The role of Muslim artisans in building pandals like the Ram Temple – a shining example of Ganga-Jamuni culture
ओनिका माहेश्वरी/ नई दिल्ली
पटना, बिहार — इस वर्ष दुर्गा पूजा के शुभ अवसर पर राजधानी पटना में एक अनोखी सांस्कृतिक मिसाल पेश की गई है। इतवारपुर में तैयार किया गया यह भव्य पंडाल, जो अयोध्या के राम मंदिर की हू-ब-हू झलक देता है, न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि भारत की साझा सांस्कृतिक विरासत गंगा-जमुनी तहज़ीब का जीवंत उदाहरण भी बन गया है।
इस भव्य पंडाल का निर्माण कार्य पिछले चार महीनों से चल रहा था, जिसकी कुल लागत लगभग 70 लाख रुपये आंकी गई है। इस 115 फीट ऊँचे और 1500 स्क्वायर फीट क्षेत्र में बने पंडाल को बनाने में 10,000 से अधिक बांस का इस्तेमाल किया गया है। लेकिन इस पूरे आयोजन में सबसे विशेष बात यह रही कि इस पंडाल को अंतिम रूप देने में मुख्य भूमिका मुस्लिम कारीगरों ने निभाई है।
इमामुद्दीन अंसारी: कला के माध्यम से समरसता का संदेश
इस पंडाल निर्माण की सबसे चर्चित हस्ती बने हैं इमामुद्दीन अंसारी, जो पेशे से कारीगर हैं और वर्षों से पूजा पंडालों के निर्माण में अपनी कला का प्रदर्शन कर रहे हैं। उन्होंने गर्व से कहा:
"यह मेरा कला है। अगर ओरिजिनल राम मंदिर देख कर आते तो और भी बारीकी से बनाते, लेकिन फोटो देखकर ही हमने ये बनाया।"
उनकी इस कला और समर्पण को देखकर स्थानीय लोग बेहद भावुक हो उठे। एक दर्शक ने कहा:
"आपने जितने भी पटना में रहने वाले इंसान हैं, सबका मन खुश कर दिया है इस राम मंदिर को बनाकर।"
कला की कोई जात नहीं होती
इस पंडाल में न केवल 16 फीट ऊँची मां दुर्गा की प्रतिमा, बल्कि 4 फीट की भगवान राम की प्रतिमा भी स्थापित की जा रही है। पंडाल में भगवान राम, हनुमान और मां दुर्गा के सभी रूपों को दर्शाया गया है, जिससे धार्मिक श्रद्धा के साथ-साथ शिल्पकला का भी प्रदर्शन होता है।
इस कार्य में शामिल अधिकांश कारीगर पश्चिम बंगाल, बिहार और अन्य राज्यों से आए हैं। इनमें बड़ी संख्या में मुस्लिम कारीगर हैं, जो दिन-रात मेहनत कर इस सांस्कृतिक आयोजन को भव्य स्वरूप देने में लगे हुए हैं।
हिंदू-मुस्लिम एकता का उत्सव
सोशल मीडिया पर भी यह पंडाल चर्चा का विषय बना हुआ है। लोग इसे न सिर्फ देखने जा रहे हैं, बल्कि वीडियो और तस्वीरें शेयर कर इस कला और धार्मिक सौहार्द की सराहना कर रहे हैं। यह आयोजन उस मूल भारतीय संस्कृति की याद दिलाता है जहाँ धर्म से पहले इंसानियत और कला की पूजा होती है।
बिहार जैसे राज्य में, जहाँ गंगा-जमुनी तहज़ीब की जड़ें सदियों से मजबूत हैं, यह आयोजन एक बार फिर यह साबित करता है कि धर्म हमें अलग नहीं करता, बल्कि जोड़ता है, और यही भारत की असली ताक़त है।
प्रशासन की सतर्कता और जनता की जागरूकता
पटना जिला प्रशासन ने इस दौरान एक एडवाइजरी भी जारी की है, जिसमें त्योहार के दौरान लोगों से संयम और सतर्कता बरतने की अपील की गई है। खासतौर पर महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा, अफवाहों से बचने और सामाजिक सौहार्द बनाए रखने की बात कही गई है।
पटना के इस राम मंदिर जैसे पंडाल की कहानी सिर्फ एक धार्मिक आयोजन की नहीं है, बल्कि यह कहानी है एकता, प्रेम, कला और साझा संस्कृति की। यह पंडाल बताता है कि जब इंसानियत और शिल्प एक साथ आते हैं, तो सीमाएँ टूटती हैं और एक नया इतिहास लिखा जाता है। यह आयोजन न केवल दुर्गा पूजा का पर्व है, बल्कि यह भारत की गंगा-जमुनी तहज़ीब की सच्ची पूजा है।