भड़काऊ भाषण देने वाले जाकिर नाईक की फाउंडेशन को यूएपीए ट्रिब्यूनल का नोटिस

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 20-12-2021
जाकिर नाईक
जाकिर नाईक

 

नई दिल्ली. भड़काऊ भाषण देने वाले जाकिर नाईक के इस्लामिक रिसर्च फाउंडेशन (आईआरएफ)पर अवैध गतिविधियां निरोधक कानून (यूएपीए) के तहत केन्द्र सरकार के पांच वर्ष के विस्तारित प्रतिबंध की जांच कर रहे ट्रिब्यूनल ने सोमवार से अपनी कार्यवाही शुरू कर दी और इस संगठन को नोटिस जारी किए. इस ट्रिब्यूनल की अध्यक्षता दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश डी एन पटेल कर रहे हैं. जाकिर नाईक भारत में ही जन्मा था लेकिन वह हमेशा विभिन्न संप्रदायों को लेकर भड़काऊ भाषणों को लेकर चर्चा में रहा था और दिल्ली पुलिस ने उसके खिलाफ राष्ट्र विरोधी गतिविधियों के तहत मामला दर्ज किया था. इसके बाद वह 2016 में मलेशिया भाग गया था.


केन्द्र सरकार ने उसके संगठन पर पांच वर्षों का प्रतिबंघ लगा दिया था और केन्द्र सरकार ने उसके संगठन को अवैध घोषित करने तथा इस पर पांच वर्ष के प्रतिबंध को बढ़ाने के अपने निर्णय का बचाव करने के लिए सात सदस्यीय एक काूननी टीम का गठन किया था. इस ट्रिब्यूनल ने आईआरएफ से 28 दिसंबर तक जवाब मांगा है.

 

इस कानूनी टीम की अगुवाई कर रहे सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने संगठन के खिलाफ विस्तारित पांच वर्ष के प्रतिबंध का बचाव करते हुए इस नोटिस को सभी प्रमुख दैनिक समाचार पत्रों में प्रकाशित करने की पेशकश की थी ताकि यह संगठन किसी तरह का कोई तकनीकी बचाव नहीं ले सके. इस टीम में उनके अलावा एडवोकेट सचिन दत्ता, रजत नायर, कानू अग्रवाल, अमित महाजन, जय प्रकाश और ध्रुव पांडे शामिल हैं.

 

केन्द्र सरकार ने इस ट्रिब्यूनल का गठन यूएपीए ,1967 के तहत किया है ताकि इस बात को न्यायोचित ठहराया जा सके कि इस पर लगाए गए प्रतिबंधों का समुचित आधार है.

 

केन्द्रीय गृह मंत्रालय की ओर से 13 दिसंबर को जारी की गई अधिसूचना में कहा गया है"केन्द्र सरकार ने एक गैरकानूनी गतिविधियां (निरोधक)ट्रिब्यूनल का गठन किया है जिसकी अगुवाई दिलली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल करेंगे, ताकि यह तय किया जा सके कि इस संगठन को प्रतिबंधित करने का समुचित कारण है. "

 

केन्द्रीय गृह मंत्रालय की ओर से 15 नवंबर को जारी एक अधिसूचना में आईआरएफ पर पांच वर्षों तक प्रतिबंध बढ़ा दिया गया था. सरकार का कहना है कि यह संगठन और इसके कार्यकर्ता अपने भाषणों से देश के धर्मनिरपेक्ष ताने बाने को छिन्न भिन्न कर सकते हैं और लोगों के विचारों को प्रदूषित कर समाज में असहिष्णुता, राष्ट्र विरोधी भावनाओं तथा अलगाव संबंधी गतिविधियों को बढ़ा सकते है.