75 साल बाद रीना छिब्बर वर्मा रावलपिंडी पहुंची, जानिए, पाकिस्तानियों ने किस तरह जश्न मनाया ?

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 20-07-2022
75 साल बाद रीना छिब्बर वर्मा रावलपिंडी पहुंची, जानिए, पाकिस्तानियों ने किस तरह जश्न मनाया ?
75 साल बाद रीना छिब्बर वर्मा रावलपिंडी पहुंची, जानिए, पाकिस्तानियों ने किस तरह जश्न मनाया ?

 

शिराज हसन / रावलपिंडी. ढोल की थाप सुनाई दे रही है, फूलों की पंखुड़ियां बरस रही हैं, इस गली में आज जश्न है. कुछ लोग भूरे रंग की पोशाक और हरे रंग का दुपट्टा पहने एक पतली, लेकिन लाल और सफेद महिला का हाथ पकड़कर घर का रास्ता दिखा रहे हैं. रीना छिब्बर वर्मा 75 साल पहले इस गली से पलायन कर गई थीं और आज सात दशकों के इंतजार के बाद उन्होंने फिर से यहां कदम रखा है. 1947 में जुलाई और अगस्त के महीनों में यहां क्या हालात होंगे, जब उनके परिवार को यह घर, गली, मोहल्ला और यह देश छोड़ना पड़ा, जो कभी उनका अपना था.

भारत के विभाजन के दौरान हुए दंगों की कहानियां रावलपिंडी जिले में बिखरी पड़ी हैं. एक वो दिन था और एक आज का दिन है. समय और हालात सब बदल गए हैं, लेकिन यह जगह वही है. रावलपिंड में डीएवी कॉलेज रोड पर इलेक्ट्रॉनिक्स मार्केट के बीच में इस गली को प्रेम स्ट्रीट कहा जाता है. बाजार की व्यावसायिक गतिविधियों से चंद कदमों की दूरी पर यह दृश्य स्थानीय निवासियों के लिए थोड़ा अजीब था. यहाँ कौन आया? ये मीडिया वाले कैमरे लेकर क्यों आए हैं? बेवजह और राहगीरों से बकबक हो रही थी.

रीना वर्मा आईं, अपने पुश्तैनी घर की दहलीज पर कदम रखा और हाथ जोड़कर सभी का शुक्रिया अदा किया. बाहर गली में मीडिया प्रतिनिधियों की संख्या बढ़ती जा रही थी, आस-पड़ोस के बच्चे और महिलाएं उनकी एक झलक पाने के लिए बेताब थे, वे कौन थीं? हर कोई रीना वर्मा की कहानी जानना चाहता था. भारत के बंटवारे से पहले रीना छिब्बर वर्मा का परिवार इसी घर में रहता था. उन्होंने कहा कि उनके समुदाय के करीब दस परिवार पड़ोस में रहते थे, गली के सभी घर हिंदुओं के थे.

https://www.hindi.awazthevoice.in/upload/news/165833586315_Reena_Chhibber_Verma_reached_Rawalpindi_after_75_years,_know_how_Pakistanis_celebrated_2.webp

उनका कहना है कि बगल के मकान में हजीरों का एक परिवार रहता था, जिनमें से एक लड़की हीरा उनकी सहेली थी. विभाजन के बाद, रीना वर्मा का परिवार पुणे चला गया और फिर वहीं बस गया. तमाम कोशिशों के बाद भी वे यहां दोबारा नहीं आ सकीं. कुछ समय पहले उसने एक वीडियो संदेश जारी किया था कि वह अपने पुश्तैनी घर को देखना चाहती हैं, रावलपिंडी निवासी सज्जाद हैदर ने उसका घर ढूंढा और उसकी तस्वीरें साझा कीं.

किसी वजह से वीजा नहीं मिल पाया, तो दोनों पक्षों के यूजर्स ने सोशल मीडिया पर कैंपेन शुरू कर दिया. एक फेसबुक ग्रुप इंडिया-पाकिस्तान हेरिटेज क्लब के इमरान विलियम और जहीर महमूद ने अपने दम पर प्रयास जारी रखा और आखिरकार उन्हें वीजा मिल गया. पुणे से वाघा बॉर्डर और फिर लाहौर से रावलपिंडी तक एक प्रेमगली का सफर इतना आसान नहीं था.

सात दशक का इंतजार, मेरा घर छोड़ना, जाने से ज्यादा दुख, वापसी का रास्ता बंद होना था. रीना वर्मा यहां वापस आकर खुश हैं और उन्होंने इस खुशी को इन शब्दों में बयां किया है कि ‘‘यहां जाने का दर्द शायद उतना नहीं था, जितना यहां वापस आने की खुशी थी.’’

रावलपिंडी में डीएवी कॉलेज रोड क्षेत्र का भी विशेष महत्व है. उसी सड़क के बगल में आलम खान रोड पर पिंडी लड़कों बलराज साहनी और भीष्म साहनी का पुश्तैनी घर है और उसी इलाके में चिटियन हटियान का पड़ोस बॉलीवुड गीतकार आनंद बख्शी का घर है.

https://www.hindi.awazthevoice.in/upload/news/165833589415_Reena_Chhibber_Verma_reached_Rawalpindi_after_75_years,_know_how_Pakistanis_celebrated_3.webp

भारत के विभाजन से पहले, यह क्षेत्र अपेक्षाकृत नई आबादी था, जहां अधिकांश समृद्ध हिंदू परिवार रहते थे. अब कॉलेज रोड एक पूर्ण व्यापार केंद्र बन गया है, एक इलेक्ट्रॉनिक्स बाजार है और कुछ ही पुरानी इमारतें बची हैं, जबकि इसके विपरीत, कॉलेज रोड की इन गलियों के घर एक अलग दृश्य प्रस्तुत करते हैं.

पुराने लकड़ी के दरवाजे और खिड़कियां, शटर और वही पुरानी शैली की वास्तुकला आपको अतीत में ले जाती है. विभाजन के बाद रीना वर्मा का घर खाली हो गया और इसका स्वामित्व इम्तियाज हुसैन के परिवार के पास है, जो कश्मीर से चले गए और यहां बस गए. रीना वर्मा का यहां आना और इस गली में त्योहार जैसा माहौल उनके लिए सरप्राइज जैसा था. हालांकि मीडिया प्रतिनिधियों को सदन के अंदर जाने की इजाजत नहीं मिल सकी.

घर अभी भी लगभग अपनी मूल स्थिति में है, फर्श की टाइलों से लेकर छत के बीम, खिड़कियों और दरवाजों तक, सभी पुराने हैं. जैसे कि उन्हें भी उम्मीद थी कि रीना वर्मा एक बार यहां वापस आ जाएंगी. रीना वर्मा के चेहरे पर खुशी साफ झलक रही थी. ऐसा लगा जैसे पचहत्तर साल पहले उन्हीं गलियों में कहीं छोड़कर गई 15 साल की बच्ची की आत्मा 90 साल के शरीर में लौट आई है.

उन्होंने बताया कि कैसे वह एक ही गली में अलग-अलग खेल खेलती थीं. उन्होंने पंजाबी भाषा के पोथोहारी लहजे में कुछ गाने भी गाए. हर कोई उन्हें देखना चाहता था और वे अपने घर के दरवाजों और दीवारों को छूकर महसूस कर रही थीं.

रावलपिंडी से शुरू हुई प्रवास की पीड़ा और वापसी की इच्छा 75 साल बाद पूरी हुई रीना वर्मा की यह यात्रा आज उनका दिन था. जिस दिन के लिए उन्हें अपने जीवन के 75 साल इंतजार करना पड़ा. उनकी आंखों की चमक सबको बता रही थी कि जाने से ज्यादा लौटने में क्या खुशी है?