गरीब-बेसुध लोगों के मसीहा बने मोहम्मद रफी, खाना मुहैया कराने के साथ आसरा भी देते हैं

Story by  रावी | Published by  onikamaheshwari | Date 18-04-2023
गरीब-बेसुध लोगों के मसीहा बने मोहम्मद रफी, खाना मुहैया कराने के साथ आसरा भी देते हैं
गरीब-बेसुध लोगों के मसीहा बने मोहम्मद रफी, खाना मुहैया कराने के साथ आसरा भी देते हैं

 

रावी द्विवेदी

आम तौर पर हम सभी मौके-बेमौके घर पर छोटे-मोटे आयोजन या दोस्तों के साथ पार्टी करते हैं, तो बाहर से ढेर-सारा पिज्जा-बर्गर या खाने-पीने की अन्य सामग्री मंगा लेते हैं. और, फिर जब उन्हें पूरा उपयोग नहीं कर पाते तो कचरे के डिब्बे में फेंक देते हैं. अब जरा सोचिए कि अगर इस तरह फेंकी गई कोई खाद्य सामग्री आप किसी को कचरे से निकालकर खाते देखें तो आपकी क्या प्रतिक्रिया होगी. 
 
जाहिर है, यह देखकर आप दुखी होंगे, उसकी हालत पर तरस खाएंगे और फिर आगे अपने रास्ते पर बढ़ जाएंगे. हो सकता है कि आपको उसके साथ बहुत ज्यादा सहानुभूति हो तो अपने घर से लाकर या बाजार से खरीदकर उसे खाने-पीने का कुछ सामान दे देंगे. लेकिन तमिलनाडु के रहने वाले मोहम्मद रफी ने एक बार जब एक मानसिक रूप से विक्षिप्त व्यक्ति को कचरे के डिब्बे से निकालकर कुछ खाते देखा तो वह सिर्फ ठिठके नहीं, बल्कि उसे अपने साथ घर ले आए. इस एक घटना ने मोहम्मद रफी के जीवन को पूरी तरह बदलकर रख दिया और उन्होंने ऐसे गरीब-बेसुध लोगों की सेवा करने को ही अपने जीवन का ध्येय बना लिया.
 
 
वह पिछले करीब ढाई दशकों से मानसिक रूप से विक्षिप्त और गरीब लोगों का सहारा बने हुए हैं. वह सिर्फ उनके रहने-खाने का ही इंतजाम नहीं करते हैं, बल्कि उनका मानसिक संतुलन सुधारने पर पूरा ध्यान देते हैं और ठीक होने पर उनके परिजनों से मिलाने के भी हरसंभव प्रयास करते हैं. मूल रूप से केरल के रहने वाले 60 वर्षीय मोहम्मद रफी का जन्म कन्नूर में हुआ था, छठी कक्षा तक पढ़ाई करने के बाद वह अपना कुछ धंधा जमाने के लिए तमिलनाडु चले गए. यहीं पर 1999 में उन्होंने गैरसरकारी संगठन अनबगम के जरिये मानसिक रूप से विक्षिप्त लोगों की सेवा करने की शुरुआत की थी.
 
‘जरूरतमंदों को जरूरत से ज्यादा खाना देना भी एक बर्बादी ही है’
मोहम्मद रफी ने आवाज द वॉयस के साथ बातचीत में देश-दुनिया में खाने की बर्बादी को एक बेहद गंभीर समस्या बताया. उनका कहना सरकारी और गैर-सरकारी स्तर पर तो प्रयास किए जाते ही हैं, तमाम लोगों निजी तौर पर भी खाने की बर्बादी रोकने के अभियान चलाते हैं. लेकिन जब तक हम सभी मिलकर अपनी थाली के भोजन की बर्बादी रोकने के प्रयास नहीं करेंगे, तब तक इस समस्या पर पूरी तरह काबू नहीं पाया जा सकता. उन्होंने अपने संगठन के जरिये तमाम लोगों के खाने-पीने का इंतजाम किए जाने के बारे में जानकारी दी.
 
 
साथ ही एक अन्य बात पर भी ध्यान आकृष्ट किया कि यद्यपि तमाम संगठन या लोग जरूरतमंदों को भोजन तो मुहैया कराते हैं, लेकिन कई बार समस्या यह भी होती है कि भोजन उन्हीं लोगों तक पहुंच पाता है, जिन्हें कहीं और से भी मदद मिल रही होती है.  उनका मानना है कि कुछ जरूरतमंद लोगों को सहायता के नाम पर उनकी जरूरत से ज्यादा भोजन मुहैया कराना भी एक तरह से खाने की बर्बादी ही है. उनकी राय में भोजन उन्हीं लोगों को उपलब्ध कराया जाना चाहिए जिन्हें वास्तव में इसकी जरूरत है.
 
क्योंकि हम अगर किसी को जरूरत से ज्यादा खाना देंगे तो अंतत: वह भी उसे कचरे के डिब्बे में ही फेंकेगा. मोहम्मद रफी कहते हैं, ‘सबसे ज्यादा जरूरी यह है कि हर कोई अपने-अपने स्तर पर खाने की बर्बादी रोकने के लिए आगे आए. साथ ही यह भी सुनिश्चित किया जाए कि बचाया गया खाना उन्हीं लोगों को मुहैया कराया जाए जिन्हें वाकई उसकी जरूरत है.’ 
 
एक घटना ने जिंदगी की दिशा बदलकर रख दी
वर्ष 1999 के शुरुआत की बात है, तब तक मोहम्मद रफी तमिलनाडु में अपना काम-धंधा शुरू कर चुके थे. उन्हें अक्सर अपने आसपास के क्षेत्र में कुछ मानसिक विक्षिप्त घूमते नजर आते. उस समय तक वहां ऐसे लोगों के लिए कोई आश्रयस्थल भी नहीं था. एक दिन उन्होंने ऐसे ही एक बेसहारा व्यक्ति, जिसकी मानसिक स्थिति कुछ ठीक नहीं थी, को कचरे के डिब्बे से खाना निकालकर खाते देखा तो उनसे रहा नहीं गया. वह उस व्यक्ति को अपने साथ घर ले आए.
 
उसे खुद नहलाया-धुलाया और खाना खाने को दिया. थोड़े समय तक देखभाल की तो उसकी मानसिक स्थिति भी सुधरने लगी. मोहम्मद रफी बताते हैं कि उस दिन के बाद ही उन्होंने ऐसे लोगों के लिए सम्मान के साथ जीना सुनिश्चित करने के बारे में गंभीरता से सोचना शुरू कर दिया. इसमें उन्हें परिवार का भी पूरा सहयोग मिला. 
 
हालांकि, उस समय उनके पास रहने की जो जगह थी वो पत्नी और तीन बच्चों के लिए ही पर्याप्त नहीं थी. ऐसे में सड़क में यहां-वहां बेसुध भटकते लोगों को लाकर रखना और उनकी देखभाल करना आसान काम नहीं था. मोहम्मद रफी बताते हैं कि विक्षिप्त लोगों को रखने के लिए किराये की कोई जगह नहीं मिल रही थी. इसलिए उन्होंने अपने परिवार को कुछ समय के लिए अपने पैतृक गांव भेज दिया और अपने घर को ही शेल्टर होम में तब्दील कर दिया. यहीं से अनबगम की नींव पड़ी.
 
 
इसके बाद, उन्होंने TERDOD नाम से एक सार्वजनिक धर्मार्थ ट्रस्ट का रजिस्ट्रेशन कराया और खुद उसके फाउंडर मैनेजिंग ट्रस्टी बने. वर्ष 1999 में ही अनबगम की गतिविधियों को इसी के तहत लाया गया. अनबगम एक गैर-सरकारी, गैर-लाभकारी और धर्मनिरपेक्ष संगठन है. मोहम्मद रफी कहते हैं, ‘हमारा संगठन धर्म, जाति, पंथ, नस्ल के आधार पर कोई भेद नहीं करता. हर परित्यक्त, मानसिक रूप से अस्वस्थ, और बेसुध सड़कों में भटकने वालों को यहां लाकर आश्रय दिया जाता है.
 
हम उन्हें सम्मानजनक जीवन देने की हरसंभव कोशिश करते हैं. उनके खाने और रहने का इंतजाम करते हैं. साथ ही चिकित्सकीय सहायता भी मुहैया कराते हैं. मानसिक विक्षिप्त लोगों को संभालने और उन्हें दवाएं आदि देने में पूरी सतर्कता बरतने के उद्देश्य के साथ उन्होंने खुद भी इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ, चेन्नई में ट्रेनिंग ली थी.
 
 
लोगों को उनके परिवार से मिलाने पर होती है खुशी
रफी बताते हैं कि समय बीतने के साथ चेन्नई शहर पुलिस, चेन्नई निगम, दक्षिणी रेलवे, तमिलनाडु सरकार के समाज कल्याण विभाग आदि ने भी मानसिक रूप से अस्वस्थ लोगों को अनबगम भेजना शुरू कर दिया. लोगों की संख्या बढ़ने के साथ जगह कम पड़ने लगी तो 2002 में उन्होंने चेन्नई के उपनगर रेडहिल्स के पास थिरुनिलाई में जमीन खरीदकर अनबगम पुनर्वास केंद्र की स्थापना की. इसमें उन्हें अपने उदार मित्रों और परोपकारी लोगों की काफी मदद मिली.
 
 
फिर वह अपना कारोबार छोड़कर पूरी तरह समाज सेवा में ही लग गए. अब उनकी बेटी सुश्री राफिया भी बतौर सामाजिक कार्यकर्ता उनकी मदद करती है. अपने काम की वजह से मोहम्मद रफी आसपास के क्षेत्र में इतने ख्यात हो चुके हैं कि अगर किसी को भी कहीं कोई मानसिक विक्षिप्त घूमता दिखता है, वे उन्हें इसकी जानकारी दे देते हैं. रफी बताते हैं कि उनके आश्रयस्थल में कश्मीर से कन्याकुमारी और गुजरात से अरुणाचल, सब जगह के लोग मिल जाएंगे.
 
बहरहाल, यह पूछे जाने पर कि उन्हें सबसे ज्यादा खुशी किस बात से मिलती है, रफी कहते हैं कि जब वह अपने सेंटर में आए किसी व्यक्ति को इलाज के बाद स्वस्थ होने पर उसके परिवार से मिला देते हैं तो बेहद संतुष्टि मिलती है. एक-दूसरे को देखकर उनके चेहरे पर जो खुशी नजर आती है, उससे ज्यादा संतुष्टि देने वाला कुछ नहीं है. अनबगम ने अब तक 4000 से ज्यादा लोगों को रेस्क्यू किया है और उनमें से 3500 के करीब को उनके परिवारों से मिलाया जा चुका है. मोहम्मद रफी अपनी सेवाओं के लिए तमिलनाडु सरकार की तरफ से सर्वश्रेष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता समेत कई पुरस्कार भी हासिल कर चुके हैं.