कोच्चि में अद्भुत है यहूदियों और मुस्लिमों का भाईचारा

Story by  मुकुंद मिश्रा | Published by  [email protected] | Date 11-02-2021
कोच्चि के मटनचेरी स्थित यूहदियों का ‘परदेसी सिनागॉग’ (आराधनालय)
कोच्चि के मटनचेरी स्थित यूहदियों का ‘परदेसी सिनागॉग’ (आराधनालय)

 

 

गौस सिवानी / नई दिल्ली

‘परदेसी सिनागॉग’ ( यहूदी आराधनालय) किसी अन्य पूजास्थल की तरह ही एक पूजास्थल है, लेकिन जोकोविच (केरल) स्थित सिनागॉग की खास बात यह है कि यह भारत में सबसे पुराना यहूदी पूजास्थल है. यह दुनिया में सबसे पुराने आराधनालयों में से एक माना जाता है. इसकी स्थापना को लगभग 450 साल बीत चुके हैं.

दो साल पहले, दुनिया भर के यहूदी इसकी स्थापना का जश्न मनाने आए थे. ये वही यहूदी थे, जो कोच्चि में कभी रहते थे और इजराइल की स्थापना के बाद इजराइल या यूरोपीय देशों में चले गए. इसलिए इसे परदेसी सिनागॉग कहा जाता है, जो कोच्चि से नौ किलोमीटर दूर मटनचेरी में स्थित है.

चाइनीज टाइल्स से हुआ जीर्णोद्धार

यह कहा जाता है कि परदेसी सिनागॉग 1568 में बनाया गया था और बाद में इस इमारत की मरम्मत की गई थी.

1664 में इसका पुनर्निर्माण किया गया था, जिमसें कैंटन (चीन) से मंगाई गई सुंदर टाइलों का इस्तेमाल किया गया था.

1805 में, त्रावणकोर के महाराजा ने इस सभास्थल पर सोने का मुकुट चढ़ाया था.

बाद में, अंग्रेज यहूदियों के प्रति दयालु रहे लॉर्ड कर्जन ने 19 नवंबर, 1900 को यहूदियों के इस ऐतिहासिक आराधनालय का दौरा किया.

यहूदी केंद्र

मटनचेरी को भारत में यहूदी केंद्र के रूप में जाना जाता है, जहां कई यहूदी कलाकृतियां अभी भी पाई जाती हैं.

2019 में यहां सबसे बुजुर्ग यहूदी महिला की मौत हुई थी. अपनी मृत्यु के समय सारा कोहेन 96 वर्ष की थीं.

सारा के एक परिचित ताहा इब्राहिम हैं, जो पेशे से दर्जी हैं और जो विशेष रूप से यहूदी टोपियों की सिलाई करते रहे हैं. इन टोपियों को ‘यूहदी कैप’ कहा जाता है.

50 वर्षीय ताहा इब्राहिम का कहना है कि वह एक बच्चे के रूप में पर्यटकों को स्मृति चिन्ह और पोस्टकार्ड बेचते थे. एक दिन उनके चाचा ने उन्हें एक यहूदी जोड़े से मिलवाया. चाची सारा और चाचा जैकब ने उन्हें घर पर अपने पोस्टकार्ड रखने की अनुमति दी और यहीं से उनसे रिश्ता शुरू हुआ.

ताहा इब्राहिम के अनुसार, जैकब एक वकील थे, जबकि सारा कई तरह के कपड़े सिलती थी. एक दिन जब उसे एक सहायक की जरूरत पड़ी, तो उसने ताहा इब्राहिम से मदद लेनी शुरू कर दी.

जैकब और सारा निःसंतान थे और जैकब की मृत्यु बीस साल पहले हुई थी. अपनी मौत के बाद, सारा को इब्राहिम की मदद की जरूरत थी और जब 2019 में सारा की मौत हो गई, तो इब्राहिम ने अपनी दुकान चलाना शुरू कर दिया.

यह स्पष्ट है कि सारा के सभी रिश्तेदार इजरायल या अन्य देशों में चले गए थे, लेकिन उन सभी को बुजुर्गों ने यह कहा था कि अपनी मातृभूमि न छोड़ें. इसलिए सारा 97 साल की होने से तीन दिन पहले ही मर गई थीं.

यहूदी-मुस्लिम भाईचारा

यहां यह ध्यान देना दिलचस्प होगा कि इजराइल की स्थापना के बाद से दुनिया भर के मुसलमानों और यहूदियों के बीच संबंध प्रभावित हुए हैं, लेकिन कोच्चि में मुस्लिम और यहूदी आपसी प्रेम और सद्भाव से रह रहे हैं. यहूदियों के सबसे अच्छे दोस्त यहां मुस्लिम थे.

इसका एक उदाहरण ताहा इब्राहिम है, जिनकी आजीविका का स्रोत यहूदियों की रंग-बिरंगी-टोपियों की सिलाई थी.

अब्राहम का कहना है कि वह अन्य यहूदी स्मारकों के साथ अपने गृहनगर में यहूदी स्मारकों को संरक्षित करना चाहते हैं.

यहूदी आबादी में गिरावट

टाइम्स ऑफ इजराइल और कुछ अन्य लेखों के अनुसार, 1980 के दशक में कोच्चि में लगभग 3,000 यहूदी थे, लेकिन इब्राहिम के अनुसार, अब शहर में मुश्किल से 25 यहूदी ही बचे हैं.

रिपोर्टों के अनुसार, अधिकांश यहूदी इजरायल, संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और अन्य देशों में चले गए थे.

भारतीय समाज सहिष्णु

मिरालिया उन यहूदियों में से एक है, जो कोचीन से इजरायल गईं. वह कहती हैं कि कोचीन में यहूदी संस्कृति अद्भुत थी.

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यहूदी कब्र पर शिलालेख लिखते हुए एक कलाकार


उनके अनुसार यहां के यहूदी बहुत धार्मिक थे और उनमें से ज्यादातर व्यापारी थे. अन्य सांस्कृतिक वर्गों के साथ उनके अच्छे संबंध थे.

वह कहती हैं कि भारतीय समाज बहुत सहिष्णु था और लोग एक-दूसरे का सम्मान करते थे.

इस तरह आए कोच्चि में यहूदी

कोच्चि में यहूदी कब से रह रहे हैं? इस संबंध में विभिन्न परंपराएं हैं.

वास्तव में, अरब और भारतीयों के बीच संबंध बहुत पुराना है. इतिहास की किताबें बताती हैं कि इन संबंधों का इतिहास हजारों साल का है.

हजारों साल पहले, अरब लोग भारत के तटीय क्षेत्रों में आते रहे हैं.

इसलिए भारत में कई धर्म भी एक साथ आए. अरब की भूमि से कम से कम तीन धर्म भारत में आए, जिनमें यहूदी, ईसाई और इस्लाम शामिल थे.

संयोगवश, तीन धर्म पहली बार दक्षिण भारत के तटीय क्षेत्रों में पहुंचे.

हिंदू राजा ने बसाए थे यहूदी

दिलचस्प बात यह है कि यहां आने वाले यहूदियों के वंशज आज भी मौजूद हैं.

वे ईसाई और मुसलमानों से भी सैकड़ों साल पहले केरल आए थे.

जनश्रुति के अनुसार, 973 ईसा पूर्व के आस-पास यहूदियों ने केरल के मालाबार तट पर कदम रखे थे. अनुमान है कि यह हजरत सुलेमान (अ.स.) का समय था. हजरत सुलेमान का व्यापारी बेड़ा यहां मसालों और खजानों के लिए आया था.

धर्मनिष्ठ हिंदू राजा ने यहूदी नेता जोसेफ राबिन को एक जागीर दी थी और उनका एक वर्ग यहां बस गया था. उसके बाद यहां के यहूदी कश्मीर और उत्तरपूर्वी राज्य में बस गए.

जीसस भी कश्मीर आए थे

ईसाई परंपरा में यह दृढ़ भावना है कि जीसस भी कश्मीर आए थे और यह इंगित करता है कि यहां पहले भी कुछ यहूदी रहे होंगे, यही कारण है कि यीशु (चइनी) यहां आए थे.

बाद में केरल में यहूदियों का आना-जाना जारी रहा और उनकी संख्या लगातार बढ़ती गई.