एक शाम भारतीय, मुगलई और नवाबी पकवानों पर चर्चा के नाम

Story by  मुकुंद मिश्रा | Published by  [email protected] | Date 17-03-2021
नवाब वाजिद अली शाह के प्रपोत्र शहंशाह मिर्जा (जैकेट में)
नवाब वाजिद अली शाह के प्रपोत्र शहंशाह मिर्जा (जैकेट में)

 

हिना अहमद / कोलकाता

नवाब वाजिद अली शाह के प्रपोत्र शहंशाह मिर्जा की मौजूदगी में कोलकाता के विक्टोरिया मेमोरियल हॉल में ‘द मुगलई ट्रेल - शाही व्यंजनों के रोमांचक किस्सों’ का आयोजन किया गया. मुगलई भोजन के शानदार इतिहास और भारत में आज तक इसके प्रभाव के बारे में जोरदार चर्चा हुई.

क्या कभी यह सोचा है कि अवधी या लखनवी बिरयानी के बीच क्या अंतर है, शामी कबाब का नाम कैसे रखा गया या दस्तरखान पर रेजाला का भव्य प्रवेश कैसे हुआ. 500वर्षों से अधिक समयांतराल में मुगलई व्यंजन समय के साथ संशोधित हुए और उनमें काफी सुधार हुआ और अब वे भारतीय खाद्य परिदृश्य को आकार दे रहे हैं.

मुर्गियों की मालिश

मुगलों ने अपने पीछे पर्याप्त खाद्य विरासत छोड़ी है, जो मुगल राजवंश के संस्थापक बाबर से शुरू हुई. स्वयं को एक खाद्य पारखी बताते हुए शहंशाह मिर्जा ने कहा, “बाबर ने कहा कि यह दुनिया तुम्हें दोबारा नहीं मिलेगी. यह इस बात पर कि जिस समय आप भोजन का रसास्वादन कर रहे होते हैं, तो यह ख्याल आता है कि इसे बनाने वाले खानसामा ने क्या क्रियाविधि, योजना और प्रयोग किए होंगे.

मिर्जा ने कहा, “भोजन को अधिक स्वादिष्ट बनाने के लिए मुर्गियों की मालिश की जाती थी और रसोई का मंत्री पूरे मामले की देखभाल करते थे.”

मुगल डाईनिंग टेबल पर फारसी असर था. जहांगीर ने नूरजहां से शादी की, वह एकमात्र महिला रानी थी, जिसके नाम का सिक्का ढाला गया था. वह शराब और इंद्रधनुषी रंग का दही बनाती थी. 

मिर्जा ने मसालों के उपयोग के बारे में एक दिलचस्प किस्सा बताया कि 1538 में जब आगरा की आबादी बढ़ गई थी, तो शाहजहां ने शाहजहांनाबाद के नए शहर में शिफ्ट होने का फैसला किया, लेकिन दुर्भाग्य से लोग बीमार पड़ने लगे. तब शाही हकीम ने एक तरीका निकाला और उसने खाने में हल्दी, धनिया और जीरे के उपयोग का सुझाव दिया. नुस्खा-ए-शाह विभिन्न परंपराओं के मिश्रण का आकर्षक विवरण देती है. शाही दस्तरखान लोगों को एकजुट रखता था और वह उसमें संबंधों को प्रगाढ़ रखने की ताकत थी.

इसके अलावा बंगाल से रेजाला की उत्पत्ति, मुगलई पराठे का मुगलों से कोई लेना-देना नहीं, खीर और फिरनी, श्रीमाल पराठा और रोगिनी रोटी में अंतर आदि पर चर्चा हुई.

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कोलकाता का विक्टोरिया मेमोरियल हॉल 


दो बेटियों की तरह हैं कोलकाता और हैदराबादी बिरयानी

मिर्जा का वजूद अभी भी कोलकाता बिरयानी और हैदराबादी बिरयानी के बीच बंटा हुआ है. वे कहते हैं कि दोनों समान रूप से बहुत अच्छी हैं. वे मेरी दो बेटियों की तरह हैं, जिन्हें मैं समान रूप से प्यार करता हूं. उन्होंने तकनीक को खाना पकाने का एक अभिन्न हिस्सा होने की बात कही, लेकिन यह भी एक बात है कि कोई ‘हाथ के जायके’ के साथ पैदा होता है, जो जादू करता है.

कोलकाता में लखनवी तहजीब

अवध के आखिरी नवाब वाजिद अली शाह को कोलकाता में एक मिनी लखनऊ बनाने के लिए याद किया जाता है. उन्होंने यहां पतंगबाजी, मुशायरा और मुर्गा लड़ाई की शुरुआत की. उन्हें कोलकाता के मटियाबुर्ज स्थित सिबतानाबाद इमामबाड़ा में दफनाया गया था, जो सभी समुदायों के लोगों के लिए खुला है और जिसने कोलकाता में लखनऊ तहजीब का परिचय दिया .

आलू बिरयानी

कोलकाता बिरयानी में आलू एक अभिन्न हिस्सा है. 16वीं शताब्दी की शुरुआत में सूरत में आलू की खेती शुरू हुई और देश के विभिन्न हिस्सों में पहुंची. इसे तत्कालीन प्रशासक द्वारा बंगाल लाया गया था और यह विदेशी और महंगी सब्जी थी.

अवधी बिरयानी को टमाटर की खुशबू और मसाले को आलू के अंदर डालने के बाद ‘दम पुख्त’ यानि धीमी गति से भाप में पकाया जाता था और वाजिद अली शाह द्वारा बेहद पसंद किया जाता था, इसलिए उन्होंने आदेश दिया कि जब बिरयानी पकाई जाए, तो इसमें आलू जरूर शामिल किया जाए.

दुष्प्रचार हुआ

हालांकि यह दुष्प्रचार है कि वाजिद अली शाह के बुरे दिन आ गए थे और उन्हें बदनाम करने के लिए कहा गया कि मांस की जगह आलू इस्तेमाल किया जाने लगा.

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प्रपोत्र शहंशाह मिर्जा (जैकेट में)


नवाब वाजिद अली समय से बहुत आगे

मिर्जा ने इस तथ्य पर जोर दिया कि वाजिद अली शाह ने हर साल 12 लाख पेंशन ली और वह सबसे अधिक वेतन पाने वाले पेंशनभोगी थे. उन्हें कभी भी कोलकाता नहीं भेजा गया? बल्कि वह अपने दम पर कोलकाता आए थे. लेकिन 1857 में विद्रोह के दौरान जब अंग्रेजों को वाजिद अली शाह की अत्यधिक लोकप्रियता का अहसास हुआ, तो उन्हें झूठे आरोपों के तहत गिरफ्तार कर लिया गया और 26 महीने के लिए फोर्ट विलियम के एम्हर्स्ट हाउस में डाल दिया गया. वह सांप्रदायिक सौहार्द और धर्मनिरपेक्ष विचारों का एक प्रमुख उदाहरण थे और अपने समय से बहुत आगे थे.