Jashn-e-Adab literary festival ends with the melodious voice of Sufi singer Mamta Joshi.
मोहम्मद अकरम / नई दिल्ली
झूकी झूकी सी नजर बे-क़रार है कि नहीं, दबा दबा सा ही सही दिल में प्यार है कि नहीं
वह पल कि जिस में मोहब्बत जवान होती है, उस एक पल का तुम्हें इंतजार है कि नहीं
जैसे ही कैफी आज़मी के गीत की ये पंक्तियां सूफी गायिका ममता जोशी 13वी साहित्योत्सव जश्न-ए-अदब के तीन दिवसीय के आखिरी दिन सूफी गीत के प्रोग्राम में मधुर आवाज में पढ़ी, कि कुछ वक्त के लिए माहौल सुफियाना हो गया और लोग वाह वाह करने से खुद को रोक नहीं पाए. इसके अलावा दमा दम मस्त कलंदर अली का पहला नंबर, एक पल चैन न आवे सजना तेरे बिना, मिर्जा ग़ालिब के याद करते हुए पढ़ी-
रगो में दौड़ते फिरने के हम नहीं कायल
जो ऑख से ही नहीं टपका तो फिर लहू क्या है
हर एक बात पे कहते हो के तुम क्या हो
तुम ही कहो के ये अंदाज ए गुफ्तगू क्या है.....
जश्न ए अदब के आखिरी रोज़ का प्रोग्राम में बैतबाज़ी, यूथ का मुशायरा, रक्स करना है तो फिर, इस खराब ए मै मेरी जान तुम आबाद रहो, सूफी गीत, हिंदी फिल्मों के गीतों की प्रासंगिकता, कहानियों को आईना दिखाते किरदार, सुर साधना, मुशायरा, दास्तानगोई का आयोजन किया गया.
कहानी हम सब की जिंदगी में होती
दूसरी तरफ चौपाल में लेखक सच्चिदानंद जोशी ने कहानियों को आईना दिखाते किरदार पर चर्चा करते हुए कहा कि कहानी हम सब की जिंदगी में होती और दरअसल हम सब की जिंदगी की अपनी कहानी अपने आप में एक विशेष कहानी होती है.
सिर्फ कहानीकार की भूमिका या कहानीकार की जो रोल है वह सिर्फ इतना होता है कि वह उसे कहानी को उन शब्दों में बांध देता है. मैंने बहुत छोटी-छोटी कहानी भी लिखी है जैसे, सफर में जा रहे हैं, जो हमसफर हैं उनको देखते-कहानी लिख लेते हैं.
डॉ सच्चिदानंद जोशी ने आगे कहा कि ऐसे सारे किरदार हमारे सामने से गुजरते हैं. दुनिया का हर इंसान अपने आप में एक अलग इंसान है हर किसी के अंदर एक खूबी है, जरूरत इस बात की होती कि हम उसकी खूबी को देखें और पहचानें.
कहानीकार क्या करता है?
इस बारे में डॉ सच्चिदानंद जोशी ने कहा कि कोई भी कहानीकार जो होता है वह खूबी को देखता है, पहचान लेता है और थोड़ी सी अपनी कल्पना डालकर उसमें से एक और नया किरदार बनाकर आपके सामने रख देता है. जैसे-
*सुबह के 7:30 बज रहे थे
*रेडियो पर संगीत सरिता कार्यक्रम की धुन बज रही थी
एफएम के न जाने कितने चैनल हो गए हैं
फिर भी राधे बाबू को यह चैनल ही पसंद आता है
काम शोर और गाने अच्छे बंगले का दरवाजा खुला
और निक्की बच्चे बाहर निकली एकदम तैयार स्कूल यूनिफॉर्म में थी.....
चौपार के दूसरे सत्र में फ़रहत एहसास ने मीर तकी मीर पर चर्चा कि जिस का विषय था, इस खराब ए मै मेरी जान तुम आबाद रहो. इसका संचालन अनस फैजी ने की.
मीर का होना क्यों जरुरी था?
इस बारे में फरहत एहसास ने कहा कि मीर जो है वह एक चीज को रेखांकित करते हैं, शायरी सिर्फ क्राफ्ट की बुनियाद पर नहीं बनती बल्कि जब तक आप इस स्थिति से नहीं गुजरे हों, हृदय की वेदना वही समझ सकता है, यानी यह सिर्फ कहीं सुनी हुई बात नहीं है, न ही यह कोई अकादमिक बात है.
वह मुझ को शायर न कहो मीर के साहब मैंने
दर्द ए ग़म कितने किए जमा तो दिवान किया
यहां मीर तकी मीर के यहां यह पाया गया है कि इस दुनिया में होने के अनुभव में, इस दुनिया में रहकर खराब होने का जो अनुभव है उसमें, इश्क करना बड़े खतरे का काम है, इस तर्जुबे से गुजरना, इश्क में अपने महबूब से बिछड़ना क्या होता है, जब तक सड़कों पर रुसवा न हो जाओ, बदनाम न हो, हमारे इर्द-गिर्द मत घूमना, पैरों में उलझन न हो, आप कहां का शायर या काहे का शायर?
यूथ का मुशायरा में सफ़ीर सिद्दीकी ने पेश किया-
किया कहा मौत है इलाज ए इश्क भाई
चल तो फिर मर देखते हैं भाई
उसके अलावा आसिफ बिलाल, नावेद यूसुफ, अली साजिद, सना असलम, गायत्री मेहता समेत ने शायरी पेश की.देर रात को मुशायरा का आयोजन किया गया जिसमें वसीम बरेलवी, फ़रहत एहसास, शारिक कैफी, मदन मोहन दानिश, शकील आज़मी, मनीष शुक्ला, कैसर खालिद, अज़्म शाकरी ने अपनी शायरी से लोगों की वाहवाही लूटी.इस तरह अदब का प्रोग्राम 13 वी साहित्योत्सव जश्न-ए-अदब के तीन दिवसीय का समापन हुआ.