हैदराबाद
ईदगाह बिलाली, मसाब टैंक में ईद मिलादुन्नबी ﷺ के मौके पर अदा की गई सामूहिक शुक्राने की नमाज़ को लेकर मुस्लिम समाज में विवाद खड़ा हो गया। मामले के सामने आने के बाद गुलामान-ए-मुस्तफ़ा कमेटी के जिम्मेदारों ने अपनी गलती स्वीकार की और मुस्लिम उम्मत से खुलकर माफ़ी मांगी।
मीडिया से बात करते हुए मुफ़्ती खालिद ने कहा, “मैं जामिया निज़ामिया से मुफ़्ती हूं, लेकिन इंसान भी हूं और इंसान से ग़लती हो सकती है। बेहतरीन इंसान वही है जो गलती के बाद तौबा करे और माफ़ी मांगे। सामूहिक शुक्राने की नमाज़ इस्लामी शरीअत के अनुसार जायज़ नहीं है। मगर यह काम किसी फूट या विवाद के लिए नहीं, बल्कि सिर्फ़ हज़रत रसूल ﷺ की मोहब्बत में किया गया था।”
इसी मौके पर मुहम्मद सरफ़राज़ ख़ान, अध्यक्ष गुलामान-ए-मुस्तफ़ा कमेटी, ने भी मुस्लिम समाज से माफ़ी मांगते हुए कहा, “यह ग़लती अनजाने में हुई। उलमा-ए-किराम से मशविरा करने के बाद यह स्पष्ट हुआ कि शुक्राने की नमाज़ फ़र्द (व्यक्तिगत) तौर पर अदा की जा सकती है, लेकिन सामूहिक तौर पर नहीं। अगर किसी की भावनाएं आहत हुई हों तो हम दिल की गहराइयों से माफ़ी मांगते हैं।”
उन्होंने आगे कहा कि गुलामान-ए-मुस्तफ़ा कमेटी पिछले 18 सालों से उम्मत की एकता के लिए काम कर रही है और आगे भी करती रहेगी। “यह हमारी पहली और आख़िरी ग़लती थी। इंशाअल्लाह, ऐसा दुबारा कभी नहीं होगा।”
मुफ़्ती खालिद और मुहम्मद सरफ़राज़ ख़ान ने उन उलमा का शुक्रिया अदा किया जिन्होंने उन्हें मार्गदर्शन दिया और जनता से अपील की कि इस मामले को यहीं खत्म किया जाए तथा मुस्लिम समाज में आपसी एकता और भाईचारा बनाए रखा जाए।