विपक्षी दल बोले, लद्दाख मसले से संवेदनशीलता से निपटे सरकार

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 25-09-2025
Opposition parties said – the government must handle the Ladakh issue with sensitivity.
Opposition parties said – the government must handle the Ladakh issue with sensitivity.

 

नई दिल्ली

लद्दाख में राज्य का दर्जा और अन्य मांगों को लेकर भड़की हिंसा के बीच विपक्षी दलों ने बुधवार को केंद्र सरकार से अपील की कि इस मुद्दे से संवेदनशीलता और गंभीरता के साथ निपटा जाए। विपक्ष का कहना है कि हिंसा के पीछे के कारणों और इसमें शामिल तत्वों की जमीनी स्तर पर जांच होनी चाहिए।

हालांकि, वामपंथी दलों ने सीधे तौर पर मोदी सरकार को ही हिंसा का जिम्मेदार ठहराया और उस पर संवैधानिक वादों की अनदेखी का आरोप लगाया।

कांग्रेस सांसद और वरिष्ठ प्रवक्ता मनीष तिवारी ने कहा कि लद्दाख एक सीमावर्ती और रणनीतिक दृष्टि से बेहद अहम क्षेत्र है। उन्होंने कहा, “चीन के साथ गतिरोध पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है। ऐसे में सरकार को और भी अधिक संवेदनशीलता के साथ हालात संभालने चाहिए। यह जांच का विषय है कि आखिर शांतिपूर्ण प्रदर्शन अचानक हिंसक क्यों हो गया।”

जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा कि लेह में हालात यह दिखाते हैं कि लोगों में राज्य का दर्जा न मिलने को लेकर गहरा असंतोष है। उन्होंने याद दिलाया कि जम्मू-कश्मीर और लद्दाख—दोनों को लेकर वादे अधूरे छोड़े गए।

पूर्व मुख्यमंत्री और पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने केंद्र से अपील की कि वह केवल रोज़मर्रा के संकट प्रबंधन तक सीमित न रहे, बल्कि समस्याओं की जड़ तक पहुंचे और स्थायी समाधान निकाले।

शिवसेना (उद्धव) सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने कहा कि लद्दाख जैसा शांतिप्रिय इलाका हिंसा की चपेट में आएगा, यह उन्होंने कभी नहीं सोचा था। उन्होंने सरकार से वहां के लोगों से तुरंत संवाद शुरू करने की मांग की।

वहीं भाजपा ने पलटवार करते हुए आरोप लगाया कि लद्दाख की हिंसा कांग्रेस की “नापाक साजिश” का हिस्सा है, जो देश में अस्थिरता फैलाकर बांग्लादेश, नेपाल और फिलीपींस जैसे हालात पैदा करना चाहती है।

**भाकपा (माले)

नयी दिल्ली, 24 सितंबर (भाषा)। लद्दाख में राज्य का दर्जा और अन्य मांगों को लेकर भड़की हिंसा के बीच विपक्षी दलों ने केंद्र सरकार से इस मामले को संवेदनशीलता से संभालने की अपील की है। दलों का कहना है कि हिंसा के कारणों और इसके पीछे सक्रिय तत्वों की पहचान के लिए जमीनी स्तर पर गहन जांच जरूरी है।

वाम दलों ने सीधे मोदी सरकार को जिम्मेदार ठहराते हुए आरोप लगाया कि संवेदनशील मुद्दे की अनदेखी ने हालात को बिगाड़ा है।

कांग्रेस सांसद व वरिष्ठ प्रवक्ता मनीष तिवारी ने कहा, "लद्दाख एक सीमावर्ती केंद्र शासित प्रदेश है। चीन के साथ सैनिकों की तैनाती में ढील के बावजूद गतिरोध पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है। ऐसे में किसी भी आंदोलन को संवेदनशीलता से निपटाना जरूरी है। यह भी जांच होनी चाहिए कि एक शांतिपूर्ण प्रदर्शन अचानक हिंसक कैसे हो गया।"

जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा कि लेह की घटनाएं इस बात की गवाही हैं कि राज्य का दर्जा न मिलने से जनता कितनी असंतुष्ट है। उन्होंने याद दिलाया कि लद्दाख को भी राज्य का दर्जा देने का कोई ठोस वादा नहीं किया गया।

पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने केंद्र से अपील की कि वह "दिन-प्रतिदिन के संकट प्रबंधन से आगे बढ़कर" समस्याओं के मूल कारणों को सुलझाए।

शिवसेना (उबाठा) सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने हैरानी जताई कि लद्दाख जैसा शांतिप्रिय क्षेत्र हिंसा की चपेट में आ सकता है। उन्होंने सरकार से वहां की जनता से संवाद की मांग की।

वहीं भाजपा ने पलटवार करते हुए कहा कि यह हिंसा विपक्ष की "नापाक साजिश" का हिस्सा है और कांग्रेस लद्दाख में बांग्लादेश, नेपाल और फिलीपीन जैसे हालात पैदा करना चाहती है।

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माले-लिबरेशन) ने केंद्र सरकार पर संविधान की अवहेलना का आरोप लगाया और कहा कि छठी अनुसूची और राज्य के दर्जे की मांग को अनसुना कर जनता का भरोसा तोड़ा गया है। माकपा महासचिव एम. ए. बेबी ने भी भाजपा पर लेह और त्रिपुरा से विश्वासघात करने का आरोप लगाया।

अधिकारियों के मुताबिक, बुधवार को प्रदर्शन हिंसक हो गया। सड़कों पर आगजनी और झड़पें हुईं। इसमें चार लोगों की मौत हो गई और कम से कम 80 लोग घायल हुए, जिनमें 40 पुलिसकर्मी शामिल हैं।