सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल पेश कर रहा दरवाजा छिंगा-मोदी

Story by  मुकुंद मिश्रा | Published by  [email protected] | Date 14-03-2021
छिंगा-मोदी दरवाजा
छिंगा-मोदी दरवाजा

 

 

- झगड़ा न करे मिल्लत-ओ-मजहब का कोई यां... आशिक तो कलंदर है हिंदू न मुसलमां

- एक ओर बनी है मजार तो एक ओर बना है मंदिर

- भंडारे में मुस्लिम तो उर्स में शामिल होते हैं हिंदू समाज के लोग

फैजान खान / आगरा

मुल्क-ए-हिंदुस्तान में कभी मंदिर-मस्जिद के नाम पर झगड़ा, तो कभी हिंदू-मुसलमान के नाम पर फसाद करने वाले ऐसे लोगों को शहर-ए-अकबराबाद यानी आगरा के लोहामंडी स्थित छिंगा-मोदी दरवाजे से सीख लेनी चाहिए. मिश्रित आबादी वाले इस इलाके में कभी सांप्रदायिक तनाव पैदा नहीं होता. इस दरवाजे के एक पिलर पर मंदिर, तो दूसरे पिलर पर मजार बनी हुई है. यहां के लोग एक दूसरे सामाजिक ही नहीं, बल्कि धार्मिक कार्यक्रमों में भी शिरकत करते हैं. धर्म को लेकर कभी कोई विवाद नहीं हुआ. एक ओर हनुमान चालीसा का पाठ होता है, तो एक ओर कुरआन की आयतें सुनाई देती हैं.

प्रेम और भाईचारे का संदेश

सिर की मंडी निवासी शौकत अली कहते हैं कि 1992 में जब बाबरी विध्वंस हुआ था, उस समय पूरा देश जल रहा था. तब यहां के लोग आपस में भाईचारा बनाने के लिए एक दूसरे का सहयोग कर रहे थे. यहां के लोग बहुत मिल-जुलकर रहते हैं. पुल एक ओर मंदिर तो एक ओर बनी मजार लोगों को आपस में प्रेम और भाईचारे से रहने का संदेश देती है.

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शौकत अली 


दंगों में भी अमन-चैन

लोहामंडी निवासी सपन बंसल ने कहा कि देश में कई बार बड़े-बड़े सांप्रदायिक दंगे हुए. लोग एक दूसरे खून के प्यासे हो गए थे, तब यहां के लोग आपस में बड़ी मुहब्बत के साथ एक दूसरे की मदद कर रहे थे. लोगों का कहना था कि चंद अराजकतत्वों की वजह से हम अपना सौहार्द नहीं खो सकते.

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सपन बंसल 


किसी धर्म में फर्क नहीं

बाग राम सहाय निवासी रोहित श्रीवास्तव ने कहा कि इस क्षेत्र के लोग बड़े प्यार-मुहब्बत से रहते हैं. वो भी इन मंदिर-मजार की वजह से. हम तो मंदिर पर पूजा करने जाते हैं, तो मजार पर चिराग भी जलाते हैं. हम कभी किसी धर्म में फर्क नहीं समझते.

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रोहित श्रीवास्तव 


सियासदां और अराजकतत्वों की वजह से सब फसाद

पुल छिंगा-मोदी निवासी आकिब खान ने कहा कि कुछ सियासदां और कुछ अराजकतत्वों की वजह से हम सिर्फ हिंदू-मुसलमान करते हैं. ऐसे लोगों को तो हमारे इस गेट से ही सीख ले लेनी चाहिए. यहां पर मजहब की दीवारें टूट जाती हैं. एक जगह पर बने दोनों धार्मिक स्थल को लेकर कभी कोई विवाद नहीं हुआ. हम सब एक दूसरे के धार्मिक स्थल की देखरेख करते हैं. भंडारे में हम शामिल होते हैं तो उर्स में वो शामिल होते हैं. कभी कोई फर्क ही नहीं किया गया.

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आकिब खान 


इस्लाम शाह ने बनवाया था गेट

इतिहासकर राजीव सक्सेना बताते हैं कि आगरा की सुरक्षा को देखते हुए मुस्लिम शासक शेरशाह सूरी के बेटे इस्लाम शाह ने 16 गेटों का निर्माण कराया, लेकिन अब रख-रखाव के अभाव में आज महज दो गेट ही बचे हैं. हरीपर्वत के समीप बना गेट और दूसरा लोहामंडी स्थित दरवाजा छिंगा-मोदी पुल. इस पर तो एएसआई ध्यान भी नहीं दे रहा. ये तो क्षेत्रीय लोगों द्वारा ही बचाया जा रहा है. इन गेटों का जीर्णोद्वार जयपुर के राजा जय सिंह ने सन 1721-22 में कराया था.

आशिक तो कलंदर है हिंदू न मुसलमां

क्षेत्रीय निवासी और कांग्रेस के पूर्व जिलाध्यक्ष दिनेश बाबू शर्मा ने कहा कि हमारे आगरा को सुलहकुल की नगरी कहते हैं. यहां के लोग आपस में बड़ी मुहब्बत के साथ रहते हैं. दरवाजा छिंगा-मोदी पर बने मंदिर-मजार पर हर धर्म की आदमी हाजिरी लगाने के लिए आता है. एएसआई ध्यान दे, तो यह गेट और शानदार दिख सकता है, लेकिन इस पर न तो कभी सरकार ने ध्यान दिया और न ही एएसआई दे रही है. इन मंदिर और मजार की वजह से यहां के लोग इसकी देखरेख करते हैं, तो ये बचा हुआ है.

उन्होंने नजीर अकबराबादी के इस शेर के साथ अपनी बात को खत्म किया:

झगड़ा न करे मिल्लत-ओ-मजहब का कोई यां.

जिस राह में जो आन पड़े खुश रहे हैं आं.

जुन्नार गले या कि बगल बीच हो कुरवां.