आवाज- द वॉयस/ नई दिल्ली
ईद-उल-जुहा चार हजार साल पहले घटी एक घटना को सांकेतिक रूप से याद करने का त्योहार है. यह बताता है कि छोटे समूह के लोग भी मिलकर अगर त्याग करें तो वह मानवता के लिए एक नई शुरुआत हो सकती है
बकरीद क्या है. कब मनाया जाता है.
बकरीद का धार्मिक नाम हैः ईद-उल-जुहा, जिसका अर्थ है त्याग का त्योहार. धुल हिज्जा के महीने में हर साल यह मनाया जाता है, जो हिजरी कैलेंडर का आखिरी महीना माना जाता है.
इस त्योहार में शुभकामनाएं कैसे दें.
लोग इस त्योहार में ईद मुबारक ही कहते हैं, जैसे कि मीठी ईद में देते हैं. ईद-उल-जुहा के दिन मुस्लिम मस्जिद जाते हैं और दूसरे लोगों के साथ मिलते हैं. एक-दूसरे के अभिवादन के लिए अस्सलामवालेकुम कहते हैं.
पैगंबर इब्राहिम ने सपना देखा कि वह अपने बेटे इस्माइल की कुरबानी दे रहे हैं. इब्राहिम का अल्लाह में बहुत भरोसा था और उन्होंने अपने 10 साल के बेटे की बलि देनी चाहिए. लेकिन परंपरा कहती है कि अल्लाह ने अपने फरिश्तों को भेजा जिन्होंने इब्राहिम से कहा कि वह अपने बेटे की बजाए किसी जानवर की बलि दें. पर असली कुरबानी यह थी कि इब्राहिम को अपने बेटे को मक्का के पास उनकी मां के साथ रखना था, जो उस वक्त एक खतरनाक रेगिस्तान था. उस तरह के रेगिस्तान में रहने के लिए उनके परिवार को बहुत कुरबानियां देनी पड़ी. कुछ साल गुजरे, तब वहां से एक कारवां गुजरा और इस्माइल ने उस कारवां में जा रही एक लड़की से विवाह किया. उनसे एक नई पीढ़ी की शुरुआत हुई. अल्लाह चाहते थे कि नई पीढ़ी के लोग शहरों की बुराइयों से दूर रहकर कुदरत के साथ रहें. इसी पीढ़ी में आगे चलकर पैगंबर साहब का जन्म हुआ.
ईद-उल-जुहा इस बात की सांकेतिक यादगार है कि जो 4,000 साल पहले घटा था. यह बताता है कि लोगों का एक छोटा समूह जो कुरबानी देता है उससे पूरी मानवता का भला होता है.
यह त्योहार कितना लंबा होता है?
ईद उल जुहा हज के आखिरी दिन मनाया जाता है. कुछ मुसलमान इस ईद को तीन दिनों तक मनाते हैं.
यह मीठी ईद से कैसे अलग है?
ईद-उल-फित्र का मतलब है रोजे का अंत करना और इसको रमजान के आखिर में मनाया जाता है. रमजान हिजरी संवत का नवां महीना है. ईज-उल-जुहा की तरह मीठी ईद में भी, लोग दो नमाज पढ़ते हैं, अपने पड़ोसियों के घर जाते हैं, मिठाइयों और सौगातों का लेन-देन होता है. पर, मीठी ईद में कुरबानी नहीं दी जाती है.
अंग्रेजी अखबार द इंडियन एक्सप्रेस में मौलाना वहीदुद्दीन खान ने बताया था, ईद उल जुहा का शाब्दिक अर्थ ही कुर्बानी की ईद है. मुस्लिम इस दिन कुर्बानी देते हैं, जो हमारी जिंदगी की असली कुर्बानियों का संकेत होता है. यह बलि हमारे नकारात्मक भावनाओं, जलन, नफरत, नकारात्मकता और अभिमान की होती है. किसी जानवर की बलि देने का मतलब किसी जीव की हत्या मात्र नहीं है. बल्कि यह किसी व्यक्ति के अंदर की गहरी आध्यात्मिक अनुभूति पैदा करना है. इसका एक अर्थ यह भी है कि लोग अपनी गलत आदतों और नकारात्मक नजरिए की बलि दें.