राष्ट्रपति चुनावः 1962 में डॉ. राधाकृष्णन का निर्विरोध निर्वाचन रोकने आए थे हर बार के उम्मीदवार चौधरी हरिराम

Story by  मंजीत ठाकुर | Published by  [email protected] | Date 27-06-2022
राष्ट्रपति पद शपथ ग्रहण के बाद संबोधन करते हुए डॉ. राधाकृष्णन
राष्ट्रपति पद शपथ ग्रहण के बाद संबोधन करते हुए डॉ. राधाकृष्णन

 

मंजीत ठाकुर/ नई दिल्ली

1950 में अंतरिम राष्ट्रपति बनने के बाद और 1952 और 1957 में दो बार लगातार पद पर रहने के बाद राजेंद्र प्रसाद ने तीसरी बार चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया. असल में, उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं रहने लगा था. हालांकि, 1957 में राष्ट्रपति चुनाव के दौरान डॉ. राधाकृष्णन डॉ. राजेंद्र प्रसाद की उम्मीदवारी से नाराज थे और पंडित नेहरू भी डॉ. राधाकृष्णन को ही राष्ट्रपति बनना चाहते थे.

लेकिन राजनैतिक घटनाचक्र की वजह से डॉ. राजेंद्र प्रसाद ही कांग्रेस प्रत्याशी बने. लेकिन 1962 में यह स्पष्ट हो चुका था कि राधाकृष्णन ही कांग्रेस की तरफ से राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार होंगे. उनका जीतना करीब तय ही था. वो बहुत आसानी से जीते. इस बार भी किसी पार्टी ने उनके खिलाफ कोई प्रत्याशी खड़ा नहीं किया.

डॉ. राधाकृष्णन के राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के बाद उन्हें बधाई देते हुए डॉ. राजेंद्र प्रसाद (सभी फोटोः राष्ट्रपति सचिवालय)

देश के तीसरे राष्ट्रपति के चुनाव के लिए 6 अप्रैल 1962 को चुनाव प्रक्रिया शुरू होने की घोषणा चुनाव आयोग ने कर दी. अप्रैल में नामांकन होना था और 6 मई को मतदान होने वाला था. 1962 में नेहरू और कांग्रेस पार्टी दोनों की तरफ से डॉ. राधाकृष्णन को उम्मीदवार बनाने की सहमति थी. वह 1952 से उपराष्ट्रपति भी थे. साथ ही लोग उनकी विद्वता का लोहा भी मानते थे.

बहरहाल, डॉ. राधाकृष्णन दलीय रूप से सर्वसम्मत उम्मीदवार थे और किसी भी अन्य पार्टी ने उनके खिलाफ अपना प्रत्याशी राष्ट्रपति चुनाव के लिए खड़ा नहीं किया. विपक्षी दलों ने किसी अन्य उम्मीदवार को समर्थन नहीं देने का निर्णय भी किया.

डॉ. राजेंद्र प्रसाद को भारत रत्न से सम्मानित करते हुए डॉ. राधाकृष्णन

लेकिन 1962 के राष्ट्रपति चुनाव में भी दो निर्दलीय उम्मीदवार मैदान में आ जमे थे. रोहतक के चौधरी हरिराम तीसरी बार राष्ट्रपति चुनाव में खड़े हुए थे तो दूसरे निर्दलीय प्रत्याशी थे यमुना प्रसाद त्रिसुलिया.

डॉ. राधाकृष्णन को चुनाव में 553,067 वोट मिले तो चौधरी हरिराम को 6,341 वोट. चौधरी हरिराम पिछले दो चुनावों में भी प्रत्याशी के रूप में राष्ट्रपति चुनाव में थे. दूसरे निर्दलीय उम्मीदवार त्रिसुलिया को 3,537 वोट मिले थे.

राष्ट्रपति चुनावों में दो बार दूसरे स्थान पर रहनेवाले एकमात्र राजनेता चौधरी हरिराम

हालांकि, चौधरी हरिराम के नाम एक अनोखा रिकॉर्ड यह है कि वह अकेले राजनैतिक नेता हैं जिन्हें दो बार राष्ट्रपति चुनावों में दूसरा स्थान हासिल हुआ था. 1957 और 1962 दोनों बार वह दूसरे स्थान पर रहे थे. चौधरी हरिराम की जिंदगी में नंबर दो का कमाल का संयोग था. उनके तीन बड़े भाइयों मे से दो, विधायक थे और दो की हत्या हुई थी. चौधरी हरिराम ने दो बार लोकसभा का चुनाव भी लड़ा था पर पराजित रहे थे. 1952 के आम चुनावों में वह दूसरे नंबर पर रहे थे. 

राष्ट्रपति भवन के प्रांगण में सलामी गारद का निरीक्षण करते डॉ. राधाकृष्णन

चौधरी हरिराम की राजनैतिक पृष्ठभूमि भी अलग ही है. यह किस्सा चौधरी छोटूराम से जुड़ा है. रोहतक के रहने वाले चौधरी छोटूराम ने ब्रिटिश राज के दौरान हरियाणा के किसानों को संगठित किया था और उन्हें रहबर-ए-आजम का नाम दिया गया था.  

1923 में, छोटूराम ने किसानों के लिए जमींदार पार्टी (यूनियनिस्ट) के गठन में अहम भूमिका निभाई थी. इस अवधि में उनके राजनैतिक कैरियर के लिहाज से रोहतक उनका केंद्र था और उनको आसपास के गांवों के किसानों का भरपूर समर्थन हासिल था. उन्हीं किसानों में से एक थे खेडवाली गांव के श्रीरामजी लाल.

राष्ट्रपति भवन में सी. राजगोपालाचारी का स्वागत करते तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राधाकृष्णन

रामजी लाल के सबसे बड़े बेटे चौधरी टीकाराम दीनबंधु (छोटूराम) के युवा मोर्चा के महत्वपूर्ण सदस्य थे. छोटूराम अंग्रेजों से सीधी लड़ाई नहीं लड़ते थे. ऐसे में उन्हें ब्रिटिश विधान परिषद का सदस्य भी बनाया गया था. इससे टीकाराम को भी लाहौर लेजिस्लेटिव काउंसिल में जगह मिल गई. इस दौरान, उनके छोटे भाई देवकराम की हत्या कर दी गई और कुछ साल बाद टीकाराम का भी कत्ल हो गया.  

अब रामजी लाल के दो ही बेटे बचे. रामस्वरूप और हरिराम. रामस्वरूप अब औपचारिक रूप से जमींदार पार्टी में सक्रिय हो गए जबकि हरिराम शिक्षक बन गए. उसके कुछ दिनों बाद उन्होंने वकालत करना शुरू कर दिया.

बाद में, रामस्वरूप कांग्रेस में शामिल हो गए और आजादी के बाद सांपला से चुनाव जीतकर सांसद बन गए. 1966 में, जब हरियाणा एक नया राज्य बन गया, रामस्वरूप के राजनैतिक करियर का खात्मा हो गया.

चौधरी हरिराम ने 1952 में पहली बार लोकसभा चुनावों में अपनी किस्मत आजमाई. तब वह जमींदार पार्टी के सदस्य थे. चौधरी हरिराम संविधान सभा के सदस्य रहे चौधरी रणवीर सिंह के खिलाफ चुनावी मैदान में थे. रणवीर सिंह कांग्रेस के टिकट पर मैदान में थे. इस चुनाव में रणवीर ने हरिराम को डेढ़ लाख वोटों से मात दी थी और 81 हजार वोट पाकर हरिराम दूसरे स्थान पर रहे थे.

1952 में लोकसभा चुनावों के कुछ महीनों के बाद ही राष्ट्रपति चुनाव होने थे. मई 1952 में, डॉ. राजेंद्र प्रसाद कांग्रेस के उम्मीदवार थे. हर किसी को पता था कि राजेंद्र प्रसाद का चुनाव निर्विरोध होगा, लेकिन चौधरी हरिराम इससे सहमत नहीं थे. उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में कोई भी पद किसी को बगैर प्रतियोगिता के यूं ही नहीं देनी चाहिए और अपना परचा राष्ट्रपति पद के लिए दाखिल कर दिया.

इसके कुछ दिनों बाद ही, केटी शाह का नामांकन भी वाम पार्टियों की तरफ से कर दिया गया. बेशक, डॉ. राजेंद्र प्रसाद जीते और केटी शाह दूसरे स्थान पर रहे. हरिराम 1,954 वोटों के साथ चौथे स्थान पर रहे.

अंगरक्षकों से सलामी लेते डॉ. राधाकृष्णन

1957 में भी चौधरी हरिराम ने राष्ट्रपति चुनाव के लिए नामांकन दाखिल किया. इस चुनाव में भी चौधरी हरिराम एक मात्र प्रतिस्पर्धी थे और वह 2672 वोटों के साथ दूसरे स्थान पर रहे. 1962 में भी कांग्रेस की तरफ से सर्वपल्ली डॉ. राधाकृष्णन के सामने विपक्ष ने अपना कोई उम्मीदवार खड़ा नहीं किया. पर चौधरी हरिराम एक बार फिर मैदान में थे. इस बार भी 6341 वोटों के साथ वह दूसरे स्थान पर रहे. बाद में, 1967 के चुनाव में चौधरी हरिराम को शून्य वोट मिले और उसके बाद उन्होंने चुनाव लड़ने से तौबा कर ली.

बहरहाल, 1962 में जब डॉ. राधाकृष्णन चुनाव जीत गए उसके बाद चौधरी हरिराम ने राष्ट्रपति को खत लिखा. उसके बाद राष्ट्रपति ने उनको मुलाकात के लिए आमंत्रित किया.