मिर्जा ग़ालिब आज होते तो उन्हें फेसबुक-इंस्टाग्राम से मुहब्बत होतीः डॉ. एम. सईद आलम

Story by  एटीवी | Published by  [email protected] | Date 15-02-2022
डॉ. सईद आलम (इनसेटः गालिब की भूमिका में)
डॉ. सईद आलम (इनसेटः गालिब की भूमिका में)

 

आवाज विशेष । मिर्ज़ा ग़ालिब की 153वीं पुण्यतिथि     

शाइस्ता फातिमा/ नई दिल्ली

"फिर ग़लत क्या है कि हमसा कोई पैदा ना हुआ", इस पंक्ति का अनुवाद "क्या गलत है, अगर मेरे जैसा कोई नहीं है" होगा, और इस हिसाब से कई लोगों ने इसको गलत रूप में लिया होगा, पर मिर्जा गालिब ने गर्व से जवाब दिया होगा, "मैं अंदलीब-ए गुलशन-ए ना आफरीदा हूं" का अर्थ है "मैं बगीचे की कोयल हूं जो अभी तक नहीं बनी है." यह न केवल महान उर्दू शायर की भविष्यवादी मानसिकता की एक झलक है, बल्कि उनकी कालातीतता को भी दर्शाता है.

डॉ. एम. सईद आलम ने 30 से अधिक वर्षों से मंच पर गालिब की भूमिका निभाई है. कवि पर उनके व्यापक काम के लिए गालिब पुरस्कार पाने वालेआलम एक अनुभवी रंगमंच व्यक्तित्व है. अकेले ग़ालिब पर उनकी प्रसिद्ध रचनाओं में ग़ालिब, ग़ालिब के ख़त, लाल क़िले का आखिरी मुशायरा, ग़ालिब इन नई दिल्ली, ग़ालिब इन कोलकाता जैसे नाटक शामिल हैं. आवाज-द वॉयस ने कवि की 153वीं पुण्यतिथि के अवसर पर नाटककार-अभिनेता-निर्देशक से बात की. बातचीत के मुख्य अंश:

सवालः आपके लिए गालिब क्या है?

डॉ. एम. सईद आलमः एक महान कवि, जाहिर है, एक महान व्यक्तित्व भी, लेकिन इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि वह उन सबसे बुद्धिमान लोगों में से एक हैं जिनको मैं जानता हूं. वह बेहद मौलिक और प्रतिभाशाली व्यक्ति थे. करीब-करीब खुदा थे. जैसा उन्होंने लिखा न तो उनसे पहले लिखा गया और न ही उसके बाद.

उनकी प्रामाणिकता इस अर्थ में नहीं थी कि जो कुछ चलन में था, बल्कि उन्होंने दुर्लभतम लिखा. इसका मतलब यह नहीं है कि वह अपने वरिष्ठों की राह नहीं चलते थे, वह मीर तकी मीर को पढ़कर हैरान हुआ करते थे. जिसे वह प्रेरणा मानते थे. लेकिन गालिब की शायरी पूरी तरह से अलग है, यानी वह आपको मीर से मिलवाते हैं. मीर और ग़ालिब में कई समानताएँ हैं लेकिन ग़ालिब की शायरी किसी भी तरह से मीर की नक़ल के तौर पर नज़र नहीं आती. वह अक्सर उधार ली गई किताबें पढ़ते थे.

 

सवालः आप ग़ालिब को एक व्यक्ति के रूप में कैसे देखते हैं?

डॉ. एम. सईद आलमः मैं उन्हें एक संपूर्ण सज्जन, शरीफ-नेक आदमीतो नहीं कहूंगा. उनमें कई बुराइयां थीं. वह कमोबेश हम जैसे ही थे. उनने बहुत समझौते किया, उसने भारतीयों का पक्ष नहीं लिया, हमें उम्मीद थी कि वह एक स्वतंत्रता सेनानी होंगे, जो वह नहीं थे, और 1857 के युद्ध के दौरान लगभग अंग्रेजों का पक्ष में खड़े रहे. वह अपनी पेंशन के लिए दौड़भाग करते रहे. वह महारानी, गवर्नर जनरलों के लिए शेर लिखते थे. पर वह असाधारण बुद्धि वाले एक साधारण व्यक्ति थे और इन दोनों का मेल बहुत नायाब ही होता है.

सवालः तो, उनकी मौलिकता के अलावा, मंच पर उनके चरित्र को फिर से जीवंत करने के लिए आपको और क्या प्रेरणा मिली?

डॉ. एम. सईद आलमः अलग-अलग रंगों वाला एक आदमी, ग्रे, ब्लूज़, व्हाइट, ब्लैक… कई रंगों का संयोजन. एक व्यक्ति जो एक ही समय में अच्छा और बुरा था. एक व्यक्ति जो एक बहुत ही महत्वपूर्ण युग में रहता था. तो उस पर काम करते हुए या उसके बारे में बात करते हुए, हम भारतीय इतिहास के एक बहुत ही महत्वपूर्ण युग की फिर से यात्रा कर सकते हैं. इसके अलावा, वह वही है जो इतिहास और आधुनिकता की दहलीज पर रहता था. उनके माध्यम से, हम 19वीं शताब्दी की दिल्ली को देखते हैं, विशेष रूप से 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में, जब अतीत भविष्य बनाने के लिए वर्तमान के साथ विलय कर रहा था.

उनके जीवन में विभिन्न प्रसंग हैं जिन्हें देखा जा सकता है. यदि आप उनके जीवन से काव्य पहलू को हटा दें, तो भी उनका जीवन बहुत ही रोचक वास्तव में दुखद है. जब वह मुश्किल से पाँच साल के थे, तब उनके पिता की मृत्यु हो गई, उनका पालन-पोषण उनके चाचा ने किया. जब वह नौ साल के थे, तब उनके चाचा की मृत्यु हो गई, तब उनका पालन-पोषण उनके नाना ने किया. वह दिल्ली आया और फिर भी वह दिल्ली से संबंधित नहीं था. मूल रूप से वे आगरा के रहने वाले थे, लेकिन दिल्ली उनके जीवन का अभिन्न अंग बन गई.

इसलिए यह वास्तव में दिलचस्प है कि एक बाहरी व्यक्ति ने दिल्ली का इतनी अच्छी तरह से प्रतिनिधित्व किया. जब आप आगरा के बारे में सोचते हैं, तो आप ग़ालिब के बारे में कभी नहीं सोचते, हालाँकि वह पैदा हुए और वहीं पले-बढ़े, इसलिए. हालांकि, अगर ताज द्वारा आगरा का सबसे अच्छा प्रतिनिधित्व किया जाता है, तो ग़ालिब द्वारा दिल्ली का सबसे अच्छा प्रतिनिधित्व किया जाता है. उनके जीवन के रोचक तथ्य और पहलू, उनका समय और उनके कार्य उन्हें बात करने के लिए एक महत्वपूर्ण विषय बनाते हैं.

सवालः क्या आज उनकी कविता अधिक प्रासंगिक है? क्या वह किसी तरह अपने समय से आगे थे?

डॉ. एम. सईद आलमः मैं इस सिद्धांत में विश्वास नहीं करता कि किसी की महानता उसके 'सनातन प्रासंगिक' होने में निहित है. मेरा मतलब है, किसी को आधुनिक समय के लिए भी प्रासंगिक बनाने के लिए कोई तथ्य और आंकड़ों को मोड़ सकता है. यदि उनकी कविता 21वीं सदी के लिए प्रासंगिक है, तो इसका नकारात्मक पक्ष यह है कि वे अपने युग में प्रासंगिक नहीं रहे होंगे. मुझे लगता है कि किसी को आने वाले युगों के बजाय उस युग में प्रासंगिक होना चाहिए जिसमें वह रहता है. इसका एक और नकारात्मक पक्ष यह है कि यदि गालिब आज भी प्रासंगिक है तो आधुनिकता जैसा कुछ नहीं है, ऐसा कभी नहीं हुआ.

लेकिन फिर वर्तमान समय में कोई ग़ालिब को कैसे समझ सकता है जब उसकी दो तिहाई रचनाएँ कभी पढ़ी या समझी नहीं जाती हैं.

उनकी प्रमुख रचनाएँ फ़ारसी में हैं, इसलिए इसे आज प्रासंगिक कहना अतिश्योक्तिपूर्ण होगा, मेरे लिए उनकी फ़ारसी रचनाओं को समझना भी कठिन है. उनकी महानता यह है कि उनकी रचनाएँ इतनी गेय और करामाती हैं कि कोई उन्हें आसानी से याद कर लेता है, इसलिए भले ही आप इसका अर्थ न समझें कि आप गालिब की कविता को ज़ोर से पढ़ना पसंद करते हैं. और जैसा कि वे कहते थे कि एक अच्छी कविता कभी समझने के लिए नहीं होती, बल्कि महसूस करने के लिए होती है. उदाहरण के लिए “कोई मेरे दिल से पुछे तेरे तिर-ए-निम-काश को; ये खालिश कहां से होती है जो जिगर के पार होता" यह दोहा बहस्तरीय है, इसके विभिन्न अर्थ हैं लेकिन फिर इसे "अहंग" (लय) के कारण आसानी से याद किया जा सकता है, इस प्रकार इसे अक्सर पढ़ा जाता है, यह ग़ालिब की महानता है.

सवालः क्या गालिब ने ब्रिटिश आकाओं द्वारा पेश की गई आधुनिकता का स्वागत किया था?

डॉ. एम. सईद आलमः गालिब ने कभी अपने पहनावे को नहीं बदला, उन्होंने अपनी मानसिक क्षमताओं के माध्यम से आधुनिक युग को अपनाया, उन्हें प्रगति से प्यार था लेकिन अपनी जड़ों से भी जुड़े रहे. उन्हें कलकत्ता में बिजली, सड़कें, रेलवे और अपार्टमेंट प्रणाली पसंद थी, उन्हें आधुनिक सड़कें पसंद थीं, लेकिन उन्होंने कभी उनकी नकल नहीं की.

सवालः आप गालिब को आज के युवाओं से कैसे परिचित कराएंगे?

डॉ. एम. सईद आलमः वह ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने हमेशा कठिन रास्ता चुना, सड़क यात्रा की, उनके सामने अपने विचारों और अपने विचारों को पारंपरिक रूप से व्यक्त करने के लिए बहुत सारे अवसर थे. और वह ऐसा कर सकता था जिस तरह से उसके समकालीन कर रहे थे, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया बल्कि वह प्रवाह के खिलाफ गया.

सवालः हमें इस निजी जीवन के बारे में कुछ बताएं, जिस पर कभी चर्चा नहीं हुई, और कुछ ऐसा जिसके बारे में कभी बात नहीं की गई.

डॉ. एम. सईद आलमः मानसिक रूप से विक्षिप्त अपने छोटे भाई के साथ उसके संबंध और उसके प्यार को थोड़ा और तलाशने की जरूरत है. वह (गालिब) निःसंतान थे; उसके नवजात शिशु 6महीने से अधिक जीवित नहीं रह सके. इसने उन्हें प्रभावित किया और परोक्ष रूप से, जैसा कि उनकी शैली थी, उनकी कविता में परिलक्षित हुई. आगरा छोड़ने के बाद वे मुश्किल से आगरा गए, हालाँकि उनकी माँ की उम्र अच्छी थी. उन्होंने अपने प्रसिद्ध पत्रों में अपने दत्तक पुत्र (उनकी पत्नी के भतीजे, बाद में गालिब ने मृत बच्चों को भी गोद लिया) की मृत्यु का उल्लेख किया. उनके दर्द को इस शेर से समझा जा सकता है

"लज़ीम था कि देखो मेरा रास्ता कोई दिन और,

तन्हा गए क्यों अब रहो तन्हा कोई दिन और;

जाते हुए कहते हैं क़यामत को मिलेंगे;

क्या शुउब क़यामत का है गोया कोई दिन और;

नादान हो जो कहते हैं कि क्यों जीते हैं गालिब

किस्मत में है मरने की तमन्ना कोई दिन और”

सवालः क्या आप ग़ालिब को कट्टर कहेंगे?

डॉ. एम. सईद आलमः खैर, एक हद तक हां, उन्होंने कभी भी अपनी भावनाओं को व्यक्त नहीं किया. वह अपनी निराशा व्यक्त करेंगे. लेकिन मदद या सहायता के लिए सहानुभूति पैदा करने के लिए नहीं.

सवालः और उनकी पत्नी के बारे में क्या?

डॉ. एम. सईद आलमः उनके रिश्ते के बारे में न तो बहुत कुछ लिखा गया है और न ही कहा गया है, लेकिन उन दिनों लोग अपने निजी मामलों पर शायद ही चर्चा करते थे. वह कुलीन वर्ग की महिला थी, लोहारू के नवाब के परिवार से ताल्लुक रखती थी; वह अच्छी तरह से पढ़ी-लिखी थी, अच्छी तरह से वाकिफ थी, शब्द-बुद्धिमान महिला.

गालिब को अपनी ससुराल से बहुत लगाव था, लेकिन उससे आगे बात नहीं करते कि कवि ने खुद अपने दिल में क्या रखा. यह ध्यान रखना वास्तव में दिलचस्प है कि उस समय में एक से अधिक बार शादी करना एक बहुत ही सामान्य बात थी, लेकिन उन्होंने ऐसा कभी नहीं किया, यहां तक ​​कि बच्चे पैदा करने के लिए भी नहीं जैसा कि उन दिनों आम बात थी…

सवालः वह पत्र लिखने के लिए जाने जाते थे, उसके बारे में कुछ बताएं.

डॉ. एम. सईद आलमः एक बहुत ही दिलचस्प बात है, उन्होंने गद्य लिखा, उन्होंने कविता भी लिखी. उनकी कविता जटिल है, लेकिन गद्य बहुत स्पष्ट और सहज प्रवाहित है, वह भी उस समय के दौरान जब उनके समकालीन जटिल गद्य लिख रहे थे. हालांकि पत्र लेखन उन दिनों साहित्य का हिस्सा नहीं था, लेकिन वे नियमित रूप से पत्र लिख रहे थे, और वे आधुनिक समय के फोन की तरह ही उन दिनों जीवन का अभिन्न अंग थे. वह निस्संदेह आधुनिक उर्दू और हिंदी के जनक हैं. उन्होंने अपने गद्य में कुछ अंग्रेजी शब्दों का भी प्रयोग किया है. उनके द्वारा 'पोस्ट पेड' 'स्टाम्प' जैसे शब्दों का प्रयोग नियमित रूप से किया जाता था. उन्होंने अनजाने में, वास्तव में, अनिच्छा से आधुनिक उर्दू गद्य का आविष्कार किया.  

सवालः इन पत्रों में क्या लिखा गया था?

डॉ. एम. सईद आलमः सरल, हल्का-फुल्का, बुद्धि से भरपूर, व्यंग्य के सूक्ष्म स्वरों के साथ हास्य.

सवालः 'गालिब ने कहा था' अक्सर सोशल मीडिया पर ट्रेंड करता है, लेकिन यह मूल गद्य या कविता के बारे में नहीं है, आप उसके बारे में क्या कहेंगे?

डॉ. एम. सईद आलमः इसे सकारात्मक रूप से लें या कम से कम हल्के दिल से, हालांकि वह भयानक शायरी है, गालिब अपनी शब्दावली, विराम चिह्न, लय के बारे में अजीब थे, उन्होंने एक बार अपने पत्र में लिखा था कि "लछार" एक शब्द नहीं है, सही शब्द "नचर" होना चाहिए. उनके अनुसार फारसी को अरबी के साथ मिलाना ईशनिंदा जैसा था. अर्ध-काव्यात्मक विचार व्यक्त करने के लिए उनके नाम का उपयोग यह साबित करता है कि वह वही है जो हर किसी के अवचेतन में है, चाहे आप उर्दू जानते हों या नहीं. एक आम आदमी को जो कुछ भी साहित्यिक लगता है, वह ग़ालिब और कुछ मामलों में इकबाल को दिया जाता है. इससे यह सिद्ध होता है कि दोनों एक ही क्रम में सर्वश्रेष्ठ हैं.

सवालः अगर आप कभी ग़ालिब से व्यक्तिगत रूप से मिलें तो आप उससे क्या कहेंगे?

डॉ. एम. सईद आलमः मैं आपको इसका उत्तर उर्दू में बताऊंगा, और आप कृपया शब्दशः कॉपी करें, अगर मैं उनसे कभी मिलूं तो मैं कहूंगा "गालिब साहब, आप तो क़र्ज़ख़्वार मर गए, पर अपने हज़ारों लोगों की रोज़ी रोटी का इंतज़ाम कर दिया", जैसा कि आपने मुझसे पहले पूछा था कि यह आधुनिक समय में उनकी प्रासंगिकता है. वह एक कंगाल मर गया लेकिन हजारों लोगों के लिए आय का स्रोत बन गया.

जब कोई फिल्म बनती है, तो एक स्पॉट दादा को भी उसका उचित वेतन मिलता है. गुलज़ार एक महान कवि हैं लेकिन उनकी महान रचना वास्तव में धारावाहिक ग़ालिब है. कोई महान होता है जब उसकी महानता का उपयोग दूसरों द्वारा खुद को गिनने के लिए किया जाता है. सौभाग्य से मैं उन लोगों में से एक हूं... मैं गालिब का ऋणी हूं.

सवालः गालिब ने फेसबुक, व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम पर कैसे प्रतिक्रिया दी होती, क्या वह टेक-सेवी होते?

डॉ. एम. सईद आलमः ओह!, वह फेसबुक, व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम से प्यार करता होगा, ये प्लेटफॉर्म पुराने पत्र लेखन और पोस्टकार्ड को साझा करने की जगहें हैं. वह कम से कम 10 घंटे तक स्क्रीन से चिपके रहते और अपने छात्रों को जवाब देते और किस्से और उनकी शायरी साझा करते रहते. वह फेसबुक का हिस्सा बनना पसंद करते. उन्हें बात करना पसंद था, उन्हें विभिन्न रंगों के लोगों से घिरे रहना पसंद था.

गालिब ने अतीत को तुच्छ जाना, उन्होंने अपनी पूरी आत्मा के साथ आधुनिकता की पूजा की. वह कहते थे कि अतीत की नकल करना जरूरी नहीं है, उन्होंने एक बार अपने छात्र को लिखा था "पुराने जमाने में हुए गधे भी, अब क्या उन्हें भी कॉपी करोगे?" उन्होंने अतीत की प्रशंसा की, प्रेरणा ली लेकिन उनके पास अपने समय और शायद आने वाले समय से भी बड़ा और बड़ा दृष्टिकोण था.