ज्ञानवापी मामले में राष्ट्रपति और अदालतों के रवैये से मायूस मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड

Story by  मोहम्मद अकरम | Published by  [email protected] | Date 02-02-2024
Muslim Personal Law Board is disappointed with the attitude of President and courts in Gyanvapi case
Muslim Personal Law Board is disappointed with the attitude of President and courts in Gyanvapi case

 

मोहम्मद अकरम / नई दिल्ली

मुस्लिम पर्सनल लाॅ बोर्ड ज्ञानवापी मस्जिद मामले में राष्ट्रपति से समय नहीं मिलने से मायूस है. बोर्ड के पदाधिकारियों का कहना है कि इस मामले में अपना पक्ष रखने के लिए उन्होंने राष्ट्रपति मुर्मू से समय मांगा था, पर उन्हें समय नहीं दिया गया. ज्ञानवापी मस्जिद मामले में अदालों के रवैये से भी मुस्लिम पर्सनल लाॅ बोर्ड सदमे में है.

ज्ञात हो कि उत्तर प्रदेश के वाराणसी में मौजूद ज्ञानवापी मस्जिद के तहखाने में जिला अदालत की तरफ से हिंदू पक्ष को दोबारा पूजा करने की इजाजत देने के खिलाफ दिल्ली में जमीयत उलेमा ए हिंद के दफ्तर में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की मीटिंग हुई.

इसमें मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के के अध्यक्ष मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी ने कहा, रात मंे ज्ञानवापी मस्जिद के तहखाने लोहे की ग्रिल काट उसमें मूर्तियां रखकर पूजा शुरू करना इस बात घोतक है कि प्रशासन मुद्दई के साथ मिलकर मस्जिद कमेटी को ऑर्डर के खिलाफ अपील करने के अधिकार को प्रभावित करना चाहता है. हालांकि अदालत ने प्रशासन को इस काम के लिए 7 दिन का समय दिया था.

उन्होंने कहा, हमें वाराणसी जिला न्यायाधीश के फैसला पर बहुत हैरानी और दुख है. हमारे अनुसार, जिला अदालत का फैसला गलत और निराधार तर्कों के आधार पर दिया गया है.उन्होंने कहा, ज्ञानवापी मस्जिद के तहखाने में 1993 तक सोमनाथ व्यास का परिवार पूजा करता रहा है.

उस समय की राज्य सरकार के आदेश पर उसे बंद कर दिया गया था. 17जनवरी को इसी कोर्ट ने तहखाने को जिला प्रशासन के नियंत्रण में दे दिया था.मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी ने कहा, इस तहखाने में कभी भी पूजा नहीं हुई. एक निराधार दावे को बुनियाद बनाकर जिला जज ने अपनी सर्विस के आखिरी दिन बहुत ही आपत्तिजनक और निराधार फैसला दिया है.

इसी तरह  आरक्योलोजीकल सर्वे की रिपोर्ट का भी हिंदू पक्ष ने प्रेस में एकतरफा तौर पर रहस्योदघाटन करके समाज में बिगाड़ पैदा किया है. हालांकि अभी अदालत में न तो इस पर कोई बहस हुई है और न ही उस की पुष्टि. अभी इस रिपोर्ट की हैसियत मात्र एक दावे की है.

वहीं, जमीयत उलेमा ए हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि अदालत ने हमारी कोई भी बात नहीं सुनी और एक तरफा फैसला देते हुए हिंदू पक्ष में फैसला दे दिया . जिला अदालत को मुस्लिम पक्ष को भी अपील का मौका देना चाहिए था, जो कि उस का कानूनी अधिकार है.

उन्होंने कहा कि हमें सुप्रीम कोर्ट से इंसाफ की उम्मीद थी लेकिन बाबरी मस्जिद फैसला जब आया तो हमें मायूसी हुई. हाईकोर्ट ने भी हमारी नहीं सुनी. हमें सुप्रीम कोर्ट पर सिर्फ यकीन है.

समस्या केवल ज्ञानवापी मस्जिद तक सीमित नहीं. जिस तरह मथुरा की शाही ईदगाह, दिल्ली की सुनहरी और अन्य मस्जिदों और देश भर में फैली हुई अनगिनत मस्जिद और वक्फ की जायदादों पर लगातार निराधार दावे किए जा रहे हैं, पर चिंता पैदा करते हैं. सुप्रीम कोर्ट इबादतगाहों से जुड़े 1991 के कानून पर चुप्पी साधे हुई है. उसने देश के मुसलमानों को गहरी चिंता में डाल दिया है.

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मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ट के प्रवक्ता कासिस रसूल ने कहा, किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था में अदालतें समाज के पीड़ित और प्रभावितों के लिए आखिरी सहारा होती हैं. अगर वो भी पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाने लगें तो फिर इंसाफ की गुहार किस से लगाई जाएगी.

लगता है कि सुप्रीम कोर्ट के सीनियर वकील दुष्यंत दवे की अदालतों के बारे यह राय सही है कि देश की अदालतें बहुसंख्यक वर्ग की मुहताज बनती जा रही हैं. वे अदालतों के एक के बाद एक कई फैसले देश के अल्पसंख्यकों और पीड़ित वर्गों के इसी एहसास को बल दे रहे हैं जिसकी अभिव्यक्ति वकील महोदय ने उपर्युक्त शब्दों में की है.

यह मुद्दा केवल अदालतों की गरिमा को बनाए रखने का ही नहीं है. अल्पसंख्यक वर्गों को वंचित होने और पीड़ित होने के एहसास से बचाने का भी है.उन्होंने आगे कहा कि हम यह समझते हैं कि इस समय देश की गरिमा, उसकी न्याय व्यवस्था और प्रशासनिक मामलों की निष्पक्षता को गंभीर खतरों का सामना है, जिसका संज्ञान लेना सभी संवैधानिक पदाधिकारियों का महत्वपूर्ण दायित्व है.

भारतीय मुसलमानों के इस एहसास को राष्ट्रपति तक, जो कि देश का लोकतांत्रिक हेड होता है, पहुंचने के लिए उनके प्रतिनिधि के रूप में हमने समय मांगा है, ताकि उस के उपाय के लिए वे अपने स्तर से कोशिश कर सकें .इसी तरह भारतीय मुसलमानों के इस एहसास को हम मुनासिब तरीके से चीफ जस्टिस आफ इंडिया तक भी पहुंचने की कोशिश करेंगे.

मौके पर मर्कजी जमीयत अहले-हदीस के अध्यक्ष मौलाना असगर मदनी, मौलाना सैयद असद महमूद मदनी अध्यक्ष जमीयत उलेमा हिंद, मलिक मोतसिम खान उपाध्यक्ष जमात-ए-इस्लामी हिंद, कमाल फारूकी सदस्य ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड मौजूद थे.