Exclusive interview - 2: सच्चर कमेटी की रिपोर्ट में पसमांदा की सही तस्वीर नहीं - डॉ. फैयाज अहमद फैजी

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 22-05-2023
डॉ. फैयाज अहमद फैजी
डॉ. फैयाज अहमद फैजी

 

लेखक, स्तंभकार के अलावा देश में चल रहे पसमांदन आंदोलन को आगे बढ़ाने वाली खास शख्सियत हैं डॉक्टर फैयाज अहमद फैजी. उनसे खास बातचीत की है आवाज-द वॉयस (हिंदी) के संपादक मलिक असगर हाशमी ने. पेश है बातचीत के खास अंशः

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सवालः भारत के विभिन्न राज्यों में पसमांदा मुसलमानों की हालत क्या है? पसमांदा की लड़ाई लड़ने वाले अभी कितने संगठन सक्रिय हैं?

जवाबः जो सच्चर कमेटी की रिपोर्ट के पेज नंबर 10 में विभिन्न राज्य हैं. उन्हें कवर करने की कोशिश की गई है. आरक्षण में वंचित लोगों को आगे लाने की बात है. इसमें आप देखेंगे कि ओडिशा में पीए कृष्ण का नाम सुना होगा, जिन्होंने ओबीसी और पसमांदा मुसलमानों के लिए बहुत काम किया.

खास तौर पर आंध्र प्रदेश में जो पसमांदा मुसलमान शेख लिखते थे, उससे कंफ्यूजन हुआ कि ये शेख अपर कास्ट होता है, ये ओबीसी में नहीं रहेंगे. तो इस पर उन्होंने कहा कि नहीं, ये तो बिल्कुल नाइंसाफी है.

इनके हालात ऐसे हैं, तो इन्हें भी ओबीसी कोटे में ले आएं. हैदाराबाद में जो ओरिजनल शेख लोग थे, इसका फायदा बाद में वह भी उठा लिए. चूंकि मैं हैदराबाद में तीन साल रहा हूं. पीए कृष्ण से मेरी बात हुई, तो वह बता रहे थे कि ओडिशा में किसी भी पसमांदा को ओबीसी में नहीं रखा गया है.

वह इस दुनिया से चले गए, डेढ़ दो साल पहले मेरी उनसे फोन पर बातचीत हुई थी. असम में एक कास्ट है, जिसे ओबीसी में रखा गया है. बहुत सारी कास्ट, जो उत्तर प्रदेश में ओबीसी में है, वह गुजरात में ओबीसी में नहीं हैं. भाट एक जाति होती है. वह कही नहीं है, न ओबीसी में है न एसटी में है.

ओबीसी एसटी में पसमांदा आते हैं, एससी में शेड्यूल कास्ट में नहीं आते हैं. उन्हें जनरल क्लास में शेख, सैयदों के साथ फाइट करना पड़ता है. जो भटयारा है, भटयारा को उत्तर प्रदेश में ओबीसी में रखा गया है. ऐसा कोई राज्य नहीं हैं, जहां पसमांदा मुसलमान मुख्यधारा में दिखाई दे. एक-दो लोग जो आईएएस, नेता बन जाते हैं, ये उनकी अपनी कमाई है.

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जब दंगे होते हैं, तो उसमें हिन्दू हमें मारने आता है या हम हिन्दू को मारने जाते हैं. हम का मतलब पसमांदा. लेकिन अशराफ घर में बैठा रणनीति बना रहा होता है. जहां पसमांदा सक्षम है, वहां मारता-पीटता है.

जहां सक्षम नहीं है, वहां हम मारे जाते हैं. सार खेल कंट्रोल अशराफ करता है. बिक्कू ब्लैक मोमेंट में एक नाम आता है. वह कहते हैं कि जो ऑपरेशन है, उसका सबसे अच्छा हथियार उसको ऑपरेट करने का दिमाग होता है.

अशराफ दिमाग में इस तरह का नैरेटिव सेट करते हैं कि हिन्दू की हुकूमत में पड़कर क्या होगा कहां मुसलमानों को रोजगार मिल रहा है? इस तरह की नेगेटिव बातें करके वह हमारे दिमाग को सेटअप करते हैं. ताकि हम गुलाम के गुलाम रहें और अपने बच्चे को ये इंग्लैंड, अमेरिका भेज कर पढ़ाते रहें.

ये अपने बच्चों को अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में पढ़ाते हैं. उन्हें तुरंत नौकरी भी लग जाती है. उर्दू की सारा मलाई यही लोग काट रहे हैं. हमको आकर कहते हैं कि पढ़-लिख कर क्या होगा. उसके बावजूद भी कुछ लोग अपने सामर्थ्य से आगे आए हैं.

अभी हमारा आंदोलन बहुत कमजोर है, हमारी आवाज भी कमजोर है, इसलिए हम खड़ा नहीं हो पाते हैं. हमारी पोजीशन मुस्लिम समाज में गुलाम की है. अशराफ के गुलाम की है. जहां भाईजान हांकते हैं, हम वहां चले जाते हैं. हमारी पहली कोशिश आजादी की लड़ाई है. हम अशराफ से आजादी की बात करते हैं.

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सवालः  पसमांदा की लड़ाई कौन-कौन संगठन किस राज्य में लड़ रहा है?

जवाबः ये अहम सवाल है. तकरीबन दो दर्जन के आसपास पसमांदा संगठन हैं. बावजूद इसके, थोड़ी-बहुत हरकत दिखेगी, वह बिहार और उत्तर प्रदेश में दिखेगी.  महाराष्ट्र के अंदर भी सरगर्मी है.

महाराष्ट्र के अंदर 80 साल के इकबाल पेंटर साहब हैं. हमने उनका इंटरव्यू लिया था पसमांदा के हवाले से. भील एक जनजाति होती हैं, उनमें जो कड़वी भील होती है, वह मुस्लिम होती हैं. जनजातियों के अंदर इकबाल पेंटर साहब का बहुत बड़ा काम है.

इनके अलावा महाराष्ट्र में शब्बीर अंसारी साहब हैं. उन्होंने एक बहुत बड़ा आंदोलन चलाया. इसमें दिलीप कुमार, एक्टिंग का सम्राट जिसे कहते हैं, साथ दिया था. राजस्थान में कुछ लोग काम कर रहे हैं.

असम में ओवैदुद्दीन अहमद साहब हैं, जो बाराक, बंगाली बोलने वालों में हैं. यह  मछुआरा समुदाय है. विशेष रुप से महिवाल कहे जाते हैं. जिनमें से एक साहब चुनाव भी लड़े थे. मुसलमानों ने उनका विरोध किया था.

विरोध करने वाले अशराफ थे. छिटपुट और संगठन की बात करेंगे, तो यूपी में, बिहार में संगठन हैं. आंध्रप्रदेश, महाराष्ट्र में संगठन हैं. इस तरह कई हैं. इस समय मैं समझता हूं कि ऑल इंडिया मुस्लिम पसमांदा महाज एक बड़ा संगठन है. दूसरा ऑल इंडिया ओबीसी शब्बीर अंसारी का भी संगठन बड़ा संगठन है.

इकबाल साहब का भी एक संगठन है, असम में भी एक पाटीकार जो चटाई बुनते हैं, उनका एक संगठन है. इस तरह लोग आपस में मिल-जुल कर काम कर रहे हैं. आपस में कुछ ईगो का टकराव है.

बहुत सारे लोग आंदोलन खड़ा करके पीछे हो गए. बहुत सारे लोगों ने नाम बदल लिया. इस तरह उतार-चढ़ाव है. इसके बावजूद दुनिया की जो सबसे पावरफुल अशराफ क्लास है, उसके सामने दुनिया की सबसे कमजोर कौम किसी न किसी रूप में बैट-बाल लेकर खड़ी है.

हम भी अपने हक अधिकार की लड़ाई लड़ेंगे. हम मायूस नहीं हैं. कहीं न कहीं उसका प्रतिरोध कर रहे हैं. जरूर कमजोर हैं. यह हक व बातिल की जंग है. ये सत्यमेव जयते का देश है. हमें उम्मीद है कि आज न कल सत्य की जीत होगी.

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सवालः पसमांदा मुसलमानों के कल्याण के लिए किया करने की जरूरत है कि तस्वीर बदल जाए?

जवाबः मैं इस सवाल का जवाब हमेशा ये देता हूं कि सबसे पहले अगर किसी समाज में बीमारी है. मैं एक डिबेट में था, सत्य हिन्दी डाटकाम में, तो एक शख्स ने कहा कि ये मुसलमानों का आंतरिक मामला है.

तो मैंने उसे काउंटर किया और कहा कि नहीं ये मुसलमानों का आंतरिक मामला नहीं है. देश में किसी समुदाय, क्षेत्र, सम्प्रदाय में कोई समस्या है, तो मैं समझता हूं कि पूरे देश की समस्या है. उसे पूरा देश प्रभावित होता है.

अगर हम मान लें कि किसी पहाड़ में एक गांव है. जहां दस हजार लोग रहते हैं. लोगों को समस्या है, उसे दूर नहीं किया जा रहा है, तो ये राष्ट्र के शरीर पर एक घाव की तरह मानता हूं. पसमांदा की जो समस्या है, मुसलमानों की समस्या नहीं है. ये देश की समस्या है. सामाजिक न्याय की समस्या है.

जैसे कि हिन्दू समाज में है. मैं ये नहीं कहता कि सारा उद्देश्य, सारा लक्ष्य हमारा हासिल हो चुका है. फिर भी हिन्दू समाज पे सामाजिक न्याय पर प्रगति की है. उससे उल्टा मुसलिम समाज है. मैं चाहता हूं कि इस पर चर्चा हो.

चर्चा चाय खाने से लेकर पार्लियामेंट तक हो. जब हम चर्चा करेंगे, इस बीमारी को बीमारी मानेंगे, तो निश्चित है, इतना अच्छा देश है हमारा. इतना अच्छा संविधान है हमारा. इसके तहत रहकर हम अशराफ की तरह घोड़े पर बैठकर, गर्दन काट के कब्जा करना हमारा मकसद नहीं है.

हमारा मकसद मिल-जुलकर काम करने का रहा है. कोई समस्या होती है, तो उस पर हम बात करते हैं. ये हमारा कल्चर चला आ रहा है. एक अच्छा देश है. एक अच्छा संविधान है. जब चर्चा करेंगे, तो निश्चित है कि स्थिति बदलेगी. दूसरी बात, जब भी कहीं सामाजिक न्याय की बात हो, तो उसमें मुस्लिम समाज को ये कहकर न छोड़ दिया जाए कि इसे मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड डील करेगा.

हम देश के नागरिक हैं. उसके हिसाब से हल होना चाहिए. तीसरी और आखिरी चीज मैं कहूंगा कि मुस्लिम विमर्श इस देश में खत्म होना चाहिए. मुस्लिम विमर्श से 90 प्रतिशत मुसलमानों का नुकसान होता है.

मुस्लिम विर्मश कुछ नहीं है. इस देश में मुस्लिम लीग की जो टू नेशन थ्योरी थी. ये अलग है. वह अलग है. इसी का बदला हुआ रूप है. अब हर चीज को मुसलमान, यह बताए कि मुसलमान कहां से गरीब हैं.

मुसलमान कहां से पिछड़ा है, जैन धर्म में क्या कोई पिछड़ा है? ईसाई धर्म क्या कोई पिछड़ा है? हिन्दू धर्म में पिछड़ा है, जिसमें दलित भी आता है. हां उस धर्म के मानने वाले अमीर भी हो सकते हैं, गरीब भी हो सकते हैं, पिछड़े भी हो सकते हैं.  इसलिए मुस्लिम विमर्श मजहबी विमर्श नहीं है.

इसके हम खिलाफ है. जब भारतीय संविधान एक सेक्युलर परिकल्पना है, तो किसी को हिन्दू-मुसलमान देखने कर क्या आवश्यकता है. हम इसके विरोधी हैं. इन तीन चीजों पर अगर काम कर लिया जाए, तो मैं समझता हूं कि सूरत बदलेगी और एक अच्छा राष्ट्र बनेगा.

पसमांदा पहले भी जीडीपी में योगदान देता रहा है. चूंकि वह काश्तकार होता है. वह साड़ी बनाता है. कपड़ा बुनता है. वह भागलपुर में चादर बनाता है. वह सब्जी बेचता है. इस तरह वह जीडीपी में योगदान दे रहा है.

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सवालः  आप की आबादी 90 प्रतिशत है, तो आप बड़ी लकीर क्यों नहीं खींचते?

जवाबः हम बड़ी लकीर खींचना चाहते हैं, लेकिन हमारे पास वह कलम होना चाहिए, जिससे हम लकीर खींच पाएं. अंग्रेज बहुत कम तादाद में थे. इंडिया में बहुत बड़ी संख्या थी, जो अंग्रेज के खिलाफ थी. लेकिन 90 साल लग गए, उनसे मुल्क आजाद कराने में. अगर 1857 से 1947 तक आए, तो, वक्त लगता है. हमारी संख्या समुद्र के झाग की तरह है. अशराफ फूक मारता है ,वह उड़ जाती है.

एक ओवैसी पूरे देश में चिल्ला रहे हैं और वह मीडिया के दूल्हा बने हुए हैं. सेक्युलर, लिब्रल, हिन्दुओं के दूल्हा बने हुए हैं. उन्हें अपने सरों पर उठाए घूम रहे हैं. आपने फैयाज अहमद फैजी को मौका नहीं दिया है.

आपने 90 प्रतिशत में एक आवाज को मौका दिया है. ओवैसी को जो मौका मिला है, अगर वही मौका हमारे एक भी पसमांदा एक्टिविस्ट को मिल जाए, तो ओवैसी साहब शेरवानी लपेट कर भाग जाएंगे.

जैसे कासिम रिजवी भाग गए थे. आप हमारा मुकाबला तो कराइए, उसके बाद फैसला कीजिए कि मुकाबला करने के लायक हैं या नहीं. हम मैच जीत जाएंगे या नहीं. हम साहब गले मिलकर क्रिकेट खेल रहे हैं और आप साहब एडिलेड की पिच पर कह रहे हैं कि चौके-छक्के मारे.

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सवालः आप अपनी लड़ाई को बढ़ाने के लिए आगे क्या करने जा रहे हैं?

जवाबः हम ज्यादातर लोगों से रिश्ता बनाना चाहते हैं. पसमांदा इस बात को समझे. पसमांदा तबका जरूर है, यूपी, बिहार, राजस्थान में, जो हिन्दू बेल्ट है. लेकिन वह उर्दू पढ़ता-लिखता है. इसके लिए हम छोटी-छोटी मीटिंग कर रहे हैं.सोशल मीडिया पर काम बड़ा होता है.

अक्सर अशराफ वाले कहते हैं कि आप सिर्फ सोशल मीडिया पर क्यों, जमीन पर क्यों नहीं जाते हैं. मारूफ अंसारी साहब जो पसमांदा मुहाज के सचिव हैं, वह कहते हैं कि ये जमीन पर हमें इसलिए बुला रहे हैं कि हमें मारना इनको बहुत आसान होगा. सोशल मीडिया पर हम एक पोस्ट डाल देते हैं, तो पांच सौ लोग देख लेते हैं.

जितने माध्यम हैं लोगों तक पहुंचने के हम इस्तेमाल कर रहे हैं. लेकिन संगठन में जो लोग काम करने वाले हैं, उनकी रोजी-रोटी का अपना मसला है. उनकी अपनी मशगूलियत है. उनके अपनी व्यवस्था में उसमें थोड़ा-थोड़ा काम कर रहे हैं. मैं भी कुछ काम कर रहा हूं.

लेख वगैरह आ रहे हैं. आप जैसे लोग जब जुडते हैं, दीप से दीप जलता है. गौतम बुद्ध ने कहा था कि अपना दीप खुद बनो. हम चाहते हैं कि हर कोई दीप बने और सारे दीप का झुरमुट एक बड़ा सा दिपावली हो जाए, पसमांदा के लिए.

सवालः आपकी सोच को, आपके जज्बात को समझने वाला अभी देश में कोई नेता  है ?

जवाबः  आपने बहुत अच्छा सवाल किया है. जितनी राजनीतिक पार्टियां हैं, वह सब मुस्लिम विमर्श को लेकर चलती हैं. हमने कहा कि मुस्लिम विमर्श से हमारा नुकसान होता है. कभी-कभी कुछ बात हो जाती है.

इससे पहले जब मुलायम सिंह की सरकार बनी थी, आते ही जगह दी थी. बहुत सारे बैकवर्ड मुसलमानों को जगह मिली थी. जब हम बैकवर्ड कहते हैं, तो उसमें दलित, आदिवासी और पिछड़े तीनों को जोड़ते हैं.

उसमें कुछ बैकवर्ड मुसलमान बड़ी संख्या में बने थे. नीतीश कुमार ने लालू प्रसाद के एमवाई फार्मूला को पसमांदा विमर्श को बढ़ावा देकर तोडा है. दो-दो पसमांदा राज्यसभा में भेजे गए. इस बार नीतीश कुमार की कम सीटें होने की वजह से मैं बता दूं कि पसमांदा ने उनका साथ नहीं दिया. इसलिए नीतीश कुमार थोड़े कमजोर पड़ गए हैं.

इस बार उनका जादू पसमांदा वाला चला नहीं. भारतीय जनता पार्टी ने उत्तर प्रदेश में हम जैसे लोगों को नोटिस किया है. खुल कर पसमांदा की बात तो नहीं होती, लेकिन पसमांदा समाज से आने वाले लोगों को जगह मिल रही है.

अल्पसंख्यक आयोग में जगह दी गई है. मदरसा शिक्षा परिषद है. पसमांदा को नियुक्त किया है. हुनर हाट कर रहे हैं. हुनरमंद तो पसमांदा हैं. वह पसमांदा को जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं. थोड़ी सी उम्मीद हमें भारतीय जनता पार्टी की तरफ से लग रही है.

उत्तर प्रदेश में माना जाता है कि उन्नीस प्रतिशत मुसलमान हैं, तो उनमें सोलह प्रतिशत पसमांदा हैं. उनमें से तीन-चार प्रतिशत भी वोट लेकर भाजपा अपनी तरफ चली गई, तो मैं समझता हूं कि ये प्रयोग भाजपा का सफल होगा. सारी राजनीतिक पार्टियां हमारी हैं. फिर भी वह अपने देश के मूल भारतीय मुसलमानों की बात न करके विदेश से आए हुए मुसलमानों से बात करती हैं.

(ट्रांस्क्रिप्टः मोहम्मद अकरम)