2024: एकता में है अटूट शक्ति

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  onikamaheshwari | Date 01-01-2024
United we stand, divided we fall
United we stand, divided we fall

 

atirआतिर खान

यह नए साल की शुरुआत है. हिंदू या इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार नए साल की शुरुआत नहीं. हमें आशावाद का कोई भी अवसर बर्बाद नहीं करना चाहिए. नए साल की शुभकामनाएँ! निश्चित रूप से नए साल की शुभकामनाओं और जश्न का उत्साह जल्द ही खत्म हो जाएगा. लेकिन हमें सावधान रहने की जरूरत है नकारात्मकता से, जो हमारे अंदर वैमनस्य ला सकती है, राजनीति से प्रेरित सोशल मीडिया इसमें एक बड़ा योगदानकर्ता है.  

अमेरिका स्थित विचारक और द इन्वेंशन ऑफ टुमॉरो पुस्तक के बेस्टसेलिंग लेखक तमीम अंसारी का कहना है कि हमारे निजी क्षेत्र में सोशल मीडिया की राजनीतिक पैठ ने दुनिया भर के लोगों के मन में बहुत बेचैनी और आंदोलन पैदा किया है.

भारत कोई अपवाद नहीं है. बहुसांस्कृतिक जानकारी के महासागर में, हम अपने आस-पास की चीज़ों को समझने में असमर्थ हैं. यह ऐसा है जैसे कई संगीतकार एक ही समय में अलग-अलग धुनें बजा रहे हों. जो संगीत नहीं बल्कि शोर है.

हमें एक समय में एक ही धुन सुननी  और सीखनी होगी. इस महीने के अंत में 22 जनवरी को अयोध्या में राम मंदिर प्रतिष्ठा समारोह आयोजित किया जाएगा. आइए हम सभी नफरत और सांप्रदायिकता की राजनीति को समाप्त करके इसे गेम चेंजर बनाकर इसमें योगदान दें.

आइए, उस दिन गांधीजी के सपने के राम राज्य की शुरुआत करें, जिसमें कोई दूसरा नहीं है और जो सभी के लिए समान सम्मान और सभी के लिए व्यक्तिगत स्वतंत्रता और उचित व्यवहार की गारंटी के अपने धर्म को अपना रहा है.

इसमें कोई संदेह नहीं कि यह एक युगांतकारी घटना है जिसमें आने वाले समय में हिंदू मुस्लिम संबंधों को हमेशा के लिए ठीक करने की क्षमता है. हमें इतिहास की धारा को सकारात्मक दिशा में मोड़ने का यह अवसर नहीं छोड़ना चाहिए.

वास्तव में हम इस अवसर का उपयोग मुस्लिम समुदाय को उनके विश्वास, जीवन, संपत्ति और संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए आश्वस्त करके हिंदू मुस्लिम विभाजन को पाटने के लिए कर सकते हैं.

ऐसा करने से राष्ट्रीय सुलह का मार्ग प्रशस्त होगा और इसे समय के इतिहास में प्रधान मंत्री मोदी के सबसे महत्वपूर्ण योगदान के रूप में याद किया जाएगा और यह निश्चित रूप से उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार का हकदार बना देगा.

यह देखकर खुशी हो रही है कि मुसलमानों ने अदालत के फैसले को स्वीकार कर लिया है और अयोध्या में भव्य आयोजन में भाग लेने के लिए आगे आ रहे हैं.
 
हसन पीजी कॉलेज, जौनपुर के प्राचार्य डॉ. अब्दुल कादिर खान ने मंदिर ट्रस्ट को 1.11 लाख रुपये का योगदान दिया है. यह दोनों समुदायों के बीच विश्वास कायम करने की दिशा में एक अच्छा कदम है.
 
बुर्का पहने एक महिला शबनम शेख उत्सव का हिस्सा बनने के लिए मुंबई से अयोध्या आने के लिए पूरी तरह तैयार है, हालांकि वह इस्लाम में दृढ़ विश्वास रखती है.
 
वर्तमान परिदृश्य में विदेशी आक्रमणकारियों की पिछली गलतियों के लिए भारतीय मुसलमानों को निशाना नहीं बनाया जाना चाहिए. उन्हें यह अहसास नहीं कराया जाना चाहिए कि अतीत में हुई ज्यादतियों के लिए वे जिम्मेदार हैं. भारतीय नागरिक के रूप में उनके अधिकार देश के किसी भी अन्य समुदाय के समान ही महत्वपूर्ण हैं.
 
प्रसिद्ध विद्वान अब्दुल समद ख्वाजा का कहना है कि मर्यादा पुरूषोत्तम राम का मंदिर अधूरा होगा यदि यह क्षमा, दया और करुणा को प्रेरित नहीं करता है, जिससे आने वाले समय में स्थायी संघर्ष समाधान नहीं होगा.
 
आख़िरकार श्री राम की विरासत का सबसे बड़ा संदेश जो कहा जाता है उसे कायम रखना है.  हमें श्री राम के संदेश के इस सबसे महत्वपूर्ण तत्व का सम्मान करने की आवश्यकता है. न्याय को कायम रखना राम राज्य का सार है और गांधी जी ने राम राज्य को जिस कारण से कहा था वह हज़रत अबू बक्र और हज़रत उमर की खिलाफत का भी प्रतिबिंब था क्योंकि इसका उद्देश्य उत्पीड़ितों की रक्षा करना और कानून का शासन स्थापित करना था.
 
इसे श्री राम के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि के रूप में भुनाया जाए।' आइए हम विश्वास और विश्वास के एक अचूक मंदिर के निर्माण में एकजुट हों जो भूमि में सांप्रदायिक सद्भाव और धार्मिक सहिष्णुता की आशा बन जाए, जो भारत की सच्ची भावना के लिए एक उपयुक्त मंदिर हो.
 
चूँकि हमारे हिंदू भाई राम मंदिर के निर्माण का जश्न मना रहे हैं, इसलिए भारतीय मुसलमानों को अपने धार्मिक स्थलों और धार्मिक स्वतंत्रता के क्षरण से डरने की ज़रूरत नहीं है, जिसकी रक्षा करना भारत राज्य का कर्तव्य है.
 
भारत में हिंदू और मुस्लिम समुदाय के लोगों के बीच आपसी सम्मान अद्वितीय है. और जिस महान राष्ट्र में हम रहते हैं, उसके लाभ के लिए इसे दृढ़ता से संरक्षित करने की आवश्यकता है.
 
इसमें देश की मूर्त और अमूर्त दोनों तरह की विरासत की रक्षा करना और किसी को इसे नष्ट नहीं करने देना शामिल है. सभी मंदिर, गुरुद्वारे और मस्जिद हमारी साझा विरासत हैं.
 
भारत की संस्कृति सदैव समावेशी रही है. हिंदू सदियों से लाखों मस्जिदों से आने वाली अजान को सुनते आए हैं और शिया ताजिया जुलूसों के प्रति सहिष्णु रहे हैं, उसी तरह मुसलमान देवी-देवताओं की मूर्तियां बनाते रहे हैं, घाटों से पवित्र गंगा जल लेने आने वाले हिंदू तीर्थयात्रियों पर फूलों की पंखुड़ियां बरसाते रहे हैं. यदि हम अपने सभ्यतागत मूल्यों को आगे बढ़ाना चाहते हैं तो इन भावनाओं को संजोकर नई पीढ़ी तक पहुंचाने की जरूरत है.
 
इन्हीं गुणों ने भारतीय सभ्यता को विशिष्ट बनाया है. सहिष्णुता और मानवाधिकार हजारों वर्षों से हमारे प्रकाशस्तंभ रहे हैं. एक दुर्लभ गुण जो शेष विश्व से लुप्त होता जा रहा है.
 
भारत में बीस करोड़ मुसलमानों की आबादी के लिए देश के हर कोने में सात लाख मस्जिदें हैं. इसके बिल्कुल विपरीत बेलग्रेड में सर्बिया के 2.3 लाख मुसलमानों की आबादी के लिए 1575 में बनाई गई एक बजराकली मस्जिद है। ये आँकड़े एक अद्भुत कहानी कहते हैं.
 
इस बात का ध्यान रखने की जरूरत है कि हमेशा ऐसे लोग होंगे जो आपसे कहेंगे कि नया साल मत मनाओ या किसी हिंदू या मुस्लिम त्योहार में भाग मत लो.
 
ये लोग गुमनामी में रहते हैं, ऐसी मानसिकता जो न केवल प्रतिगामी है बल्कि बहुत खतरनाक भी है. दोनों समुदायों को ऐसे लोगों की पहचान कर उन्हें अलग करने की जरूरत है. ये कोई बहुत बड़ी संख्या नहीं हैं. अधिकांश भारतीय शांतिप्रिय हैं.
 
मोबाइल फोन और अन्य गैजेट्स के माध्यम से कई दिशाओं से हमारे निजी स्थान में जानकारी के प्रवेश के कारण हमारी मासूमियत दूर हो गई है और इसने हमारे समुदायों के फील-गुड फैक्टर को सीमित कर दिया है, जो अतीत में अपने संरक्षित विश्वास प्रणालियों में रह रहे थे.
 
सोशल मीडिया के माध्यम से ध्रुवीकरण का दबाव भ्रम और असुरक्षा की भावना पैदा करता है. जब हम सुबह उठते हैं तो हमारे दिन की शुरुआत दुनिया के बाकी हिस्सों से जुड़ने के लिए सोशल मीडिया अकाउंट स्वाइप करने से होती है. तब हमारा दिमाग मकड़ी के जाले से भर जाता है.
 
जब हम धार्मिक सर्वोच्चता और धर्मों के उत्थान की पोस्ट देखते हैं, तो हमारा दिमाग प्रदूषित हो जाता है. असुरक्षा संस्कृति की शुद्धता की आवश्यकता को जन्म देती है, जिसका भारत आदी नहीं है. लेकिन इस क्रांति की अनिवार्यता को देखते हुए हम इसके साथ सामंजस्य बिठाने की कोशिश कर रहे हैं. निश्चित रूप से यह शांत हो जाएगा लेकिन इसे समझने में और हमारी संवेदनाओं को बदलते समय के साथ तालमेल बिठाने में समय लगेगा.
 
बीच के समय में हमें बहुत सतर्क रहना होगा. शहरी शहरों में रहने वाले कुछ बुद्धिजीवी गांवों में रहने वाले लोगों की तुलना में अधिक कट्टरपंथी होते जा रहे हैं.
इसका एक कारण सूचनाओं का हानिकारक प्रदर्शन, दूसरे को कमतर आंकना और उसे बदनाम करना माना जा सकता है, इससे हमारे मानस पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है.
 
इसके विपरीत आप पाएंगे कि देहाती ज्ञान अभी भी बहुत बेहतर है. यह अपने तात्कालिक परिवेश के प्रति उनकी प्राथमिकता के कारण ही है कि गाँवों में रहने वाले लोग अभी भी अपनी सीमित दुनिया में, सद्भाव से रह रहे हैं. लेकिन वे भी इस सदी के विश्वव्यापी ध्रुवीकरण से पूरी तरह अछूते नहीं हैं.
 
अब हम ज्ञान की उस दुनिया के संपर्क में हैं जो अतीत में हमारे लिए उपलब्ध नहीं थी. हमारा लोकतंत्र हमें यह सुनिश्चित करता है कि हमें जो सही और गलत लगता है, उसके बीच चयन करने का अधिकार है.
 
इस वर्ष संकल्प लें कि कोई भी ध्रुवीकरण वाली सामग्री दोस्तों, रिश्तेदारों या समुदाय को नहीं भेजी जाएगी. इस वर्ष की संकल्प सूची में हाउसिंग सोसायटी, सामुदायिक केंद्रों, जिला केंद्रों और यहां तक कि ग्राम स्तर पर सामाजिक सद्भाव में सुधार करना भी शामिल होना चाहिए.
 
सभी भारतीयों को अपनी धार्मिक प्राथमिकताओं से ऊपर उठकर राष्ट्र, गरीबी उन्मूलन, शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास, स्वच्छता और प्रदूषण नियंत्रण जैसे सामाजिक कारणों के लिए सामूहिक रूप से काम करने की आवश्यकता है. ऐसा करके हम प्रधान मंत्री मोदी की गारंटी के दृष्टिकोण के साथ जुड़ जाएंगे और हमारे पास पूरे वर्ष के लिए उत्साहित रहने के कारण होंगे.