1857 की वो बुर्कानशीं मुस्लिम महिला कमांडर, जिससे अंग्रेज खौफ खाते थे

Story by  मुकुंद मिश्रा | Published by  [email protected] | Date 19-03-2021
बुर्कानशीं घुड़सवार (प्रतीकात्मक फोटो)
बुर्कानशीं घुड़सवार (प्रतीकात्मक फोटो)

 

 

मलिक असगर हाशमी / नई दिल्ली

बुर्के को मजहब और आतंकवाद के विस्तार का ‘औजार’ मानने वालों के लिए यह जानकारी चौंकाने वाली है. जानकारी यह है कि भारत को अंग्रेजों से मुक्त कराने में बुर्कापोश महिलाओं की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही है. 1857में एक बुर्कापोश महिला कमांडर ने अंग्रेज हुकूमत के दांत खट्टे कर दिए थे. वे तलवारों से लैस महिलाओं को इकट्ठा करतीं और फिर फिरंगियों पर आक्रमण कर देतीं.

इतिहासकारों के अनुसार उक्त बुर्कापोश कमांडर अपने बुर्के से पूरा शरीर ढक रखती थीं. कभी तलवार तो कभी बंदूक लेकर घोड़े पर सवार हो जातीं और मौका मिलते ही अंग्रेजों पर कहर ढहा देती थीं.

जानकारी के अनुसार, 1857 के ग्रीष्मकाल में उन्होंने ब्रिटिश सेनाओं पर अनेक हमले किए। बुर्के में घोड़े पर सवार वह महिला बूढ़ी थीं, पर हौंसले बेहद बुलंद. उन्होंने दिल्ली के कश्मीरी गेट पर तैनात ब्रिटिश सेना पर कई हमले किए थे. उसके बाद कहां निकल जातीं, किसी तो पता नहीं चलता. अनेक प्रयासों के बावजूद लोग बुर्कापोश महिला के ठिकाने का पता नहीं लगा पाए. वे कहीं से भी, अचानक घोड़े पर सवार होकर आ जाती थीं. और हमले के बाद दिखाई नहीं देती थीं.

29 जुलाई, 1857 के एक पत्र में, लेफ्टिनेंट हडसन ने अंबाला के उपायुक्त को लिखे पत्र में एक बुर्कापोश मुस्लिम महिला के खतरनाक तेवर का जिक्र किया है. उन्होंने  अपने पत्र में  लिखा है, “महिला अजीब थी. अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह करने के लिए महिलाओं को उक्साती थी. उनके नेतृत्व कई बार महिलाओं ने सक्षम और प्रशिक्षित ब्रिटिश सेना के खिलाफ कार्रवाई की.”

हडसन ने अपने प़त्र में आगे देखा कि बुर्कापोश वह महिला तलवारबाजी और बंदूक चलान में निपुण्य थी. विभिन्न झड़पों के दौरान उन्होंने कई ब्रिटिश सैनिक मारे थे. हडसन ने अपने पत्र में उनकी तुलना फ्रांस के जोन ऑफ आर्क से की है, जो बहादुर महिला मानी जाती हैं.

उा बुर्कापोश महिला के विवरण के तौर पर पत्र में लिखा है, ”वह मुस्लिम महिला हरे रंग के कपड़े पहनने होती थी. दिल्ली में एक झड़प के दौरान वह घोड़े से गिर गई थी. तब उसे पकड़ लिया गया. पहले तो आर्मी जनरल ने बूढ़ी मुस्लिम महिला समझकर उसे छोड़ने का फरमान सुनाया गया. मगर जब पता चला कि वह कई सैनिकों की मौत का कारण हैं, तब उस वृद्ध महिला को अंबाला जेल में स्थानांतरित कर दिया.”

इस बहादुर बूढ़ी महिला को जुलाई, 1857 में अंबाला में स्थानांतरित किया गया था. उस बुजुर्ग का न तो कोई उसका नाम जानता और न ही कहीं इस बात की जानकारी दर्ज है कि उनके साथ अंबाला जेल में स्थानांतरित करने के बाद क्या हुआ.

इसके बावजूद पत्र में लिखा गया है कि निश्चित रूप से बुर्के वाली वह बूढ़ी मुस्लिम महिला 1857 के बहादुर नायकों में एक थीं. उनके जैसे लोगों के प्रयासों से ही अंग्रेज सरकार को भारत छोड़ने का मजबूर होना पड़ा.