हेट स्पीचः जितेंद्र त्यागी उर्फ वसीम रिजवी को मिली अंतरिम जमानत

Story by  एटीवी | Published by  [email protected] | Date 17-05-2022
हेट स्पीचः जितेंद्र त्यागी उर्फ वसीम रिजवी को मिली अंतरिम जमानत
हेट स्पीचः जितेंद्र त्यागी उर्फ वसीम रिजवी को मिली अंतरिम जमानत

 

नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को जितेंद्र नारायण सिंह त्यागी को पिछले साल दिसंबर में हरिद्वार धर्म संसद में आयोजित अभद्र भाषा की जांच के सिलसिले में तीन महीने की अंतरिम जमानत दे दी, जिन्हें पहले वसीम रिजवी के नाम से जाना जाता था.

न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी की अध्यक्षता वाली पीठ ने चिकित्सा आधार पर त्यागी को अंतरिम जमानत देते हुए कहा कि उन्हें यह वचन देना होगा कि वह अभद्र भाषा में शामिल नहीं होंगे और इलेक्ट्रॉनिक या डिजिटल या सोशल मीडिया पर कोई बयान नहीं देंगे. शीर्ष अदालत ने त्यागी के वकील वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह से अपने मुवक्किल को नफरत भरे भाषणों में शामिल न होने और समाज में सद्भाव बनाए रखने की सलाह देने को कहा.

उत्तराखंड सरकार की ओर से पेश वकील ने कहा कि जिस अपराध के तहत त्यागी पर मामला दर्ज किया गया है, उसके लिए अधिकतम सजा में तीन साल की सजा है. अधिवक्ता ने कहा कि जिस समय त्यागी जमानत पर बाहर आते हैं, उन्हें फिर से अभद्र भाषा पर बयान नहीं देना चाहिए.

वकील ने पीठ से कहा, ‘‘हमें हर कीमत पर सांप्रदायिक सद्भाव बनाए रखना है. अगर वह अभद्र भाषा बोलते हैं, तो उनकी जमानत बिना किसी नोटिस के अपने आप रद्द कर दी जानी चाहिए. जहां तक उनकी चिकित्सा स्थिति का सवाल है, यह स्थिर है. उन्हें हृदय संबंधी कुछ समस्याएं हैं.’’

पिछले हफ्ते शीर्ष अदालत ने त्यागी की जमानत खारिज करने के हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ उनकी याचिका पर उत्तराखंड सरकार को नोटिस जारी किया था. जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए पीठ ने कहा था कि वे ‘पूरा माहौल खराब कर रहे हैं.’

खंडपीठ ने हरिद्वार धर्म संसद के विवादास्पद आयोजन का जिक्र करते हुए कहा, ‘‘इससे पहले कि वे दूसरों को जागरूक करने के लिए कहें, उन्हें पहले खुद को संवेदनशील बनाना होगा. वे संवेदनशील नहीं हैं. यह कुछ ऐसा है जो पूरे माहौल को खराब कर रहा है.’’

त्यागी कभी हिंदुत्व स्वीकार करने से पहले यूपी शिया वक्फ बोर्ड के प्रमुख थे. उन्होंने उत्तराखंड उच्च न्यायालय के 8 मार्च के आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें उन्हें जमानत नहीं मिली थी.

त्यागी को 13 जनवरी को धारा 153 ए (धर्म, जाति, जन्म स्थान, निवास के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना) और 298 (किसी भी व्यक्ति की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के इरादे से शब्द बोलना) के तहत अपराध के लिए दर्ज मामले में 13 जनवरी को गिरफ्तार किया गया था. उच्च न्यायालय ने उन्हें यह कहते हुए जमानत देने से इनकार कर दिया था कि उन्होंने अपमानजनक टिप्पणी की थी.