ग्रामीणों के प्रयास से जी उठी हरियाणा में मरती हुई थापना नदी

Story by  मंजीत ठाकुर | Published by  [email protected] | Date 03-09-2021
...और नदी जी उठी
...और नदी जी उठी

 

साल 2012 में मानसून की देरी के कारण थापना नदी का जलस्तर कम हो गया था जिसके कारण यह नदी सूखने की कगार पर आ गई थी. इस समस्या को देखते हुए पंचायत हुई, जिसमें यह सुझाव दिया गया कि नदी के किनारे खेती करने वाले किसान अपने बोरवेल से पानी को नदी के सबसे गहरी जगहों में पंप कर सकते हैं जिससे कम से कम पानी में रहने वाले जीवों को बचाया जा सके.

इस सूखे की समस्या को देखते हुए कन्यावाला गांव के रहने वाले मेहक सिंह (43) ने इस सुझाव पर सहमति जताई और उन्होंने इसे अपना कर्तव्य भी माना. ऐसा माना जाता है कि इस नदी का कुछ हिस्सा जमीन के अंदर से बहता है, जिससे किसानों को अपने खेतों में पानी भरने की अनुमति मिलती है. इसलिए यहां के किसान और ग्रामीण इस नदी से काफी जुड़े हुए हैं. मेहक सिंह कहते हैं कि हम साल में दो बार सामुदायिक भोज के साथ नदी की भी पूजा करते हैं. इसलिए इसे बचाना हमारा कर्तव्य है.

वहीं पड़ोसी गांव मंडोली में रहने वाले 66 वर्षीय सुरजीत सिंह ने भी नदी की स्थिति और मर रही मछलियों के बारे में चिंता व्यक्त की और वह इसे बचाने के आगे आए. यह बहुत मुश्किल काम था मगर दो दर्जन किसानों और अन्य ग्रामीणों की मदद से ईंधन की लागत को कवर करने से उस साल नदी का जलस्तर बढ़ गया और यह सूखने से बच गई.

थापना हमेशा से ही इसक किनारे रहने वाले लोगों की आस्था से जुड़ी रही है, हालांकि यह नदी प्रदूषण और जलस्तर में कमी की समस्या से जूझती रही है.

कनालासी में ही नदी को पुनर्जीवित करने और उसकी रक्षा करने के लिए समुदाय द्वारा चलाए जा रहे अभियान का मजबूती मिल गई थी.

इस नदी को बचाने की शुरुआत 2007 में एक पूर्व आईएफएस अधिकारी और पीस चैरिटेबल ट्रस्ट के निदेशक, मनोज मिश्रा द्वारा शुरू किए गए यमुना जियो अभियान के साथ हुई थी. इस अभियान के तहत वाईजेसी ने मेट्रिक्स से पहले ही इस नदी को जीवित करने और इसमें सुधार की मांग की थी.

इसका मतलब नदी में जलीय जीवन और उसके किनारे होने वाली खेती का अध्ययन करना था. क्या यह नदी यमुना की मशहूर गेम फिश, महसीर, का समर्थन कर सकती है, जो केवल प्रदूषण मुक्त पानी में ही पनप सकती है? नदी के किनारे रहने वाले कछुओं, मेंडकों, पक्षियों और अन्य प्रकार के जीवों को विभिन्न प्रजातियां क्या थीं? क्या नदी के आसपास के पेड़ उग रहे थे, या मर रहे थे?

इसी काम को करने के लिए थापना के साथ ग्रामीणों को शामिल किया गया था. यह परियोजना 2009 से लेकर दो साल तक चलने वाली थी और थापना के साथ 20 'नदी मित्र मंडली' की स्थापना हुई, प्रत्येक मंडली में 10 से लेकर 40 स्थानीय लोग जुड़े हुए थे. जो नियमित रूप से मिले और एक साथ मिलकर परीक्षण किया.

वाईजेसी के संयोजक भीम सिंह रावत ने कहा कि करीब 500 लोगों को अलग-अलग चरणों में प्रशिक्षित किया गया था, जहां उन्हें नदी को प्रदूषण मुक्त रखने के बारे में शिक्षित किया गया था. इसके साथ ही उन्हें गांव के सीवरों को पुनर्निर्देशित करने और खेतों से कीटनाशक के बहाव को रोकने के निर्देश दिए गए थे.

यह वो टाइम था जब लंदन में टेम्स रिवर ट्रस्ट (टीआरटी) को एक अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिला, जिसके जनादेश ने इसे दुनिया के किसी भी हिस्से में नदी के लिए काम करने वाले किसी भी संगठन के साथ जुड़ने की अनुमति दी गई. इसीलिए टेम्स रिवर ट्रस्ट ने वाईजेसी के साथ मिलकर नदियों की स्थिति को सुधारने की परियोजना के लिए काम करना शुरू कर दिया. यही वजह थी कि इस परियोजना को दो साल के लिए और बढ़ा दिया गया था. इसके बाद कनालासी निवासी और स्थानीय मंडली के प्रमुख किरण पाल राणा ने कनालासी और आसपास के इलाकों में नदियों को जीवित करने के बारे में जागरूकता बढ़ाई.