शाॅल...एक दिलकश चुन्नी

Story by  मुकुंद मिश्रा | Published by  [email protected] | Date 12-03-2021
शाॅल...एक दिलकश चुन्नी
शाॅल...एक दिलकश चुन्नी

 

गुलरूख जहीन / नई दिल्ली

किसी ने कहा था कि इस बार बहुत ठंड होगी. गर्म कपड़े के व्यापारी और पर्यावरणविदों ने भी कुछ ऐसी ही भविष्यवाणी की थी. बावजूद इसके इस बार सर्दियों में शादियां का मौसम भी ठीक-ठाक रहा. कोरोना के साए में होने वाली शादियों में भीड़ तो पहले जैसी नहीं दिखी, फिर भी लोग विवाह समारोहों में खासी संख्या में जुटे.

दिल्ली में सर्दियों के दिनों में लोग स्वेटर और कोट में नजर आए. विशेषकर शादी समारोहों में. वैसे सर्दियों में महिलाओं को गर्म शॉल पहनना पसंद है, क्योंकि यह आरामदायक होने के साथ गर्म, मनभावन डिजाइन और आकर्षक रंगों में उपलब्ध होते हैं. कुछ शाॅल तो समारोह के हिसाब से ओढ़े जाते हैं. दिन में भी, कुछ महिलाएं दुपट्टे के बजाय शॉल ओढ़ना पसंद करती हैं.

साधारण ऊन के शॉल ठंड से भी बचाते हैं और व्यक्तित्व पर सुखद प्रभाव डालते हैं. बाजार में फैंसी, मखमली सामग्री और काम से बने शाॅल खूब पसंद किए जाते हैं.कश्मीरी शॉल पिछले तीन शताब्दियों से पसंद किए जा रहे हैं. यह कश्मीरियों द्वारा बनाए जाते हैं और काफी प्रसिद्ध और मूल्यवान भी होते हैं. सर्दियों में शाॅलों से दुकानें सजी रहती हैं.

दिल्ली के चैंदनी चैक इलाके में कश्मीरी शाॅल गर्मियों में भी मिल जाते हैं. इसके अलावा मुस्लिम बहुल क्षेत्र के दुकानदार कश्मीरियों के बनाए शाॅल बहुतायत में रखते हैं. पश्मीना शॉल ज्यादा पसंद किए जाते हैं, लेकिन इसकी कीमत काफी ज्यादा होती है.

ये शॉल हाथ और मशीन द्वारा बनाए जाते हैं. कश्मीर में मुगलों का शासन रहा है. इसके अलावा यह इलाका अफगान, सिख और डोगरा के प्रभाव में भी रहा है. कश्मीरी  शॉल की बुनावट में इसकी झलक देखी जा सकती है. दूसरे शब्दों में, यह बनावट और पैटर्न के लिहाज से उम्दा होता है. 17 वीं शताब्दी से पहले कश्मीर के इतिहास में भी इसका उल्लेख है.

जबकि यह 16 वीं शताब्दी से बनाया जा रहा है. इस उद्योग में लगभग 500,000 लोग कार्यरत हैं. स्थानीय कारीगरों द्वारा बनाई गई शॉल विदेशों में भी खासी पहचान रखती है. पश्मीना शाॅल के अलावा ऊन, कपास, हैमर, तराशी और एम्बॉस के अलावा, खादी और चैलासी के भी शॉल होते हैं.