पुणे
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने गुरुवार को कहा कि कुछ देश संरक्षणवादी नीतियों को अपनाते हैं और कई बार विघटनकारी तकनीकों से जुड़ी जानकारी भी साझा नहीं करते। इसके बावजूद भारत ने इन चुनौतियों का डटकर सामना किया है और यह साबित किया है कि यदि इच्छाशक्ति मजबूत हो, तो कोई भी देश किसी भी क्षेत्र में आत्मनिर्भर बन सकता है।
उन्होंने स्पष्ट कहा कि भारत अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए प्रौद्योगिकी के आयात पर निर्भर नहीं रह सकता। सरकार का उद्देश्य केवल देश को रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाना ही नहीं, बल्कि भारत को एक वैश्विक नवाचार केंद्र के रूप में स्थापित करना भी है।
रक्षा मंत्री सिंह पुणे स्थित आयुध अनुसंधान एवं विकास प्रतिष्ठान (ARDE) के दौरे पर थे। यह प्रतिष्ठान रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) की एक प्रमुख प्रयोगशाला है, जो आयुध एवं लड़ाकू इंजीनियरिंग प्रणाली (ACE) क्लस्टर के तहत काम करती है। सिंह इस क्लस्टर की सलाहकार समिति के अध्यक्ष भी हैं।
अपने दौरे के दौरान रक्षा मंत्री ने समिति के साथ मिलकर क्लस्टर द्वारा विकसित कई अत्याधुनिक रक्षा उत्पादों का निरीक्षण किया। इनमें शामिल हैं:
एडवांस्ड टोड आर्टिलरी गन सिस्टम
पिनाका रॉकेट सिस्टम
हल्का टैंक ‘ज़ोरावर’
पहिएदार बख्तरबंद प्लेटफॉर्म
आकाश-नई पीढ़ी की मिसाइल प्रणाली
इसके अलावा, समिति को रोबोटिक्स, रेल गन, इलेक्ट्रोमैग्नेटिक एयरक्राफ्ट लॉन्च सिस्टम, हाई-एनर्जी प्रणोदन सामग्री जैसी भविष्य की तकनीकों की जानकारी भी दी गई और क्लस्टर के विकास के लिए एक विस्तृत रोडमैप प्रस्तुत किया गया।
'उभरती प्रौद्योगिकियां और डीआरडीओ' विषय पर आयोजित बैठक को संबोधित करते हुए राजनाथ सिंह ने कहा कि बदलते समय में युद्ध की प्रकृति और रक्षा रणनीतियों में भी बदलाव आ रहा है। ऐसे में भारत को इन परिवर्तनों को समझना होगा और समय के साथ खुद को ढालना होगा।
उन्होंने कहा,"यह तकनीकी वर्चस्व का युग है। जो देश विज्ञान और नवाचार को प्राथमिकता देगा, वही विश्व का नेतृत्व करेगा। अब तकनीक केवल प्रयोगशालाओं तक सीमित नहीं रही, बल्कि यह हमारे रणनीतिक फैसलों, रक्षा प्रणालियों और भविष्य की नीतियों की नींव बन चुकी है।"
रक्षा मंत्री ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार की उस प्रतिबद्धता को दोहराया, जिसमें रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई है। उन्होंने डीआरडीओ की सराहना करते हुए कहा कि संगठन ने उन तकनीकों का विकास किया है, जिन्हें पहले विदेशों से आयात करना पड़ता था। आज भारत के रक्षा उत्पादों की वैश्विक स्तर पर पहचान बन रही है।
अंत में उन्होंने कहा,"भारत अब केवल प्रौद्योगिकी का उपभोक्ता नहीं, बल्कि उसका निर्माता और निर्यातक भी बन रहा है।"