बीते सप्ताह सरसों में गिरावट, सोयाबीन तेल और पाम-पामोलीन में सुधार

Story by  PTI | Published by  [email protected] | Date 28-12-2025
Mustard oil declined last week, soybean oil and palm-palmolein improved
Mustard oil declined last week, soybean oil and palm-palmolein improved

 

आवाज द वॉयस/नई दिल्ली

 
 बीते सप्ताह देश के तेल-तिलहन बाजारों में ऊंचे भाव पर लिवाली प्रभावित रहने से सरसों तेल-तिलहन के दाम में गिरावट देखी गई जबकि साधारण मांग के कारण सोयाबीन तेल-तिलहन, सटोरियों द्वारा ऊंचा दाम बोले जाने से कच्चा पामतेल (सीपीओ) एवं पामोलीन तेल में सुधार आया।
 
नमकीन बनाने वाली कंपनियों की फुल्की फुल्की मांग के कारण बिनौला तेल के दाम में भी मामूली सुधार रहा। सुस्त कामकाज के बीच मूंगफली तेल-तिलहन के दाम अपरिवर्तित रहे।
 
बाजार सूत्रों ने कहा कि सरकार की ओर से सरसों की बिकवाली की जा रही है जो एक उचित कदम है। क्योंकि सरसों का स्टॉक किसानों, सरकारी संस्थाओं और स्टॉकिस्टों के पास बचा है। आगामी फसल भी आने की तैयारी में है और इसकी खरीद करने के लिए पुराने स्टॉक को बाजार में निकालना जरूरी है। सरसों का हाजिर दाम न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से 7-8 प्रतिशत अधिक है। सरसों की नयी फसल कुछ समय में बाजार में आना शुरु हो जाएगी है। मात्रा भले ही कम हो पर इसका असर बाजार पर आता है। इन परिस्थितियों के बीच सरसों तेल-तिलहन के दाम समीक्षाधीन सप्ताह में गिरावट दर्शाते बंद हुए।
 
सूत्रों ने कहा कि दूसरी ओर, सर्दियों के मौसम में स्थानीय स्तर पर सोयाबीन डी-आयल्ड केक (डीओसी) की मांग बढ़ जाती है। इसके अलावा सूरजमुखी (145 रुपये किलो) के मुकाबले सोयाबीन तेल (लगभग 124 रुपये किलो) सस्ता होने से सोयाबीन तेल की मांग भी है। ऐसे में बीते सप्ताह सोयाबीन तेल-तिलहन के दाम में अपने विगत सप्ताहांत के मुकाबले सुधार आया।
 
उन्होंने कहा कि पिछले सप्ताहांत के मुकाबले स्थानीय मांग होने से सोयाबीन तेल-तिलहन में सुधार है मगर हकीकत में एमएसपी से मुकाबले सोयाबीन का दाम कमजोर बना हुआ है। अपने एमएसपी वाले दाम पर सोयाबीन का बाजार ही नहीं है।
 
सूत्रों ने कहा कि यही हाल मूंगफली का है क्योंकि इसके एमएसपी के हिसाब से बाजार नहीं है और एमएसपी वाले दाम पर मूंगफली कभी खपेगा नहीं। इस परिस्थिति के बीच मूंगफली तेल-तिलहन के दाम पूर्व सप्ताहांत के स्तर पर ही स्थिर बने रहे।
 
उन्होंने कहा कि आयातक एक ओर बैंकों में अपना ऋण साखपत्र (लेटर आफ क्रेडिट या एलसी) घुमाने के लिए लागत से कम दाम पर सोयाबीन डीगम तेल काफी समय से बेचना जारी रखे हैं वहीं दूसरी ओर वे अपना आयकर भी दाखिल कर फायदा दिखाते हैं। इस घाटे का सीधा असर यह होगा कि आगे जाकर आयात और घटेगा और इस गिरावट के असर से बाकी तेल-तिलहन भी दवाब में बने रहेंगे।या गया।