‘Operation Sindoor’: The story of 300 women who rebuilt the airstrip in 1971 brings back memories
आवास द वॉयस/नई दिल्ली
करीब आधी सदी पहले भारत एवं पाकिस्तान के बीच युद्ध के दौरान गुजरात में कच्छ के एक गांव की 300 से अधिक महिलाओं ने खतरों की परवाह किए बिना और अदम्य साहस का परिचय देते हुए भुज स्थित भारतीय वायुसेना स्टेशन की उस हवाई पट्टी का मात्र 72 घंटों में पुनर्निर्माण कर दिया था जो बमबारी के कारण तबाह हो गया था.
हवाई पट्टी के पुनर्निर्माण में शामिल रहीं जो महिलाएं अभी जीवित हैं, उनका कहना है कि यदि आवश्यकता पड़ी तो वे देश के लिए इसी तरह का कर्तव्य निभाने के लिए फिर से तत्पर हैं. पाकिस्तान और इसके कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) में आतंकवादी ढांचों के खिलाफ भारतीय सेना द्वारा हाल में चलाए गए ‘ऑपरेशन सिंदूर’ ने 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान हुई घटनाओं को ताजा कर दिया. उस समय पाकिस्तानी विमानों ने भुज हवाई पट्टी पर बमबारी की थी, जिससे यह इस्तेमाल करने लायक नहीं रह गई थी। इसे फिर से चालू करने के लिए इसकी तत्काल मरम्मत और पुनर्निर्माण की आवश्यकता थी। ऐसे में कच्छ के माधापर गांव की महिलाओं ने अपनी जान जोखिम में डालकर इस काम को पूरा करने का जिम्मा उठाया.
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 26 मई को भुज शहर में एक जनसभा के दौरान इनमें से 13 महिलाओं से मुलाकात की और उनका आशीर्वाद लिया। इन महिलाओं को ‘वीरांगना’ कहा जाता है। इन महिलाओं की आयु 70 वर्ष से अधिक है. माधापर गांव भुज से करीब पांच किलोमीटर दूर है। भुज कच्छ जिले का प्रशासनिक मुख्यालय है और इसकी सीमा पाकिस्तान से लगती है. प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात के दौरान इन महिलाओं ने उन्हें ‘सिंदूर’ का एक पौधा भेंट किया जिसे अब नयी दिल्ली में प्रधानमंत्री आवास पर लगाया जाएगा.
प्रधानमंत्री ने भुज में अपने संबोधन में कहा था, ‘‘इन महिलाओं ने मात्र 72 घंटे में रनवे का पुनर्निर्माण कर दिया जिससे हमें हवाई हमले फिर से शुरू करने में मदद मिली। मैं भाग्यशाली हूं कि उन्होंने आज मुझे अपना आशीर्वाद दिया.’’ इन साहसी महिलाओं में से एक शम्बाई भंडेरी ने कहा कि ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के मद्देनजर सीमावर्ती कच्छ जिले में किए गए ‘ब्लैकआउट’ ने 1971 के युद्ध की यादें ताजा कर दीं.
उन्होंने पत्रकारों से कहा कि भले ही उनकी उम्र बढ़ती जा रही है लेकिन अगर जरूरत पड़ी तो वह और अन्य महिलाएं इसी तरह के काम के लिए फिर से बुलाए जाने पर देश की सेवा करने से आज भी पीछे नहीं हटेंगी. भंडेरी ने कहा, ‘‘हमें जो काम सौंपा गया था, वह आसान नहीं था क्योंकि हमें उन पाकिस्तानी विमानों के डर के साए में काम करना पड़ता था, जो हमारे ऊपर मंडराते रहते थे। हम भगवान से प्रार्थना करते हैं कि ऐसा समय कभी वापस न आए.’’ उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन हमारे भीतर अब भी जज्बा है और अगर सेना हमें फिर से बुलाती है तो हम निश्चित रूप से उसके लिए काम करेंगी. चूंकि मेरी अधिक उम्र के कारण मेरे लिए काम करना मुश्किल है, इसलिए मैं काम पूरा करने के लिए अपने बच्चों और पोते-पोतियों को साथ ले जाऊंगी.’’
कानबाई विरानी (80) ने भी इसी तरह के विचार व्यक्त करते हुए कहा कि अगर युद्ध छिड़ता है और देश को फिर से माधापर की महिलाओं की मदद की जरूरत पड़ती है, तो वे कोई भी जिम्मेदारी उठाने के लिए तैयार हैं. उन्होंने जिक्र किया कि बमबारी से तबाह हुए रनवे को ठीक करते समय उन्हें पाकिस्तानी हमलावरों से खुद को कैसे बचाना पड़ा था. विरानी ने कहा, ‘‘हमें निर्देश दिया गया था कि सायरन सुनते ही कहीं शरण ले लें और दूसरा सायरन बजने पर काम फिर से शुरू कर दें। पहले दिन हमें डर लगा लेकिन अगले दिन कोई डर नहीं था। हमने सुबह सात बजे से शाम सात बजे तक काम किया और 72 घंटों में काम पूरा कर लिया। अगर जरूरत पड़ी तो अपने देश की रक्षा के लिए हम आज भी इसी प्रकार काम करने को तत्पर हैं.’’
भुज में प्रधानमंत्री मोदी के साथ हाल में हुई बातचीत के बारे में विरानी ने कहा कि उन्होंने और माधापार की 12 अन्य महिलाओं ने प्रधानमंत्री को आशीर्वाद दिया और उन्हें हर तरह से सहयोग का आश्वासन दिया. उन्होंने कहा, ‘‘प्रधानमंत्री ने मंच पर हमारा अभिवादन किया और पूछा ‘केम छो बधा’ (आप सब कैसी हैं?)। मैंने उन्हें बताया कि मेरी उम्र के कारण मेरा स्वास्थ्य ठीक नहीं है. उन्होंने मुझसे अपना ध्यान रखने को कहा.’’