कृषि कानूनों की वापसी हार-जीत का नहीं, बड़े जिगर वाला काम था

Story by  एटीवी | Published by  [email protected] | Date 22-11-2021
नरेंद्र मोदी - एंजेला मर्केल
नरेंद्र मोदी - एंजेला मर्केल

 

नई दिल्ली. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने अनोखे अंदाज में 19 नवंबर को गुरुपर्व के दिन भारतीय नागरिकों को यह घोषणा करते हुए चौंका दिया कि जिन कृषि कानूनों के खिलाफ कुछ वर्ग आंदोलन कर रहे हैं, उन्हें वापस ले लिया जाएगा.

 
भारतीय प्रधानमंत्री ने हमेशा अन्य सभी विचारों से ऊपर देश की एकता और अखंडता को रखा है और शायद इसलिए निहित स्वार्थों, विशेष रूप से पाकिस्तान प्रायोजित और वित्त पोषित तत्वों को भारतीय समाज में (विशेष रूप से सिखों के बीच) विभाजन और अस्थिरता पैदा करने से रोकना भी कृषि कानूनों को वापस लेने का एक प्रमुख उद्देश्य रहा है.
 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शालीनता से स्वीकार किया है कि शायद उनकी सरकार के कृषि कानूनों के लाभों को समझाने के प्रयासों में कमियां रह गईं, जो किसानों को अपनी उपज बेचने के लिए मुक्त करने को लेकर लागू किए गए थे. हालांकि इन कानूनों का कुछ वर्गो की ओर से विरोध किया गया. कृषि कानून, जिसका इरादा सबसे गरीब और सबसे कमजोर छोटे किसानों को लाभ पहुंचाना था, जो कि कृषि आबादी का विशाल बहुमत है, को पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसानों के कुछ बड़े समूहों के गंभीर विरोध का सामना करना पड़ा.
 
हालांकि प्रधानमंत्री ने अब घोषणा की है कि वह इस तरह के विरोध की स्थिति में कानूनों के साथ आगे नहीं बढ़ेंगे और एक आम सहमति बनाने की दिशा में काम करेंगे. 
 
प्रधानमंत्री ने गुरु नानक गुरुपर्व के अवसर को घोषणा करने के लिए चुना, शायद यह कोई संयोग नहीं है, क्योंकि वह जमीनी स्तर के राजनीतिक कार्यकर्ता के रूप में अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत से लेकर गुजरात राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में अपने तीन बार के कार्यकाल तक सिख समुदाय के बीच लंबे समय से एक चैंपियन रहे हैं और उन्होंने समुदाय के प्रति इसी प्रकार की करुणा को प्रदर्शित करना जारी रखा है.
 
राष्ट्रीय सुरक्षा और एकता जैसे क्षेत्रों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विशेष ध्यान के साथ, यह अचानक निर्णय के लिए किसी भी चीज से अधिक जिम्मेदारी वाली चीज भी दिखती है. पंजाब और उत्तर प्रदेश राज्यों में आगामी चुनावों के कारण इस कदम को चुनावी रणनीति के एक हिस्से के तौर पर भी देखा जा रहा है.
 
चुनावी उलटफेर न तो स्थायी है और न ही सर्व-महत्वपूर्ण, लेकिन राष्ट्र की अखंडता अधिक महत्वपूर्ण है. पंजाब, जो अतीत में पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवादी आंदोलन से पीड़ित रहा है, वहां किसी भी परिस्थिति में एक बार फिर ऐसी स्थिति उत्पन्न होने की अनुमति नहीं दी जा सकती थी. ऐसे समय में जब देश को सभी मोचरें पर शत्रुतापूर्ण पड़ोसियों से सुरक्षा खतरों का सामना करना पड़ रहा है, कश्मीर से लेकर पूर्वोत्तर तक, पंजाब को छोटे राजनीतिक लाभ के लिए बलिदान नहीं किया जा सकता है.
 
यह कहा जा सकता है कि भारतीय प्रधानमंत्री में अपनी सरकार की छवि को एक 'कठिन' सरकार के रूप में एक झटका स्वीकार करने का साहस था, जो देश के बड़े हित में सोचते हुए लिया गया फैसला है. इस तरह से अपने देश के प्रति उदारता, दूरदर्शिता और प्रतिबद्धता शायद ही आज के विश्व के नेताओं में भी देखी जाती हो.