ह्यूस्टन/वाशिंगटन डीसी
भारत और अमेरिका ने अपने अंतरिक्ष सहयोग को एक नए चरण में प्रवेश करते हुए सोमवार को वाशिंगटन डीसी स्थित इंडिया हाउस में आयोजित एक विशेष कार्यक्रम में भविष्य की संयुक्त योजनाओं का खाका प्रस्तुत किया। इस मौके पर अधिकारियों और अंतरिक्ष यात्रियों ने बताया कि दशकों से जारी सहयोग अब चंद्रमा और मंगल मिशनों का रास्ता खोल रहा है।
“इंडिया-यूएसए स्पेस कोलैबोरेशन: द फ्रंटियर्स ऑफ ए फ्यूचरिस्टिक पार्टनरशिप” शीर्षक से आयोजित इस कार्यक्रम में हाल के मील के पत्थर—नासा-इसरो के संयुक्त निसार सैटेलाइट मिशन और एक्सिओम मिशन-4 (जिसके तहत भारतीय अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पहुँचे) को रेखांकित किया गया।
अमेरिका में भारत के राजदूत विनय क्वात्रा ने इस साझेदारी को “वैज्ञानिक अन्वेषण, प्रौद्योगिकी विकास और वाणिज्यिक सहयोग को आगे बढ़ाने वाला गतिशील मंच” बताया। उन्होंने कहा कि भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम कम लागत में खोज करने में वैश्विक नेतृत्व कर रहा है और अमेरिका के साथ संयुक्त प्रयास आने वाले दशकों में मानव अंतरिक्ष उड़ानों की सीमाओं को और आगे बढ़ा सकते हैं।
नासा की अर्थ साइंस डिवीजन की निदेशक डॉ. कैरेन सेंट जर्मेन ने निसार मिशन को “अंतरराष्ट्रीय सहयोग का आदर्श” बताते हुए कहा कि विशेषज्ञता को साझा करना वैज्ञानिक खोजों की रफ्तार तेज कर सकता है।
कार्यक्रम का प्रमुख आकर्षण रहा नासा के अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स, निक हेग और बुच विलमोर का वर्चुअल पैनल, जिसमें उन्होंने शुभांशु शुक्ला के साथ “मोमेंट्स इन ऑर्बिट” सत्र में हिस्सा लिया। इन अंतरिक्ष यात्रियों ने प्रशिक्षण, अंतरिक्ष स्टेशन पर जीवन और बदलती मानवीय अंतरिक्ष उड़ानों के अनुभव साझा किए। शुक्ला ने कहा कि उनकी यात्रा “अंतरराष्ट्रीय साझेदारी की मजबूती और वैश्विक अंतरिक्ष अन्वेषण में भारत की बढ़ती भूमिका का प्रमाण है।”
भारतीय दूतावास की विज्ञप्ति के अनुसार, इस कार्यक्रम में सरकार, अंतरिक्ष एजेंसियों, उद्योग, अकादमिक जगत और थिंक टैंक से जुड़े प्रतिनिधि शामिल हुए। चर्चाओं में यह रेखांकित किया गया कि भारत-अमेरिका सहयोग अब उपग्रह प्रक्षेपण और डेटा साझेदारी से आगे निकलकर वाणिज्यिक अंतरिक्ष परियोजनाओं और मानव मिशनों के नए आयाम खोल रहा है।
विश्लेषकों के मुताबिक यह साझेदारी रणनीतिक महत्व भी रखती है, क्योंकि दोनों देश चीन की अंतरिक्ष महत्वाकांक्षाओं का संतुलन बनाने के साथ-साथ निजी क्षेत्र के लिए भी नए अवसर पैदा कर रहे हैं। वहीं भारत के लिए यह सहयोग उसकी तेजी से प्रगति करती क्षमताओं—चंद्रयान की सफलता और आगामी गगनयान मिशन—को वैश्विक पहचान दिलाने वाला कदम है, जिससे वह अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में बड़ी ताकत के रूप में उभर रहा है।