शब-ए-बारात में दिवाली का गुमां

Story by  फिदौस खान | Published by  [email protected] | Date 21-02-2024
Diwali alike Shab-e-Barat
Diwali alike Shab-e-Barat

 

-फ़िरदौस ख़ान  

हिन्दुस्तानी तहज़ीब उस समन्दर की तरह है, जिसमें मिलकर दुनियाभर की संस्कृतियां एक हो जाती हैं. शबे बरात को ही लें. शबे बरात मुसलमानों का त्यौहार है, जो इस्लामी साल के आठवें माह शाबान की 15 तारीख़ को मनाया जाता है. शब का मतलब है रात और बरात का मतलब है बरी होना यानी आज़ाद होना.

इस रात को निजात वाली रात, बरकत वाली रात, रहमत वाली रात और परवाना वाली भी कहा जाता है. अल्लाह के आख़िरी रसूल हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया है कि शाबान मेरा महीना है.

शबे बरात को देखकर दिवाली का गुमां होता है. जिस तरह दिवाली से पहले लोग अपने घरों की साफ़-सफ़ाई करते हैं, उसी तरह शाबान का महीना शुरू होते ही मुसलमान अपने घरों की साफ़-सफ़ाई करने लगते हैं.

घरों में रंग-रौग़न किया जाता है. चूंकि रमज़ान में रोज़ों की वजह से काम बढ़ जाता है, इसलिए ये सब काम शाबान में ही मुकम्मल कर लिए जाते हैं. शबे बरात को घर में शीरनी बनाई जाती है. सूजी और चने की दाल का हलवा बनाया जाता है और इनकी बर्फ़ी भी बनाई जाती है. लोग नियाज़ देते हैं और शीरनी तक़सीम करते हैं. वे ज़रूरतमंदों को खाना भी खिलाते हैं.

शबे बरात को लोग क़ब्रिस्तान जाकर फ़ातिहा पढ़ते हैं और अहले क़ब्रिस्तान के लिए मग़फ़िरत की दुआ करते हैं. वे क़ब्रिस्तान में मोमबत्तियां जलाकर रौशनी करते हैं और अगरबत्तियां भी जलाते हैं. बहुत से लोग अपने अज़ीज़ों की क़ब्रों पर फूल रखते हैं.  

शबे बरात को घरों में रौशनी की जाती है. मान्यता है कि रात में रहमत के फ़रिश्ते आते हैं, इसलिए घर में रौशनी होनी चाहिए. शिया मुसलमान मानते हैं कि इस दिन बारहवें इमाम मेहदी अलैहिस्सलाम की विलादत होगी. इसलिए वे उनके जन्म लेने से पहले ही ख़ुशियां मनाते हुए अपने घरों को रौशन करते हैं. शबे बरात में बच्चे आतिशबाज़ी करते हैं.

इस दिन मजलिसें होती हैं. रात में लोग इबादत करते हैं. वे अपने गुनाहों के लिए तौबा करते हैं और बख़्शीश मांगते हैं. वे अगले दिन रोज़ा रखते हैं. शाबान की 15तारीख़ का रोज़ा हज़ारी रोज़ा कहलाता है, क्योंकि इसका सवाब एक हज़ार रोज़ों के बराबर माना जाता है.              

शबे बरात की फ़ज़ीलत

मुख़तलिफ़ हदीसों में शबे बरात की फ़ज़ीलत बयान की गई है. हज़रत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से मरवी है कि हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया- हज़रत जिब्राईल अलैहिस्सलाम शाबान की पंद्रहवीं रात को मेरे पास आए और अर्ज़ किया- ऐ मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! आसमान की तरफ़ सर उठाएं.

मैंने पूछा- ये कौन सी रात है ?

उन्होंने फ़रमाया- ये वो रात है, जिसमें अल्लाह रहमत के दरवाज़ों में से तीन सौ दरवाज़े खोलता है और हर उस शख़्स को बख़्श देता है, जो मुशरिक न हो. अलबत्ता जादूगर, काहिन, शराबी, सूदख़ोर और ज़िना करने वाले की उस वक़्त तक बख़्शीश नहीं होती, जब तक वे तौबा न कर ले.

जब रात का चौथा हिस्सा गुज़र गया तो हज़रत जिब्राईल अलैहिस्सलाम ने अर्ज़ किया- ऐ मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! अपना सर उठाएं. आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सर उठाया तो देखा कि जन्नत के दरवाज़े खुले हुए हैं और पहले दरवाज़े पर एक फ़रिश्ता निदा दे रहा है कि इस रात को रुकू करने वालों के लिए ख़ुशख़बरी है.

दूसरे दरवाज़े पर एक फ़रिश्ता निदा दे रहा है कि इस रात में सजदा करने वालों के लिए ख़ुशख़बरी है. तीसरे दरवाज़े पर निदा हो रही है कि इस रात में दुआ करने वालों के लिए ख़ुशख़बरी है. चौथे दरवाज़े पर फ़रिश्ता निदा दे रहा है कि इस रात में ज़िक्रे ख़ुदावंदी करने वालों के लिए ख़ुशख़बरी है.

पांचवें दरवाज़े पर फ़रिश्ता निदा दे रहा है कि अल्लाह के ख़ौफ़ से रोने वालों के लिए ख़ुशख़बरी है. छठे दरवाज़े पर फ़रिश्ता निदा दे रहा है कि इस रात तमाम मुसलमानों के लिए ख़ुशख़बरी है. सातवें दरवाज़े पर फ़रिश्ता निदा दे रहा है कि क्या कोई साईल है जिसके सवाल के मुताबिक़ अता किया जाए.

आठवें दरवाज़े पर फ़रिश्ता निदा दे रहा है कि क्या कोई बख़्शीश का तालिब है, जिसे बख़्श दिया जाए.हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने पूछा- ऐ जिब्राईल अलैहिस्सलाम! ये दरवाज़े कब तक खुले रहेंगे? उन्होंने फ़रमाया- रात के शुरू होने से लेकर तुलूअ आफ़ताब तक. फिर उन्होंने फ़रमाया- ऐ मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! इस रात अल्लाह क़बीला बनू कलब की बकरियों के बालों के बराबर लोगों को दोज़ख़ से आज़ाद करता है. (जामी तिर्मज़ी, इब्ने माजा)

हज़रत आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा फ़रमाती हैं कि रसूले करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया- क्या तुम जानती हो कि शाबान की पंद्रहवीं शब में क्या होता है? मैंने कहा- इस रात में क्या होता है? आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया- आइन्दा साल में होने वाले हर बच्चे का नाम इस रात लिख दिया जाता है और इसी रात आइन्दा साल मरने वालों के नाम भी लिखे जाते हैं. इसी रात बंदों का रिज़्क़ उतरता है और इसी रात लोगों के आमाल उठा लिए जाते हैं. (मुसनद अबू याला)

हज़रत अली अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं कि मुझे ये बात पसंद है कि इन चार रातों में आदमी ख़ुद को तमाम दुनियावी मसरूफ़ियात से इबादते इलाही के लिए फ़ारिग़ रखे. वे चार रातें हैं- ईदुल फ़ित्र की रात, ईदुल अज़हा की रात, शाबान की पंद्रहवीं रात और रजब की पहली रात. (इब्न अल जावज़ी)

हज़रत अनस बिन मालिक रज़ियल्लाहु अन्हु फ़रमाते हैं कि शाबान का चांद देखते ही सहाबा किराम तिलावते क़ुरआन में मशग़ूल हो जाते और अपने मालों की ज़कात निकालते, ताकि कमज़ोर व मोहताज लोग रमज़ान के रोज़े रखने पर क़ादिर हो सकें. हुक्मरान क़ैदियों को रिहा करते. ताजिर सफ़र करते, ताकि क़र्ज़ अदा कर सकें और रमज़ान में एतिकाफ़ कर सकें.

हज़रत ताऊस यमानी फ़रमाते हैं कि मैंने हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम से शबे बरात और उसमें होने वाले अमल के बारे पूछा तो आपने फ़रमाया कि मैं इस रात को तीन हिस्सों में तक़सीम करता हूं.

एक हिस्से में नाना जान हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर दरूद पढ़ता हूं. दूसरे हिस्से में अपने रब से इस्तग़फ़ार करता हूं और तीसरे हिस्से में नमाज़ पढ़ता हूं. मैंने अर्ज़ किया कि जो शख़्स ये अमल करे उसके लिए क्या सवाब है ?

आपने फ़रमाया- मैंने वालिद माजिद हज़रत अली अलैहिस्सलाम से सुना और उन्होंने हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सुना- ये अमल करने वालों को मुक़र्रेबीन लोगों में लिख दिया जाता है.

(लेखिका आलिमा हैं. उन्होंने फ़हम अल क़ुरआन लिखा है)