भारतीय व्यवसायों और बाढ़ प्रभावित समुदायों को तत्काल सहायता की ज़रूरत : जमाअत अध्यक्ष

Story by  एटीवी | Published by  [email protected] | Date 07-09-2025
Indian businesses and flood-affected communities need immediate assistance: Jamaat president
Indian businesses and flood-affected communities need immediate assistance: Jamaat president

 

नई दिल्ली

जमाअत-ए-इस्लामी हिंद के अध्यक्ष सैयद सआदतुल्लाह हुसैनी ने अमेरिकी टैरिफ के भारतीय निर्यात पर पड़ रहे गहरे असर और देशभर में आई बाढ़ से हुई तबाही को लेकर गंभीर चिंता जताई है। उन्होंने जमाअत मुख्यालय में आयोजित मासिक प्रेस कॉन्फ्रेंस में सरकार से तत्काल और ठोस कदम उठाने की अपील की।

हुसैनी ने कहा कि अमेरिकी टैरिफ में 50 फ़ीसदी तक की बढ़ोतरी से श्रम-प्रधान उद्योग बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं। “सूरत की हीरा इकाइयों, उत्तर प्रदेश के कालीन उद्योग और तिरुप्पुर के परिधान क्लस्टर में काम करने वाले हज़ारों मज़दूरों की आजीविका खतरे में है। 2,500 करोड़ रुपये के कालीन गोदामों में फंसे पड़े हैं और अकेले 2025 के वित्त वर्ष में 35,000 से अधिक एमएसएमई बंद हो चुके हैं। यह संकट की गहराई को दर्शाता है।”

उन्होंने इस टैरिफ को अन्यायपूर्ण और संरक्षणवादी बताते हुए सरकार से कूटनीतिक और आर्थिक स्तर पर मज़बूत प्रतिक्रिया की मांग की। साथ ही उन्होंने 25,000 करोड़ रुपये के राहत पैकेज, एमएसएमई के लिए ऋण व सब्सिडी, नौकरियों की सुरक्षा और निर्यात बाज़ारों में विविधता लाने जैसे तात्कालिक कदम उठाने पर बल दिया।

बाढ़ और प्राकृतिक आपदाओं पर बोलते हुए हुसैनी ने कहा कि पंजाब, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और महाराष्ट्र के कई गांव पूरी तरह तबाह हो गए हैं। किसानों की अरबों रुपये की फसल बर्बाद हो गई, परिवार उजड़ गए और सड़क-पुल जैसी बुनियादी ढांचा परियोजनाएँ ध्वस्त हो गईं। उन्होंने आरोप लगाया कि भ्रष्टाचार ने इस आपदा को और भयावह बना दिया है। “तटबंध टूट गए, जल निकासी व्यवस्था ध्वस्त हो गई और घटिया निर्माण के चलते सड़कें-पुल बह गए। भ्रष्टाचार ने प्राकृतिक आपदा को मानवीय त्रासदी में बदल दिया है।”

उन्होंने किसानों को कम से कम 50,000 रुपये प्रति एकड़ मुआवज़ा देने, बाढ़ नियंत्रण प्रणाली के उन्नयन और सभी इंफ्रास्ट्रक्चर की गुणवत्ता जांच की सख्त व्यवस्था की मांग की। साथ ही उन्होंने अप्रयुक्त फंड को मुक्त करने के लिए एक बाध्यकारी आपदा राहत क़ानून बनाने का भी आह्वान किया।

हुसैनी ने ज़ोर देकर कहा—“मज़दूर और किसान हमारी अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं। उनकी अनदेखी करना लाखों लोगों को गरीबी में धकेल देगा। उनकी सुरक्षा कोई दान नहीं, बल्कि उनका अधिकार और राज्य की ज़िम्मेदारी है।”

असम में बेदखली और दिल्ली दंगों पर चिंता

जमाअत के उपाध्यक्ष प्रोफेसर सलीम इंजीनियर ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में असम में जारी बेदखली अभियान और 2020 दिल्ली दंगों की साज़िश मामले में हाल ही में आए अदालत के फैसले पर चिंता जताई।

उन्होंने कहा कि गोलपाड़ा में पिछले तीन महीनों में 1,700 से अधिक परिवारों को जबरन विस्थापित किया गया। “कई परिवारों के पास वैध दस्तावेज़, एनआरसी रिकॉर्ड और वोटर आईडी होने के बावजूद उनके घर, स्कूल और मस्जिदें तोड़ी गईं। पुलिस की गोलीबारी में सकोवर अली नामक युवक की मौत हो गई। यह असंवैधानिक और मानवीय मानकों का उल्लंघन है।” उन्होंने बेदखली पर रोक लगाने, पुलिस कार्रवाई की स्वतंत्र जांच और विस्थापितों के पुनर्वास की मांग की।

दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा उमर खालिद और शरजील इमाम की जमानत खारिज किए जाने पर भी उन्होंने सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि यह कार्यकर्ता बिना मुकदमे के लगभग पांच साल से जेल में हैं। “जमानत सामान्य प्रक्रिया है, लेकिन अदालत ने व्हाट्सएप ग्रुप सदस्यता को षड्यंत्र माना, जिससे यूएपीए के दुरुपयोग पर गंभीर सवाल खड़े होते हैं। इससे लोकतांत्रिक असहमति और अल्पसंख्यकों की आवाज़ को दबाने का ख़तरा है।”

प्रो. इंजीनियर ने उम्मीद जताई कि सर्वोच्च न्यायालय हस्तक्षेप करेगा और निष्पक्ष सुनवाई सुनिश्चित कर लोकतांत्रिक स्वतंत्रता की रक्षा करेगा।