रांची
झारखंड के आदिवासी वस्त्रों को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंच पर पहचान दिलाने का काम कर रहा है ब्रांड ‘जोहारग्राम’। इसके संस्थापक और डिजाइनर आशीष सत्यव्रत साहू ने यह पहल लगभग पांच साल पहले एक साधारण विचार के साथ शुरू की थी: खादी और स्वदेशी को अपने काम का केंद्र बनाना और झारखंड की पारंपरिक बुनाई कला को नई ऊँचाइयों पर ले जाना।
साहू कहते हैं कि उन्हें महात्मा गांधी का यह विश्वास प्रेरित करता है कि “खादी आत्मनिर्भरता और सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक है।” उनका उद्देश्य झारखंडी आदिवासी परिधानों को फैशन की मुख्यधारा में लाना और उनके मूल्य को बढ़ाना है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में अपने रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ में साहू और उनके ब्रांड ‘जोहारग्राम’ का जिक्र किया। मोदी ने कहा कि इस ब्रांड के माध्यम से झारखंड की आदिवासी बुनाई विरासत को वैश्विक मंच पर लाया गया है, जिससे विदेशों में लोग राज्य की सांस्कृतिक समृद्धि के बारे में जान सके। साहू के अनुसार, यह उनके लिए सबसे बड़ी उपलब्धि है, जिसने उनकी पहल को नई पहचान दी और लोगों के बीच चर्चा का विषय बना दिया।
‘जोहारग्राम’ की शुरुआत 15 नवंबर 2020 को रांची से की गई। ब्रांड का मुख्य उद्देश्य झारखंड की सांस्कृतिक विरासत को उजागर करना और आदिवासी कपड़ों को फैशन के नए रूप में प्रस्तुत करना है। झारखंड के अलावा ब्रांड अब ओडिशा, छत्तीसगढ़ और असम के आदिवासी समूहों के साथ भी काम कर रहा है।
साहू बताते हैं कि वे बुनकरों से सीधे कपड़े खरीदते हैं, उनकी पारंपरिक शैली को बनाए रखते हुए उन्हें आधुनिक फैशन के अनुरूप नया रूप देते हैं। इस प्रयास से न केवल बुनकरों का मूल्य बढ़ा है, बल्कि उनके काम को व्यापक बाजार भी मिला है। आज ‘जोहारग्राम’ के ऑर्डर पूरे भारत के साथ-साथ अमेरिका, यूरोप, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और पश्चिम एशिया से भी आ रहे हैं।
राज्य और केंद्र सरकार का सहयोग भी इस पहल को मजबूती दे रहा है। भारतीय अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेले जैसी प्रमुख प्रदर्शनियों में ‘जोहारग्राम’ को निशुल्क स्टॉल मिलते हैं। इसके अलावा राष्ट्रीय हथकरघा दिवस पर भी इसे प्रदर्शनी का अवसर मिला है।
साहू का कहना है कि इस प्रयास से न केवल स्वदेशी को बढ़ावा मिला है, बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था मजबूत हुई है और देश के पैसे को देश में ही बनाए रखने में मदद मिली है। पहले झारखंड के आदिवासी वस्त्र राष्ट्रीय पुरस्कारों के लिए नामांकित नहीं किए जाते थे, लेकिन ‘जोहारग्राम’ के प्रयासों से पिछले दो वर्षों में इस परंपरा में बदलाव आया है।
आज ‘जोहारग्राम’ की टीम में 15 सदस्य हैं, जिनके सहयोग से लगभग 200 बुनकर, कारीगर और शिल्प श्रमिक जुड़े हैं। इस पहल ने झारखंड की बुनाई कला को न केवल नए आयाम दिए हैं, बल्कि इसे अंतरराष्ट्रीय पहचान भी दिलाई है।