सीधे सुप्रीम कोर्ट पहुंचने पर नाराज हुआ न्यायालय, भूपेश बघेल को हाईकोर्ट जाने की सलाह

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 04-08-2025
The court got angry on reaching the Supreme Court directly, advised Bhupesh Baghel to go to the High Court
The court got angry on reaching the Supreme Court directly, advised Bhupesh Baghel to go to the High Court

 

नई दिल्ली

उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को आपराधिक मामलों में सीधे उसके समक्ष याचिका दायर करने की प्रवृत्ति पर असंतोष जताया और छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल एवं उनके बेटे चैतन्य बघेल को संबंधित मामलों के लिए उच्च न्यायालय का रुख करने की सलाह दी। इन दोनों के खिलाफ कथित शराब घोटाले और अन्य मामलों में केंद्रीय एजेंसियां जांच कर रही हैं।

न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने पूछा कि जब प्राथमिकी, गिरफ्तारी, रिमांड और धनशोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के प्रावधानों के खिलाफ राहत की मांग की जा रही है, तो इसे लेकर याचिकाकर्ता पहले उच्च न्यायालय क्यों नहीं गए?

“हर अमीर सीधे सुप्रीम कोर्ट क्यों आ रहा है?”

पीठ ने कहा, “हम लगातार इस समस्या का सामना कर रहे हैं। जैसे ही कोई संपन्न व्यक्ति सीधे सुप्रीम कोर्ट आता है, हम अपने निर्देश बदलने लगते हैं। यह एक नया चलन बन गया है। अगर ऐसा ही चलता रहा तो आम नागरिकों और उनके साधारण वकीलों के लिए सुप्रीम कोर्ट में कोई जगह नहीं बचेगी। उच्च न्यायालय भी एक संवैधानिक न्यायालय है और ऐसे मामलों पर फैसला करने में सक्षम है।”

भूपेश बघेल और उनके बेटे ने अपनी याचिकाओं में जांच एजेंसियों की कार्रवाई और पीएमएलए के तहत उनके खिलाफ की जा रही कार्यवाही को चुनौती दी थी।

वरिष्ठ वकीलों की दलीलें

पूर्व मुख्यमंत्री की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और चैतन्य बघेल की ओर से अभिषेक मनु सिंघवी ने दलील दी कि प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) जानबूझकर लोगों को टुकड़ों में आरोपपत्र दाखिल कर फंसा रहा है और बिना प्राथमिकी में नाम होने के भी उन्हें गिरफ्तार कर रहा है।

सिब्बल ने कहा, “कई मामलों में नाम प्रारंभिक आरोपपत्र में नहीं होता, लेकिन बाद में पूरक आरोपपत्र में जोड़ दिया जाता है और गिरफ्तारी हो जाती है। यह प्रक्रिया अनुचित है।”

सिंघवी ने बताया कि चैतन्य बघेल का नाम शुरू में किसी भी आरोपपत्र में नहीं था, लेकिन मार्च में उनके घर छापा मारा गया और बाद में पूरक आरोपपत्र में नाम शामिल कर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।

सिब्बल ने यह भी कहा कि ईडी 2022 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए उस फैसले का उल्लंघन कर रही है जिसमें गिरफ्तारी की उसकी शक्तियों को बरकरार रखा गया था। इसी के तहत उन्होंने पीएमएलए की धाराएं 50 और 63 को चुनौती दी है, जो अधिकारियों को पूछताछ, दस्तावेज मांगने, बयान दर्ज करने और झूठे बयान पर सजा देने का अधिकार देती हैं।

पीठ की सख्त टिप्पणियां

पीठ ने सवाल किया, “अगर जांच एजेंसियां कानून की प्रक्रिया का पालन नहीं कर रही थीं तो क्या किसी ने इस पर कोर्ट का ध्यान दिलाया या किसी ने इसे अदालत में चुनौती दी?”

पीठ ने यह भी कहा कि, “कई बार कानून वैध होता है, लेकिन उसका इस्तेमाल गलत तरीके से किया जाता है। ऐसे मामलों में कार्रवाई अवैध हो सकती है, न कि कानून।”

अंत में, अदालत ने दोनों याचिकाकर्ताओं को सलाह दी कि वे अपने मामले से जुड़ी सभी दलीलें संबंधित उच्च न्यायालय में रखें।पीएमएलए की धाराओं 50 और 63 को लेकर यदि याचिकाकर्ता चाहें, तो इस मुद्दे पर नई रिट याचिका दाखिल कर सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इन याचिकाओं पर सुनवाई लंबित मामलों के साथ की जाएगी।

इसके बाद, शीर्ष अदालत ने दोनों को उच्च न्यायालय में जाने की अनुमति दी और संबंधित हाईकोर्ट को निर्देश दिया कि वह इन याचिकाओं पर शीघ्र सुनवाई करे।