अगर अवकाफ सही तरीके से चले तो इतनी बड़ी-बड़ी जमीनें है, और वह सही तरीके से चले तो हमारी कौम को कोई दिक्‍कत नहीं आएगी. शिया हो या सुन्‍नी, अपने कदमों पर खड़े हो सकते है.

सवालः इस्लाम की हर आलोचना को इस्लामोफोबिया बताकर पल्ला झाड़ लेना कितना सही है ?

कल्बे जव्वादः इस्‍लाम बहुत ही उदार मजहब है. बहुत मुहब्‍बत का मजहब है यह. एक कुत्‍ते की भी जान बचा ले तो रसूलल्‍लाह फरमाते है कि जन्‍नत वाजिब है इसके ऊपर. इस्‍लाम के बारे में अल्‍लाह फरमा रहा है कि तुम बेहतरीन कम्‍युनिटी हो, तुमको दूसरों की खिदमत के लिए पैदा किया है, एक पहलू यह है दूसरे को नुक्सान न पहुंचाओ.

लेकिन केवल बात इतनी नहीं है कि दूसरे को नुक्सान नहीं पहुंचाओ, इस्‍लाम में इससे आगे की बात है कि उसके फायदे के लिए काम करें. अगर तुम्‍हारा पड़ोसी कोई हिंदू है और तो खाने की जरूरत है तो हमारी ड्यूटी है कि उसकी मदद करें. बीमार है , किसी परेशानी में है तो हमारी ड्यूटी है कि हम जाकर खिदमत करे. मदद करे.

यहां तक कि आज कुछ न समझ में आए तो यह समझ लीजिए कि इतनी ऊंची दीवार न बनाओ कि धूप रुक जाए. इतना ऊंचा मकान न बनाओ कि पड़ोसी की हवा रुक जाए. अगर कोई अच्‍छी चीज पकाओ और उसकी खूशबू पड़ोसी तक जा रही है तो तुम्‍हारी ड्यूटी है कि जो पकाया है, उसे पड़ोसी तक पहुंचाओ. यह है इस्‍लाम.

अगर इस्‍लाम की तालीम के ऊपर अमल करें तो मुसलमान को देखकर लोग समझ जाएंगे कि असली इस्‍लाम क्‍या होता है. यह नहीं कि किसी को मार दिया और कह‍ दिया कि हम जिहादी है या हम सच्‍चे मुसलमान है. नहीं, ऐसा करने वाले इस्‍लाम के दुश्‍मन है.

सवालः मदरसों के आधुनिकीकरण की कोशिशें चल रही हैं, इसपर आपका क्या नजरिया है? मदरसों को क्या जदीद तालीमी निजाम से जोड़ना उचित रहेगा?

कल्बे जव्वादः जदीद तालीम तो होना चाहिए, मैंने खुद कहा. इस्‍लाम में इसकी तारीख मौजूद है. दीनी तालीम के साथ जदीद तालीम भी जरूरी है, नहीं तो मुसलमान दुनिया से कटकर रह जाएगा. मदरसों में कंप्‍यूटर होना चाहिए. कंप्‍यूटर आज नहीं जानते है तो आप कुछ नहीं जानते है. और भी मॉर्डन तालीम है, वह होना चाहिए, इसी के साथ दीनी तालीम भी जरूरी है.

सवालः क्या आपको आबादी के अनुपात से मुसलमानों का तालीम में प्रतिशत संतोषजनक लगता है? किस तरह मुसलमानों का रूझान तालीम को लेकर बढ़े ?

कल्बे जव्वादः मुश्किल यह है कि तालीम महंगी बहुत हो गई है. अब हमारे पास भी लोग आते है, आज ही एक मसला लेकर आया था कि साल भर की फीस 40हजार है. एक बच्‍चा है तो 40हजार दे भी देगा अगर किसी का तीन बच्‍चा है तो... गरीब आदमी अफोर्ड नहीं कर पा रहा है और गवर्नमेंट स्‍कूल के स्‍डैंडर्ड बहुत खराब हैं.

मजबूरन प्राइवेट स्‍कूलों में पढ़ाते है. मगर फीस ही इतनी ज्‍यादा होती है कि बच्‍चों को गरीब लोग वहां पढ़ा नहीं सकते है. गवर्नमेंट से गुजारिश है कि गवर्नमेंट स्‍कूलों की स्‍डैंडर्ड प्राइवेट स्‍कूलों के बराबर करे. ताकि गरीब लोग भी सही एजुकेशन ले सके.

बहुत से बच्‍चे इसलिए अच्‍छी एजुकेशन से दूर रहते है क्‍योंकि मां-बाप फीस नहीं दे पाते है. इसमें एजुकेशन माफिया भी हर साल फीस और कोर्स बदल देते है. पहले एक कोर्स को पूरा करने के बाद दूसरा भी पढ़ लेता था. आज हर साल कोर्स बदल जाता है. क्‍योंकि इसके पीछे एजुकेशन माफिया है, एक ही कोर्स को दूसरे साल पढ़ाया जाएगा तो उसको क्‍या फायदा होगा.

नई किताबें छापते है और नई किताब पढ़ाते है. इसमें कुछ सरकारी मुलाजिम भी शामिल होते है. गरीबों को अच्‍छी एजुकेशन देने के लिए जरूरी है कि कोर्स नहीं बदले. सरकारी स्‍कूल के स्‍टैंडर्ड को हाई किया जाए ताकि कम पैसे में गरीब बच्‍चे को अच्‍छी तालीम हासिल हो.