मुंबई
अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन तक पहुंचने वाले पहले भारतीय अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला ने कहा कि अंतरिक्ष यात्रियों के लिए दांतों का स्वास्थ्य बेहद महत्वपूर्ण है। उन्होंने बताया कि अंतरिक्ष यात्रा की तैयारी के दौरान उन्हें अपनी दो अक्ल दाढ़ निकलवानी पड़ी। शुक्ला ने कहा कि हालांकि अंतरिक्ष यात्रियों को आपातकालीन चिकित्सा स्थितियों से निपटने का प्रशिक्षण दिया जाता है, लेकिन वे अंतरिक्ष यान में दांतों से जुड़ी सर्जरी नहीं कर सकते।
शुक्ला ने यह जानकारी बुधवार को भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईएसआई) में दी। इस अवसर पर उनके साथ ग्रुप कैप्टन प्रशांत नायर और ग्रुप कैप्टन अंगद प्रताप भी मौजूद थे। नायर और प्रताप को देश के पहले मानव अंतरिक्ष मिशन ‘गगनयान’ के लिए चुना गया है।
शुक्ला ने बताया कि चयन प्रक्रिया के दौरान कई उम्मीदवारों ने अपने दांत निकलवाए, ताकि उन्हें मिशन के लिए योग्यता मिलने में कोई बाधा न आए। उन्होंने कहा, “गगनयान मिशन के लिए चुने गए भारतीय वायु सेना के टेस्ट पायलटों को मंजूरी मिलने से पहले कई मनोवैज्ञानिक और शारीरिक परीक्षणों से गुजरना पड़ा। मेरे दो अक्ल दाढ़ निकाली गई, नायर के तीन और प्रताप के चार दाढ़ निकलवाए गए।”
ग्रुप कैप्टन नायर ने बताया कि 2019 के अंत तक उन्हें रूस भेजा गया, जहां रूसी चिकित्सकों ने उनका चिकित्सा मूल्यांकन किया। ग्रुप कैप्टन प्रताप ने कहा कि जिन देशों के पास विकसित अंतरिक्ष कार्यक्रम हैं, जैसे अमेरिका, रूस और चीन, वहां भी टेस्ट पायलटों का चयन इसी तरह किया जाता है।
शुक्ला ने बताया कि वायु सेना के हर साल लगभग 200 जवान टेस्ट पायलट बनने के लिए आवेदन करते हैं, लेकिन उनमें से केवल पांच का चयन होता है। गगनयान कार्यक्रम के लिए 75 टेस्ट पायलटों में से सिर्फ चार को चुना गया। उन्होंने यह भी कहा कि उनका चयन केवल अंतरिक्ष में भेजे जाने के लिए नहीं, बल्कि मिशन की तैयारी, डिजाइन और सिस्टम विकास के लिए हुआ।
प्रताप ने कहा कि टेस्ट पायलटों का प्रशिक्षण अंतरिक्ष यात्री प्रशिक्षण के समान होता है, इसलिए उन्हें सीधे अंतरिक्ष प्रशिक्षण कार्यक्रम में शामिल करना आसान है। शुक्ला ने सभी को यह संदेश दिया कि अंतरिक्ष यात्रियों के लिए दांतों का स्वास्थ्य न केवल व्यक्तिगत बल्कि मिशन की सफलता के लिए भी महत्वपूर्ण है।