जयपुर
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने रविवार को कहा कि संगठन अपनी शक्ति अपने स्वयंसेवकों की "भावनात्मक और जीवनशक्ति" से प्राप्त करता है, और यह स्पष्ट किया कि हर स्वयंसेवक, मानसिकता के हिसाब से, स्वाभाविक रूप से प्रचारक बन जाता है।
यहां पथेय कान संस्थान में पुस्तक "और यह जीवन समर्पित" के विमोचन के मौके पर भागवत ने कहा कि यह पुस्तक राजस्थान के 24 दिवंगत आरएसएस प्रचारकों की जीवन यात्रा को समर्पित है।
भागवत ने कहा, "संघ अपनी शक्ति और जीवनशक्ति स्वयंसेवकों की भावनात्मक ताकत से प्राप्त करता है। सिर्फ उनकी मानसिकता से हर स्वयंसेवक प्रचारक बन जाता है। यही संघ की जीवन ऊर्जा है।"
भागवत ने चेतावनी दी कि संगठन के विस्तार और बेहतर कामकाजी परिस्थितियों के बावजूद, उसकी मौलिक भावना में कोई बदलाव नहीं होना चाहिए।
"आज संघ का विस्तार हुआ है और सुविधाओं में वृद्धि हुई है, लेकिन इससे अपनी चुनौतियाँ भी आई हैं। हमें वही रहना चाहिए, जैसे हम विरोध और उपेक्षा के समय थे। वही भावना संघ को आगे ले जाएगी," उन्होंने कहा।
भागवत ने आरएसएस के काम की प्रकृति को स्पष्ट करते हुए कहा कि संगठन को दूर से समझा नहीं जा सकता।भागवत ने कहा,"कई लोगों ने संघ जैसी शाखाएं चलाने की कोशिश की, लेकिन कोई भी 15 दिन से ज्यादा नहीं चल सका। हमारी शाखाएं सौ साल से ज्यादा समय से चल रही हैं और लगातार बढ़ रही हैं, क्योंकि संघ अपने स्वयंसेवकों की निष्ठा से चलता है."
भागवत ने यह भी कहा कि अब आरएसएस का काम एक सार्वजनिक चर्चा और सद्भावना का विषय बन चुका है।
भागवत ने कहा,"कौन सोच सकता था कि एक सदी पहले, साधारण शाखाएं राष्ट्र निर्माण में योगदान करेंगी? लोग हमें मजाक उड़ाते थे, कहते थे हम सिर्फ हवा में डंडे लहरा रहे हैं। लेकिन आज संघ अपना शतक मना रहा है और बढ़ती सामाजिक स्वीकृति के साथ."
प्रचारकों के जीवन पर हाल ही में प्रकाशित पुस्तक का जिक्र करते हुए भागवत ने कहा कि यह न केवल गर्व का कारण है, बल्कि यह कठिन, मूल्य-आधारित जीवन जीने की प्रेरणा भी देता है।उन्होंने स्वयंसेवकों से पुस्तक में प्रस्तुत आदर्शों को अपने जीवन में आत्मसात करने का आह्वान किया।