एएमयू के महिला कॉलेज में हाली की नज्म का क्या योगदान है, जानिए

Story by  मुकुंद मिश्रा | Published by  [email protected] | Date 07-06-2021
सर सैयद अहमद के साथ अल्ताफ हुसैन हाली
सर सैयद अहमद के साथ अल्ताफ हुसैन हाली

 

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साकिब सलीम

भारत के इतिहास में वर्ष 1858 एक महत्वपूर्ण वर्ष था. मुगल शासन औपचारिक रूप से समाप्त हो गया था, भारत ब्रिटिश क्राउन के सीधे नियंत्रण में आ गया था कई नवाबों, राजाओं और जमींदारों को बेदखल कर दिया गया था और नए सामाजिक-राजनीतिक गठबंधन बनाए गए थे. शिक्षा प्रणाली में भी भारी बदलाव देखा गया, क्योंकि लोगों ने नए शासक वर्ग के तहत नौकरियों को सुरक्षित करने के लिए पश्चिमी शिक्षा की ओर देखा. एक ओर जहां शिक्षाविदों ने पुरुषों में आधुनिक शिक्षा की आवश्यकता पर बल दिया, वहीं उन्होंने महिलाओं की पूरी तरह उपेक्षा की. आधुनिक शिक्षा को रोजगार पाने के साधन के रूप में देखा जाता था और महिलाओं को घरों से बाहर कदम नहीं रखना चाहिए था, इसलिए महिला शिक्षा की पूर्ण उपेक्षा की शिकार हो गई.

1875 में मुहम्मदन एंग्लो-ओरिएंटल (एमएओ) कॉलेज की स्थापना के साथ भारतीय मुसलमानों के बीच आधुनिक शिक्षा को लोकप्रिय बनाने के लिए सर सैयद अहमद खान के अलीगढ़ आंदोलन को श्रेय दिया जा सकता है. हालांकि सैयद अहमद ने मुस्लिम-पुरुषों के बीच शिक्षा का समर्थन किया, लेकिन महिलाओं की शिक्षा का विरोध किया गया था या इसकी अनदेखी. उनके अनुसार, महिलाओं की शिक्षा मुस्लिम समुदाय के सीमित स्रोतों पर एक अनावश्यक बोझ थी, क्योंकि महिलाएं कॉलेज जाने के बाद नौकरी नहीं करेंगी. सैयद मुमताज की तरह, उनके कई साथी, अल्ताफ हुसैन हाली और शेख अब्दुल्ला, महिलाओं की शिक्षा के पैरोकार थे, लेकिन सैयद अहमद के जीवनकाल में उन्हें चुप रहना पड़ा.

1898 में सैयद अहमद की मृत्यु के बाद अलीगढ़ में महिलाओं के लिए एक स्कूल बनाने के प्रयास तेज हो गए. अलीगढ़ में महिला शिक्षा लाने के आंदोलन का नेतृत्व शेख अब्दुल्ला ने अन्य लोगों के साथ किया. भोपाल की बेगम सुल्तान जहां लड़कियों के स्कूल के लिए धन आवंटित करने वाले सबसे महत्वपूर्ण लोगों में से एक थीं.

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अल्ताफ हुसैन हाली 


महिलाओं की शिक्षा के समर्थन में एक जनमत बनाने का प्रयास किया गया. उसी को प्राप्त करने के लिए शेख अब्दुल्ला ने एक पत्रिका खातून (महिला) का प्रकाशन शुरू किया. 1905 में, उन्होंने अल्ताफ हुसैन हाली से महिलाओं की शिक्षा के समर्थन में एक कविता लिखने का अनुरोध किया. खातून में शेख अब्दुल्ला द्वारा अलीगढ़ में लड़कियों के स्कूल की स्थापना के कुछ महीने पहले, दिसंबर 1905 में कविता, चुप की दाद (मौन को श्रद्धांजलि) प्रकाशित हुई थी.

चुप की दाद एक नज्म या सामयिक कविता थी, जिसमें एक तारकीब बंद की संरचना होती थी (एक कविता को छंदों में विभाजित किया जाता है, प्रत्येक छंद में एक गजल की कविता योजना होती है, जिसमें अलग-अलग तुकबंदी वाले शेर छंदों को अलग करते हैं). पूरी नज्म को आठ बंद में बांटा गया है.

हाली समाज में महिलाओं की भूमिका की प्रशंसा करते हुए नज्म का प्रारंभ हैं. उन्हें परोपकारी, साहसी और देखभाल करने वाला कहते हैं. शुरुआती मुखड़ा यह हैः

ऐ माओ बहनो बेटियो! दुनिया की जीनत तुम से है

मुल्कों की बस्ती हो तुम्हीं कौमों की इज्जत तुम से है

(हे माताओ, बहनो, बेटियो! संसार की शोभा तुझसे ही है, भूमि का बसेरा तो तुम ही है, समुदायों का सम्मान आपके माध्यम से है)

नज्म में हाली महिलाओं के मजबूत चरित्र की व्याख्या करते हैं. वे सच्चे कहलाते हैं, जब पुरुष सत्य को भूल जाते हैं. उन्होंने आगे महिलाओं के सामने आने वाली कठिनाइयों के बारे में लिखा - कन्या भ्रण हत्या और सती महिलाओं के खिलाफ कई अपराधों में से कुछ थे. अपमानजनक पति, बाल विवाह, घरेलू काम और बच्चों की परवरिश कुछ ऐसी कठिनाइयां हैं, जिनका महिलाओं को सामना करना पड़ता है. छठे शेर में हाली ने लिखा है कि जहां कुछ पुरुषों ने महिलाओं के खिलाफ अपराध नहीं किया होगा, वहीं अच्छे और बुरे सभी पुरुष महिलाओं को अशिक्षित और अज्ञानी रखने पर एकमत थे.

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अल्ताफ हुसैन हाली 


 

हाली ने लिखाः

गो नेक मर्द अक्सर तुम्हारे नाम के आशिक रहे

पर नेक हों या खराब रहे सब मुत्तफिक इस राय पर

(हालांकि एक नेक आदमी अक्सर आपका प्रेमी बना रह सकता है, लेकिन वे गुणी हों या दुष्ट, इस मत पर सभी सहमत रहे)

 

जब तक जियो तुम इल्म-ओ-दानिश से रहो महरूम यां

आई थीं जैसी बे-खबर वैसी ही जाओ बे-खबर

(जब तक आप जीवित रहो, आप यहाँ ज्ञान और ज्ञान से वंचित रहेंगी, जितनी अज्ञानी तुम आई थीं, उतनी ही अज्ञानी तुम चली जाओगी)

 

तुम इस तरह मजहल और गुमनाम दुनिया में रहो

हो तुम को दुनिया की ना दुनिया को तुम्हारी हो खबर

(आप दुनिया में अज्ञानी और गुमनाम रहेंगे, न तुम दुनिया को जानोगे, न दुनिया तुम्हें जानेगी)

 

जो इल्म मर्दों के लिए समझा गया आब-ए हयात

ठैरा तुम्हारे शक में वुह जहर-ए हलाहल सर-बसर

(वह विद्या जिसे पुरुषों के लिए जीवन का जल माना जाता था, तुम्हारे लिए वो पूरी तरह से एक घातक जहर होना ठहराया गया )

 

आता है वक्त इंसाफ का नजदीक है यौम उल-हिसाब 

दुनिया को देना होगा इन हक-तलफियों का वां जवाब

(न्याय का समय आता है, गणना का दिन निकट है, अधिकारों के इन नुकसानों के लिए दुनिया को वहां जवाब देना होगा)

 

कविता के अंतिम छह शेर महिला शिक्षा के समर्थकों को संबोधित थे, जहां अंतिम शेर भोपाल की बेगम सुल्तान जहां के प्रयासों की प्रशंसा करता है. हाली ने लिखाः

ऐ बे-जबानों की जबानो! बे-बसों के बाजुओ!

तालीम-ए-निस्वां की मुहिम जो तुम को अब पेश आई है

(हे बेजुबानों की जुबान! असहायों की बाहें! नारी शिक्षा की महान घटना जो आपके सामने आई है)

 

ये मरहलाह आया है पहले तुम से जिन कौमों को पेश

मंजिल पह गरी उनकी इस्तिकलाल ने पहुंचाई है

(जब इस तरह, तुमसे पहले जिन समुदायों के सामने यह पड़ाव आया है, दृढ़ता ने उनके रथ को गंतव्य तक पहुंचा दिया है)

 

है राई में परबत अगर दिल में नहीं आजम दुरुस्त

पर ठान ली जब जी में फिर परबत भी हो तो राई है

(हृदय में दृढ़ संकल्प न हो तो राई के दाने में पर्वत है, लेकिन दिल में ठान लो, तो पहाड़ भी राई होगा.)

 

ये जीत क्या कम है के खुद हक है तुम्हारी पुश्त पर

जो हक पा मुंह आया है आखिर हम ने मुंह की खाई है

(क्या यह एक छोटी सी जीत है कि सच्चाई आपकी पीठ पर है? जिसने सत्य को ठुकरा दिया है, उसने अंततः नुकसान उठाया है)

 

जो हक के जानिब-दार हैं बस उन के बेड़े पार हैं

भोपाल की जानिब से यह हातिफ की आवाज आई है

(जो सत्य के ‘पक्षपाती’ हैं, उनकी जीवन रूपी नैया पार हो जाती है, भोपाल की ओर से एक दयालू की यह आवाज आई है)

 

है जो मुहिम दर-पेश दस्त-ए ग़ाहिब है हम में निहां

ताईद हक का है निशान इमदाद-ए सुल्तान-ए जहां

(यह महान घटना जो हमारे सामने है, उसमें अदृश्य का हाथ छिपा है, सत्य के सहारे की निशानी है सुल्तान जहां की मदद)

भोपाल की बेगम सहित लोगों ने कविता को खूब सराहा और प्रभावित किया. कुछ महीने बाद अलीगढ़ में लड़कियों के एक स्कूल का उद्घाटन किया गया, जो बाद में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के तहत एक महिला आवासीय कॉलेज के रूप में विकसित हुआ और अब इसे अब्दुल्ला हॉल या महिला कॉलेज के रूप में जाना जाता है. अब लगभग एक सदी से, भारतीय मुसलमान महिलाओं की शिक्षा के लिए इस कॉलेज की ओर इस विश्वास के साथ देखते हैं कि यह मुस्लिम सामाजिक मूल्यों को बनाए रखते हुए आधुनिक शिक्षा प्रदान करता है.

(साकिब सलीम एक इतिहास-लेखक हैं)