पटना में हुसैनी ब्राह्मण राजू और ऋषि पांडेय की नोहाख्वानी से टूटेंगी मज़हब की बंदिशें

Story by  सेराज अनवर | Published by  [email protected] | Date 18-09-2021
पटना में हुसैनी ब्राह्मण राजू और ऋषि पांडेय की नोहाख्वानी से टूटेंगी मज़हब की बंदिशें
पटना में हुसैनी ब्राह्मण राजू और ऋषि पांडेय की नोहाख्वानी से टूटेंगी मज़हब की बंदिशें

 

सेराज अनवर/ पटना

इमाम हुसैन मुकम्मल इंसानियत के पैकर थे. उनका हर अमल, हर कलाम, आदेश किसी ख़ास मजहब के लिए नहीं, पूरी इंसानियत के लिए होता था. यही वजह है कि इमाम हुसैन से हर मजहब के लोग प्रभावित हुए. इनके गम को मनाने में किसी प्रकार की कोई मनाही नहीं है. कर्बला के शहीदों की मजलिसों, ताबूत,अलम की जियारत हर कोई कर सकता है.

पटना का सबसे बड़ा इमामबाड़ा इमामबांदी बेगम वक़्फ स्टेट गुलज़ारबाग़ 72 ताबूत जुलूस के 25 वर्ष पूरा करने जा रहा है. इस मौक़े से दो दिवसीय 20-21 सितम्बर को कार्यक्रम का आयोजन किया गया है. इस आयोजन में पहली बार पटना की सरज़मीं पर हुसैनी ब्राह्मण राजू पांडेय और ऋषि पांडेय हज़रत हुसैन की अक़ीदत में नोहाख्वानी करेंगे. हुसैन का गम मनाने में मजहब की बंदिशें टूट जाएंगी. यह आयोजन हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतिबिम्ब साबित होगा. राजू पांडेय और ऋषि पांडेय ने मुहर्रम पर नौहा पढ़कर हिन्दू-मुस्लिम भाईचारे की मिसाल कायम की है

अपनी तक़दीर जमाते तेरे मातम से 

ख़ून की राह बिछाते हैं तेरे मातम से

अपने इज़हार ए अक़ीदत का सिलसिला ये है

हम नया साल मनाते हैं तेरे मातम से


72 ताबूत क्या है?

ग़ौरतलब है कि इमामबांदी बेगम स्टेट का निर्माण बंगाल के सूबेदार शेख अली अजीम ने 1717 में कराया था. शेख अजीम से चलता हुआ यह सिलसिला इमाम बांदी तक पहुंचा. यह इमामबाड़ा गुलजारबाग के नाम से प्रसिद्ध है. 1894 में बेगम साहिबा इस दुनिया से कूच कर गयीं, लेकिन इंतकाल से चार साल पहले 1890 में उन्होंने अपनी पूरी संपति वक्फ कर दी थी. यहां की 7 और 9 मुहर्रम को रिकतआमेज मजलिस मशहूर है. मिर्जा दबीर अली यहां लगातार 19 सालों तक लखनऊ से अजीमाबाद आ कर खुद का लिखा मर्सिया पढ़ते रहे. मिर्जा दबीर उर्दू के मशहूर शायर थे. इस इमामबाड़ा से पटना सिटी की बड़ी-बड़ी मजलिसें अंजाम पाती हैं यहां से मुहर्रम में 72 ताबूत के साथ 72 अलम निकाले जाते हैं.

72 ताबूत के लिए यह इमामबाड़ा मशहूर है. कर्बला में हज़रत हुसैन के साथ उनके रिश्तेदार और साथी शहीद हुए थे. 72 ताबूत कमेटी के आयोजकों में से एक सैयद अमानत अब्बास बताते हैं कि 1996 से कर्बला के शहीदों की याद में इमामबांदी से 72 ताबूत का जुलूस निकलता रहा है. इसी महीने जुलूस के 25 साल पूरे होने जा रहे हैं. इस अवसर पर उत्तर प्रदेश से पहली बार हिंदू नोहाखां को आमंत्रित किया गया है. इससे न सिर्फ हज़रत हुसैन के प्रति अक़ीदत का इज़हार होगा बल्कि हिंदू-मुस्लिम एकता का भी मुज़ाहिरा होगा.

 

कौन हैं राजू पांडेय?

राजू पांडेय यूपी के कानपुर के रहने वाले हैं. अंजुमन असगरिया के नाम से इनका ख़ुद का एक अंजुमन है. राजू पांडेय के नौहों को सुनकर लोगों की आंखें भर आती हैं. माथे पर चंदन का टीका और सिर पर बड़ी शिखा (चुर्की) कभी भी यादे हुसैन में बाधा नहीं बनी. मुहर्रम आने से पहले ही वह बाकायदा नौहों की धुन तैयार करने लगते हैं. उनका पूरा परिवार इस कार्य में कभी रुकावट नहीं बना. कभी किसी ने मजलिसों में भागीदारी से नहीं रोका. इतना ही नहीं राजू खुद ताजिया भी रखते हैं.

माह-ए-मुहर्रम में हुसैन का गम मनाने में मजहब की बंदिशें टूट जाती हैं. कई जगह हिंदू समुदाय के लोग भी ताजिया रख कर इमाम हुसैन की शहादत को याद करते हैं. यही नहीं मुहर्रम की दसवीं तारीख को इमाम के जुलूस को खड़े होकर विदा करते हैं. राजू पांडेय कहते हैं, “मुहर्रम के मातम और जुलूसों में शामिल होता रहा हूं और खुद की एक अंजुमन भी बना रखी है. अंजुमन में जितने भी लड़के हैं, वे सभी जुलूस में भी हिस्सा लेते हैं. मैं मजलिस में शामिल होता हूं और पढ़ता भी हूं. इस बार जुलूस न निकलने से मायूसी है, लेकिन यही दुआ है कि कोरोना जल्द खत्म हो. लोग कर्बला के जीवन को खुद में उतारें और अच्छी संगत करें.”

 

ऋषि पांडे भी पढ़ते हैं नोहा

कई हिंदू परिवार हैं जो ताजिया रखते हैं और बाकायदा नजर-नियाज भी दिलाते हैं. इसी में एक नाम ऋषि पांडेय का भी है .ऋषि अच्छे नोहाखां भी हैं. जब वह गाते हैं,

उठो-उठो भईया तेरी ज़ैनब लहद पे आयी है.

जिसे सुनकर उपस्थित लोगों की आंखें नम हो जाती हैं. ऋषि पांडे कहते हैं, “मैं बचपन से ही मुहर्रम में शरीक हो रहा हूं. इसके अलावा इमाम हुसैन की शान में नोहा ख्वानी करता और पढ़ता हूं. कई जगह इसे पढ़ने के लिए भी जाता हूं. मेरी इमाम हुसैन में गहरी आस्था है.”

वह बताते हैं, “मुझे कभी लगा ही नहीं कि मैं एक हिंदू होकर मुहर्रम क्यों मना रहा हूं. जितनी श्रद्धा मेरी अपने धर्म को लेकर है, उतनी ही दूसरे धर्म को लेकर भी है.” गंगा-जमुनी तहजीब को आगे बढ़ाने में इन हिंदू अजादारों की महती भूमिका है.


कैसा रहेगा उस दिन का कार्यक्रम

20 सितम्बर को सेमिनार का आयोजन 11 बजे सुबह मजलिस ए अज़ा,7 बजे रात्रि में शोज़खानी सैयद शबीब रज़ा,सैयद नदीम रज़ा करेंगे. मर्सियाखानी बिहार राज्य शिया वक़्फ बोर्ड के पूर्व चेयरमैन सैयद सलमान हुसैन करेंगे. खिताबत मौलाना अरशद जाफ़री का होगा. इसके बाद राजू पांडेय और ऋषि पांडेय नोहाखानी करेंगे.

21 सितम्बर सात बजे रात्रि में जनाब क़ारी सैयद नासिर अब्बास तिलवत ए कलाम पाक, सोज़खानी सैयद जर्रार हुसैन नकवी, मर्सियाखानी फरख हुसैन नकवी,सलाम सैयद मूसा अली हाशमी,खिताबत शब्बीर अली वारसी और तार्रूफ कैसर जौनपुरी का होगा.