रत्ना छोत्राणी/ हैदराबाद
कहते हैं गालिब को आम बहुत पसंद थे और एक बार उन्होंने कहा था,
मुझसे पूछो, तुम्हें खबर क्या है,
आग के आगे नेशहर क्या है.
या ये होगा कि फर्त-ए-ऱफाअत से बागबानों ने बाग-ए-जन्नत से अंगाबीन के,
बा हुक्म-ए-रब-इन-नास भर के भेजे हैं सर-बा-मोहर गिलास
यानी, मुझसे पूछिए, कि आप क्या जानते हैं. आम गन्ने से भी ज्यादा मीठा है, शायद जन्नत के बाग के मालियों ने इसे अल्लाह के आदेश के बाद लोगों के गिलास भरने के लिए भेजा है.
बड़ी हैरत की ही बात है कि वह न सिर्फ आम पर लिखते हैं या उनका मसनवी जिसका शीर्षक है दर सिफत में, उसमें उन्होंने लिखा है-अंबा. बल्कि एक दफा उन्होंने कहा कि आम सिर्फ दो मौकों पर मन भर सकती है. एक, उनको मीठा होना चाहिए दूसरा, उनकी मात्रा काफी अधिक हो. मैग्नीफेरा इंडिका के वानस्पतिक नाम वाले आम के जायके के लिए उनकी मुहब्बत कुछ इस कदर थी. यह फल भारतीय उपमहाद्वीप में ही पैदा हुआ और पला-बढ़ा है.
हैदराबाद की गलियों में अगर आप गरमियों में आएं तो हर जगह आपको पीले-पीले आम ही बिकते नजर आएंगे. और पके ही क्यों, आम को तो कच्चा भी सराह-सराहकर खाया जाता है. अब आपको हिमायत या इमामपसंद जैसी महंगी नस्लें पसंद हो या फिर आप ठीक-ठाक कीमत वाली बेनिशान खरीदें, पर एक बात तो साफ है—आम के जादू से कोई नहीं बच पाता.
रेस्तरां, शेफ, गृहणियां, बेकर, आइसक्रीम निर्माता, हलवाई...हर कोई अपनी तरफ से खास व्यंजन बनाने में आम का इस्तेमाल करता है. और आम फलों का राजा है यह तो कहने की बात ही नहीं है. आप हजार तरह के व्यंजन खा लें, पर ताजा कटे आम के जैसा लुत्फ किसी में नहीं आता.
जब आप मोइनाबाद, जहीराबाद, विकाराबाद जैसे क्षेत्रों की ओर जें, आप हर तरफ हरी-भरी अमराइयां देखेंगे. अविश्वसनीय रूप से रसीले और मीठे होने के लिए पहचाने जाने वाले आमों की लगभग विलुप्त नस्ल आज़म -स-समर की खेती शहर के बाहरी इलाके में छोटे पैमाने पर की जाती है. यह पहली बार नवाब आज़म अली खान के बागानों में लगाया गया था.
तेलंगाना के सरकार के बागवानी विभाग के एक अधिकारी के अनुसार, आजम-उस-समर को विलुप्त होने से बचाने के लिए शमशाबाद और मोईनाबाद के विभिन्न खेतों में एएनजीआरएयू के प्रोफेसर दिवंगत मीर मुस्तफ हुसैन ने उसके बाग लगाए थे. माना जाता है कि आज़म-उस-समर आम की सबसे स्वादिष्ट प्रजाति है जो नवाब आज़म अली की मृत्यु तक रानी विक्टोरिया के लिए बकिंघम पैलेस में भेजी जाती थीं. कहते हैं कि रानी से बहुत सारे आम चखे थे और आजम-उस-समर को सर्वश्रेष्ठ माना था.
शक्कर गुठली सबसे छोटी किस्म है, जिसका वजन महज 25 ग्राम होता है. नाजुक बदन बेहद पुरानी जायकेदार किस्म है. बेगम पसंद, नवाबपसंद, नूरजहां, समरे भैसे कुछ ऐसी नस्लें हैं जो आधिकारिक रूप से आम की खेती में दिखनी बंद हो गई हैं.
1935 में निज़ाम द्वारा विकसित प्रसिद्ध मोज़ामजही बाज़ार क्षेत्र में स्थित लकी फ्रूट की दुकान के मालिक मो. हुसैन कहते हैं कि उनके अब्बा मो. सुल्तान साहेब ने कुछ दुर्लभ किस्में चखी थीं और वह उनके बारे में बताते भी थे.
मोहम्मद हुसैन कहते हैं, “हमारी दुकान 1948 में स्थापित हुई थी और करीब सात दशक के बाद यहां नवाब हो या आम, हर कोई इस छोटी दुकान में आकर आम की विभिन्न किस्मों के मजे लेते हैं.”
वह कहते हैं, “हिमायत पसंद या इमामपसंद पूरे शहर को पसंद है और वह सबसे ज्यादा मीठी है.”
हालांकि आम मार्च के अंत से ही हैदराबाद में उपलब्ध होने लगता है,लेकिन मई के महीने में पूरे बाजार में विभिन्न किस्मों के आमों की बाढ़ आ जाती है. जाहिर है, सबकी पसंद की फेहरिस्त में सबसे ऊपर इमामपसंद या हिमायत है जो 150 रूपए से 250 रूपए प्रति किलो की दर से बिकती है.
और भी किस्में हैं जिनका आकार क्रिकेट के बॉल की तरह का होता है, और उनमें से कुछ ऐसी किस्में है जिनका आकार पपीते जितना होता है और एक आम का वजन भी दो से ढाई किलो तक होता है.
इन्हीं आमों से कुछ ऐसे व्यंजन बनते हैं मसलन, आम रस, पूरी, मैंगो चीज केक, मैंगे फीरनी, या मैंगो डबल का मीठा, और कच्चे होने पर इनसे बनता है अव्वाकाय्या (गरम आम पर मसालेदार मिर्ची) या फिर कैरी गोश्त (मसालों और कच्चे आम के साथ पकाया गया मांग)और फिर कैरी चटनी.
मोहम्मद हुसैन कहते हैं, “हैदराबाद आम की विभिन्न किस्मों के लिए जाना जाता है, चाहे वह नीलम हो या पेद्दा रसल (बड़ी रसीली किस्म), या चिन्ना रसल (छोटी रसीली किस्म) और यहां तक कि पल्पी मालगोबा जिसकी गुठली बेहद छोटी होती है. सबसे अधिक पसंदीदा जहांगीरी, सुगरी पंचधारा या कलसी, चेरुक्कू रसम (गन्ने जितनी मीठी) और यहां तक कि स्थानीय अलफांसो है, जो पश्चिम गोदावरी जिले से आती है और इसके साथ ही सुवर्णरेखा, कोट्टापल्ली कोब्बारी और पन्नूकुली भी राज्य के विभिन्न हिस्सों में काफी डिमांड में रहते हैं.”
तेलंगाना में आम की खेती के तहत 2.89 लाख एकड़ भूमि है और सीजन में लगभग 10.23 लाख मीट्रिक टन आम का उत्पादन होता है.
आप चाहे आम तो भारतीय तरीके से खाएं या फिर उसको कोई पश्चिमी जामा पहना दें, बस एक काम करिए, आम को बस मैंगो मिल्क शेक तक महदूद मत रखिए, और उसको उसके मूल जायके के साथ चखिए, जैसा कि अमीर खुसरों ने एक बार कहा था, वह मेरे शहर में साल में एक दफा आता है. वह मेरे मुंह को बोसों और शहद से भर देता है. मैं अपनी सारी दौलत उस पर कुर्बान कर देता हूं. क्या सखि साजन? ना ही आम.