मुंबई
मालेगांव विस्फोट मामले में आए हालिया फैसले के बाद 'भगवा आतंकवाद' शब्द को लेकर बहस फिर तेज़ हो गई है। इसी संदर्भ में शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती महाराज ने स्पष्ट कहा कि आतंकवाद का कोई रंग नहीं होता और जो लोग आतंकवाद को किसी रंग से जोड़ते हैं, वे स्वयं आतंकवाद के समर्थक हैं।
उन्होंने कहा:“आतंकवादी सिर्फ आतंकवादी होता है... आतंकवाद शब्द के साथ रंग जोड़ने का क्या मतलब? आतंकवाद तो आतंकवाद है और इसके खिलाफ ज़ीरो टॉलरेंस की नीति अपनाई जानी चाहिए... मालेगांव में विस्फोट हुआ, लेकिन आपने असली दोषी को पकड़ नहीं पाया... जो लोग आतंकवाद में रंग ढूंढते हैं, वे आतंकवाद के समर्थक हैं।”
‘भगवा आतंक’ शब्द का प्रयोग पहली बार 2002 के गुजरात दंगों के बाद सामने आया था, लेकिन 2008 मालेगांव विस्फोट के बाद यह शब्द राजनीतिक विमर्श में अधिक प्रचलित हुआ। तत्कालीन केंद्रीय गृहमंत्री पी. चिदंबरम ने भी पुलिस अधिकारियों की बैठक में इस शब्द का उल्लेख किया था। कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने भी मालेगांव विस्फोटों की आलोचना करते हुए इस शब्द का उपयोग किया था।
31 जुलाई 2025 को मुंबई की एनआईए की विशेष अदालत ने 2008 के मालेगांव ब्लास्ट केस में सातों आरोपियों को बरी कर दिया। अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष आरोपों को संदेह से परे साबित करने में विफल रहा। साथ ही अदालत ने महाराष्ट्र सरकार को पीड़ित परिवारों को ₹2 लाख और घायलों को ₹50,000 मुआवजा देने का आदेश दिया।
पूर्व सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर
सेवानिवृत्त मेजर रमेश उपाध्याय
सुधाकर चतुर्वेदी, अजय राहिरकर
सुधंकर धर द्विवेदी (शंकराचार्य)
समीर कुलकर्णी
अदालत ने कहा,
“सभी आरोपियों के जमानत बांड रद्द किए जाते हैं और ज़मानतदारों को मुक्त किया जाता है।”
29 सितंबर 2008 को मालेगांव शहर के भिक्कू चौक पर एक मोटरसाइकिल में बंधे विस्फोटक उपकरण में धमाका हुआ था, जिसमें 6 लोगों की मौत और 95 लोग घायल हुए थे। इस मामले में शुरुआत में 11 लोगों को आरोपी बनाया गया था, लेकिन अंत में अदालत ने केवल 7 के खिलाफ आरोप तय किए।
पीड़ित परिवारों के वकील ने कहा है कि वे उच्च न्यायालय में इस फैसले को चुनौती देंगे।