राकेश चौरासिया / नई दिल्ली
भारतीय उप महाद्वीप सहित विश्व के विभिन्न स्थानों पर चैत्र मास की शुक्ल पक्षीय प्रतिपदा पर नव संवत्सर 2078 का उदय हुआ. वैदिक सनातन हिंदू धर्मावलंबियों द्वारा नवरात्रि के प्रथम दिवस पर शक्ति की अधिष्ठात्री मां दुर्गा के नौ रूपों में प्रथम मां शैलपुत्री का आह्वान किया गया. मंदिरों, आराधनागृहों और घरों में कलश स्थापन और खेतड़ी बीजन किया गया. नव संवत्सर के प्रारंभ पर उपासनागृहों, संस्थानों और घरों में भगवा झंडोत्तोलन किया गया. वैश्य वर्ग ने अपने नए बही-खातों का पूजन कर सनतान वित वर्ष की शुरुआत की.
कोरोना काल में भी सोशल डिस्टेंसिंग और गाइडलाइन की पालना के साथ नवरात्रि की उमंग और उल्लास बना हुआ है. देवालयों में और गृहस्थों ने एक दिन पहले ही आवश्यक सामग्री का प्रबंध कर आज सुबह स्नान और प्रक्षालन के बाद पूजा शुरू की.
पर्वतराज हिमालय की पुत्री के रूप जगद जगदंबा ने जन्म लिया, जो शैलपुत्री कहलाईं. वे प्रथम दुर्गा हैं और पहले दिन उन्हीं का आह्वान किया गया. प्रथम दुर्गा की रूपराशि सरल, सुंदर, मोहक है. वे अपने वाहन नंदी पर सवार हैं. उनके दाएं हाथ में सत, रज, तम का संहारकर्ता त्रिशूल और बाएं हाथ में श्री एवं सौभाग्यदाय कमल पुष्प शोभित है.
मंदिरों और घरों में प्रक्षालन और स्वच्छता के बाद मां शैलपुत्री स्वरूपी और अन्य देवगणों का प्रक्षालन, श्रंगार, वस्त्राभूषण अर्पित किए गए. उन्हें अक्षत, चंदन, सिंदूर, धूप, गंध, पत्र-पुष्प, नैवेद्य अर्पित किए गए. उनकी शंखनाद और घंटे-घड़ियाल की मंगलध्वनियों के मध्य आरती की गई.
कलश की स्थापना हुई और मंदिर को तोरण-पताकाओं से सज्जित किया गया. भवन शीर्ष पर भगवा ध्वज का आरोहण किया गया.
मां शैलपुत्र शांति और सौभाग्यदायिनी हैं. उनका व्रत, पूजन और आह्वान करने पर व्यक्ति के सौभाग्य का ऊर्ध्वगमन होता है और घर में सुख-शांति बनी रहती है. चंद्र कारक मन शांत रहता है.
साधरों ने उनका आह्वान करते हुए मंत्र जाप किया.
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं शैलपुर्त्यै नमः
ह्रीं शिवायै नमः
वन्दे वांच्छित लाभाय चंद्रार्धकृतशेखरां
वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीं ॥
प्रथम दुर्गा त्वंहि भवसागरः तारणीं
धन ऐश्वर्य दायिनी शैलपुत्री प्रणमाभ्यं॥
त्रिलोजननी त्वंहि परमानंद प्रदीयमान
सौभाग्यरोग्य दायनी शैलपुत्री प्रणमाभ्यहं॥
चराचरेश्वरी त्वंहि महामोहः विनाशिन.
मुक्ति भुक्ति दायनीं शैलपुत्री प्रणमाम्यहं॥